अंतरिक्ष विज्ञान और भारत
प्रारूप-
प्रस्तावना
आर्यभट्ट
भास्कर
रोहिणी
एप्पल
एजूसेट
कृत्रिम उपग्रह के लाभ
निष्कर्ष
1 प्रस्तावना : मनुष्य की जिज्ञासा और विज्ञान के साथ प्रकृति का रहस्य दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे है। आज पृथ्वी के साथ-साथ अंतरिक्ष के रहस्य भी सामने आ रहे हैं। विभिन्न प्रकार के आकाशीय पिंडों की खोज होती जा रही है। इन पिंडों के रहस्यों को सामने लाने के लिए अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रहों का मेला सा लग गया है। इस मेले में भारतीय उपग्रह भी शामिल है।
2 आर्यभट्ट : यह भारत का पहला कृत्रिम उपग्रह है। इसका प्रक्षेपण 19 अप्रैल सन् 1975 को पूर्व सोवियत रूस के प्रक्षेपण केंद्र से किया गया था। इसका भार 365 किलोग्राम था। इसका नाम भारत के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री एवं गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।
3 भास्कर : भास्कर-I का प्रक्षेपण 7 जून 1979 मैं किया गया तथा भास्कर-II का प्रक्षेपण 20 नवंबर 1981 को पूर्व सोवियत संघ के, प्रक्षेपण केंद्र बीकानूर अंतरिक्ष केंद्र, इंटर कास्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा किया गया। इसका भारत 444 किलोग्राम था। इसका नाम भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य के नाम पर रखा गया था।
4 रोहिणी : रोहिणी आईएस RS-I का प्रक्षेपण 10 अगस्त 1979 को श्रीहरिकोटा आंध्र प्रदेश से किया गया। इसका द्रव्यमान 35 किलोग्राम था। रोहिणी RS-II का प्रक्षेपण 18 जुलाई सन 1980 को किया गया था।
5 एप्पल : यह भारत का प्रथम संचार उपग्रह है। इसका प्रक्षेपण 19 जून सन् 1981 को कोरू फ्रेंच गुयाना से एरियन द्वारा किया गया। इसका उपयोग टेलीविजन कार्यक्रम के प्रसारण एवं रेडियो नेटवर्किंग में किया जा रहा है।
6 एजूसेट : इसे एजुकेशन सेटेलाइट के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रक्षेपण 20 सितंबर 2004 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा किया गया। इसका प्रक्षेपण शिक्षक सेवा प्रदान करने हेतु किया गया है।
7 कृत्रिम उपग्रह के लाभ : कृत्रिम उपग्रह के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार है
यह पृथ्वी के वायुमंडल का अध्ययन करने में सहायता करता है।
यह पृथ्वी की संरचना का पता लगाने में सहायक है।
यह मौसम संबंधी जानकारियां प्राप्त करने में सहायता करता है।
कृत्रिम उपग्रह ब्रह्मांड करने के अध्ययन करने में सहायक होते हैं।
8 निष्कर्ष : भारत में भी अनेक महान वैज्ञानिकों का जन्म हुआ है भारत ने प्रारंभ में विदेशों से मदद इसलिए नहीं ताकि वह शीघ्र ही अपने उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित कर सके यह हमारी कमजोरी नहीं आवश्यकता रही है आज भारतीय वैज्ञानिकों को लोहा पूरा विश्व मान चुका है हमें अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है।