मानव तंत्रिका तंत्र (Human Nervous System)
A) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System)
मस्तिष्क (Brain)
मेरुरज्जु (Spinal cord)
B) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System)
कायिक तंत्रिका तंत्र : अक्षीय अंगों पर कार्य करता है।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र : आंतरिक अनेक्षिक अंगों पर कार्य करता है।
अनुकंपी तंत्रिका तंत्र
परानुकंपी तंत्रिका तंत्र
तांत्रिकाएं
संवेदी तंत्रिका: यह सूचनाओं को शरीर के विभिन्न अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाता है।
प्रेरक तंत्रिका: यह सूचनाओं को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के विभिन्न अंगों से तक पहुंचाता है।
न्यूरॉन (तंत्रिका) : यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती है।
न्यूरॉन के प्रकार (Types of neuron)
A) प्रवर्ध के आधार पर
एक-ध्रुवीय न्यूराॅन्स : ऐसे न्यूरॉन जिसमें केवल एक डेन्ड्राॅइट या एक्साॅन होता है, उसे एक-ध्रुवीय न्यूराॅन्स कहते हैं।
द्वि-ध्रुवीय न्यूराॅन्स : ऐसे न्यूरॉन जिसमें केवल एक डेन्ड्राॅइट एवं एक एक्साॅन होता है, उसे द्वि-ध्रुवीय न्यूराॅन्स कहते हैं।
बहु-ध्रुवीय न्यूराॅन्स : ऐसे न्यूरॉन जिसमें अनेक डेन्ड्राॅइट एवं एक एक्साॅन होता है, उसे बहु-ध्रुवीय न्यूराॅन्स कहते हैं।
B) तंत्रिकाक्ष के आधार पर
आच्छदी: ऐसे न्यूरॉन जिसके एक्साॅन के चारों ओर मायलिन शीथ पाई जाती है उसे आच्छदी न्यूरॉन कहते हैं।
आच्छदहीन: ऐसे न्यूरॉन जिसके एक्साॅन के चारों ओर मायलिन शीथ नहीं पाई जाती है उसे आच्छदहीन न्यूरॉन कहते हैं।
मस्तिष्क (Brain)
इसकी उत्पत्ति एक्टोडर्म से होती है।
इसका भाई 1.4 केजी होता है।
मस्तिष्क में गुहाएं पाई जाती है जिसमें द्रव भरा होता है, जिसे सेरिब्रल स्पाइनल फ्लूइड (Cerebral Spinal Fluid) कहते हैं।
मस्तिष्क के भाग (Parts of brain)
A) अग्र मस्तिष्क (Fore brain or Prosencephalon)
1 टीलेनसेफेलाॅन
a) सेरीब्रम: यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है।
b) लिबिक तंत्र
2 डाइनसेफेलाॅन
a) एपिथैलेमस: डाइनसेफेलाॅन का छत होता है।
b) थैलेमस: डाइनसेफेलाॅन की दीवार होती है।
c) हाइपोथैलेमस: डाइनसेफेलाॅन का आधार होता है।
B) मध्य मस्तिष्क (Mid brain or Mesencephalon)
क्रुरा सेरीब्राई: यह उद्दीपनों को सेरीब्रम, सेरीबेलम, पोंस एवं मेडूला के मध्य रिले करने का कार्य करता है।
कॉर्पोरा क्वाड्रिजेमिना: दृष्टि, घ्राण व प्रतिवर्ती क्रियाओं का केंद्र होता है।
C) पश्च मस्तिष्क (Hind brain or Rhombencephalon)
पोन्स: यह श्वसन क्रिया का केंद्र होता है।
मेडूला ऑब्लांगेटा: यह श्वसन, पाचन, परिसंचरण (अनैच्छिक क्रियाओं) का केंद्र होता है।
सेरीबेलम/अनुमस्तिष्क: यह पेशियों व मस्तिष्क के मध्य समन्वय बनाकर रखता है।
प्रमस्तिष्क/सेरीब्रम (Cerebrum)
यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है।
दो (प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध) सेरीब्रल हैमेस्फेअर से मिलकर बनता है।
दो प्रमस्तिष्क मस्तिष्क गोलार्द्ध कॉर्पस कैलोसम नामक तांत्रिका की पट्टी से जुड़े होते हैं।
कॉर्पस कैलोसम केवल स्तनधारियों में पाया जाता है।
सेरीब्रम के भाग (Parts of cerebrum)
फ्रंटल लोब = ऐच्छिक गतिविधियों का केंद्र होता है। बुद्धिमत्ता (इंटेलिजेन्सी) को नियंत्रित करता है।
पैराइटल लोब = ताप, स्पर्श, दर्द जैसे संवेदनाओं का केंद्र होता है।
टेम्पोरल लोब = सुनने एवं सुंघने के लिए आवश्यक है। यह घ्राण केंद्र एवं श्रावण केंद्र होता है।
ऑक्सीपिटल लोब = यह देखने में मदद करता है।
हाइपोथैलेमस(Hypothalamus)
दैनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
भूख, प्यास का केंद्र होता है।
प्रेम, गुस्सा, दुःख जैसे भावनाओं का केंद्र होता है।
सेरीबेलम/अनुमस्तिष्क (Cerebellum)
यह दो अनुमस्तिष्क गोलार्द्ध से मिलकर बना होता है।
दोनों अनुमस्तिष्क गोलार्द्ध वर्मिस के द्वारा आपस में जुड़े होते हैं।
अनुमस्तिष्क गोलार्द्ध के मध्य भाग में वृक्ष के समान संरचना पाई जाती है जिसे आर्बर विटे कहते हैं।
आर्बर विटे में मायलिन शीथ युक्त एक्साॅन के समूह होते हैं जिसके कारण यह सफेद दिखाई देता है तथा इसमें श्वेत द्रव्य भरे होते हैं।
अनुमस्तिष्क गोलार्द्ध का परिधि भाग धूसर रंग का दिखाई देता है क्योंकि यहां मायलिन शीथ उपस्थित होता है। इसमें उपस्थित द्रव्य को धूसर द्रव्य कहते हैं।
नेत्र (Eye)
नेत्र खोपड़ी से 6 मांसपेशियों द्वारा जुड़ी होती है जिसे बाह्य नेत्रीय पेशियां कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है - ऑब्लिक (oblique) पेशी एवं रेक्टस (rectus) पेशी।
Oblique muscle
Superior oblique
Inferior oblique
Rectus muscle
Superior rectus
Inferior rectus
Medial rectus
Lateral rectus
नेत्र के भाग या नेत्र की संरचना (Structure of eye)
A) बाहरी स्तर (Outer layer): कॉर्निया एवं स्क्लेरा का बना होता है।
कॉर्निया (Cornea): आँख के कॉर्निया (cornea) में रक्त नहीं पाया जाता है। यह आंख का पारदर्शी, सामने का हिस्सा होता है जो प्रकाश को अंदर जाने देता है।
स्क्लेरा (Sclera): यह नेत्र का सफेद भाग होता है।
B) मध्य स्तर (Middle layer): कोराॅईड, आइरिस एवं सिलिअरीपेशी से मिलकर बना होता है।
कोराॅईड (Choroid)
आइरिस (Iris) : आइरिस के मध्य खाली जगह पाया जाता है जिसे प्यूपिल कहते हैं। यह प्रकाश के प्रवेश के लिए होता है।
सिलिअरीपेशी (Ciliary muscle) : यह जलीय द्रव्य (आंसू) बनाता है।
C) आंतरिक स्तर (Inner layer): इसके अंतर्गत रेटिना आता है।
लेंस के पीछे रेटिना में एक गर्त पाया जाता है जिसे पीत बिंदु या फोविया कहते हैं। यहां पर प्रकाश पड़ने से सबसे स्पष्ट प्रतिबिंब बनता है।
रेटिना में दो प्रकार की प्रकाश संवेदी कोशिकाएं उपस्थित होती है - शंकु (Cones) एवं शलाका (Rods)
1 शंकु (Cones) :
तीव्र प्रकाश में प्रतिबिंब बनाता है।
यह रंगीन प्रतिबिंब बनाता है।
इसमें आइडोपसिन/फोटोपसिन नामक वर्णक पाया जाता है।
2 शलाका (Rods) :
मंद प्रकाश में प्रतिबिंब बनाता है।
यह ब्लैक एंड व्हाइट प्रतिबिंब बनाता है।
इसमें रोडोपसिन/ स्कोटाॅपसिन वर्णक पाया जाता है।
कान (Ear)
कान के भाग (Parts of ear)
1 बाह्य कर्ण (External ear)
इसके अंतर्गत पिन्ना एवं टीम्पनम आता है।
कार्य: ध्वनि तरंगों को एकत्रित करता है।
2 मध्य कर्ण (Middle ear)
तीन अस्थियों (मेलियस, इनकस, स्टैपिस) का एवं यूस्टेचियन नलिका का बना होता है
c) मेलियस
आकार = हथौड़े के समान
रूपांतरण = Articular bone
Trick = MA
b) इनकस
आकार = तिहाई के समान
रूपांतरण = Quadrate bone
Trick = IQ
c) स्टैपिस
आकार = घोड़े की नाल के समान
रूपांतरण = Hyomandibular bone
Trick = SH sir
कार्य : ध्वनि तरंगों का आवर्धन करता है। इस दौरान ध्वनि अधिक कंपन करती है।
3 अंत: कर्ण (Internal ear)
a) वेस्टीबुलर उपकरण : यह शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
अर्ध्दचंद्राकार नलिका (SCC)
इसकी संख्या तीन होती है। इसमें एम्पुला पाया जाता है जो गतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
यूट्रीकल: तीन अर्ध्दचंद्राकार नलिका लंबवत होते है व तीनों SCC मिलकर एक कक्ष में खुलती है, जिसे यूट्रीकल कहते हैं। यह स्थैतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
सैक्यूल: यूट्रीकल जिस कक्ष में खुलता है, उसे सैक्यूल कहते हैं।यह स्थैतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
b) कोक्लिया: यह वास्तव में सुनने का काम करता है। इसमें कोर्टी के अंग (संवेदी अंग) पाए जाते हैं, जिसे सुनने की आधारभूत इकाई कहते हैं।
कार्य : सुनना एवं शरीर का संतुलन बनाए रखना।
जीभ (Tongue)
यह स्वाद ग्रहण करता है।
इसमें स्वाद कलिकाएं पाई जाती है।
जीभ की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे उभार पाए जाते हैं, जिसे पैपिली (Papillae) कहते हैं। यह निम्नलिखित प्रकार के होते हैं -
फंजीफाॅर्म पैपिली (Fungiform Papillae) : अग्र भाग में पाया जाता है। मीठे खट्टे एवं नमकीन स्वाद का अनुभव कराते हैं।
सरकमवैलेट पैपिली (Circumvallate Papillae) : पश्च भाग में पाया जाता है। कड़वे स्वाद का अनुभव कराता है।
फिलिफाॅर्म पैपिली (Filiform Papillae) : अग्र भाग में पाया जाता है। स्वाद कालिकाएं नहीं होती है।
तीखा स्वाद नहीं है, यह जलन है अतः इसके लिए स्वाद कलिकाएं नहीं होती है।
MCQs
शरीर की सबसे लंबी कोशिका कौन सी है?
Ans: तंत्रिका कोशिका।
एक्साॅन के चारों ओर कौन सा शीथ पाया जाता है?
Ans: मायलिन शीथ।
एसीटाइलकोलीन क्या है?
Ans: न्यूरोट्रांसमीटर।
तंत्रिका की उत्पत्ति किस होती है?
Ans: एक्टोडर्म से।
किसी तंत्रिका की उत्पत्ति मीजोडर्म से होती है?
Ans: माइक्रोग्लिया की।
मस्तिष्क का कौन सा भाग दैनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है?
Ans: हाइपोथैलेमस।
2 प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध किसके द्वारा जुड़े होते हैं?
Ans: कॉर्पस कैलोसम।
शंकु (cones) द्वारा किस प्रकार का प्रतिबिंब बनता है?
Ans: रंगीन प्रतिबिंब।
शलाका (rods) में कौन सा वर्णक पाया जाता है?
Ans: रोडोपसिन।
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कितनी होती है?
Ans: 25 cm
स्पष्ट दृष्टि की अधिकतम दूरी कितनी होती है?
Ans: अनंत।
मेरु तंत्रिकाओं की संख्या कितनी होती है?
Ans: 31 जोड़ी।
कर्ण का कौन सा भाग सुनने का कार्य करता है?
Ans: काॅक्लिया।
कर्ण का कौन सा भाग स्थैतिक संतुलन बनता है?
Ans: यूट्रीकल एवं सेक्यूल।
मेलियस किसका रूपांतरण है?
Ans: आर्टिकुलर बोन का।
जीभ या जिव्हा का कौन सा भाग कड़वे स्वाद का अनुभव कराता है?
Ans: सरकमवैलेट पैपिली।
Short Type Questions
Q.1 संवेदी एवं प्रेरक तंत्रिका को परिभाषित कीजिए।
Ans:
संवेदी तंत्रिका: यह सूचनाओं को शरीर के विभिन्न अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाता है।
प्रेरक तंत्रिका: यह सूचनाओं को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के विभिन्न अंगों से तक पहुंचाता है।
Q.2 न्यूरोट्रांसमीटर किसे कहते हैं? इसके उदाहरण दीजिए?
Ans: वह पदार्थ जो एक तंत्रिका से दूसरी तंत्रिका में आवेग का संवहन करता है न्यूरोट्रांसमीटर कहलाता है।
उदाहरण : एसीटाइलकोलीन, एड्रीनेलीन (एपीनेफ्रीन), नाॅर एड्रीनेलीन।
Q.3 न्यूरोग्लिया कोशिका क्या है?
Ans:
यह कोशिका तंत्रिकीय ऊत्तक का 50% भाग बनती है।
यह सहायक कोशिका होती है।
यह उत्तेजनशील नहीं होती।
इसके द्वारा आवेगों का परिवहन नहीं होता है।
Q.4 सेरीब्रम को समझाइए।
Ans: सेरीब्रम
यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है।
दो (प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध) सेरीब्रल हैमेस्फेअर से मिलकर बनता है।
दो प्रमस्तिष्क मस्तिष्क गोलार्द्ध कॉर्पस कैलोसम नामक तांत्रिका की पट्टी से जुड़े होते हैं।
सेरीब्रम के भाग (Parts of cerebrum)
फ्रंटल लोब
पैराइटल लोब
टेम्पोरल लोब
ऑक्सीपिटल लोब
Q.5 मोतियाबिंद किसे कहते हैं?
Ans: लेंस के ऊपर कैरोटीन प्रोटीन के जमाव के कारण प्रतिबिंब धुंधला दिखाई देता है इसे मोतियाबिंद कहते हैं।
Q.6 काचाभ द्रव्य किसे कहते हैं?
Ans: लेंस के पीछे रेटिना तक एक कक्ष पाया जाता है जिसे काचाभ कक्ष कहते हैं। इसमें गाढ़ा द्रव्य भरा होता है जिसे काचाभ द्रव्य कहते हैं।
Q.7 प्रकाश की तीव्रता का प्यूपिल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
Ans: तीव्र प्रकाश के कारण आइरिस का संकुचन होता है जिसके फलस्वरुप प्यूपिल का आकार छोटा हो जाता है। कम प्रकाश के कारण आइरिस फैल जाता है जिससे प्यूपिल का आकार बड़ा हो जाता है।
Q.8 नेत्र में कितने प्रकार के शंकु (cones) होते हैं?
Ans: नेत्र में 3 प्रकार के शंकु (cones) होते हैं -
सायनोलैब : नीले रंग का प्रतिबिंब बनाता है।
क्लोरोलैब : हरे रंग का प्रतिबिंब बनाता है।
इरिथ्रोलैब : लाल रंग का प्रतिबिंब बनाता है।
Q.9 हाइपोथैलेमस के कार्य लिखिए।
Ans: हाइपोथैलेमस के कार्य -
दैनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
भूख, प्यास का केंद्र होता है।
प्रेम, गुस्सा, दुःख जैसे भावनाओं का केंद्र होता है।
Q.10 प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
Ans: प्रतिवर्ती क्रिया: बिना सोचे समझे अचानक होने वाली क्रियाएं प्रतिवर्ती क्रियाएं कहलाती है।
उदाहरण : i) गर्म बर्तन पर हाथ लगने से हाथ का तुरंत वहां से हट जाना।
ii) कांटा चुभने पर पैर का ऊपर उठना।
Q.11 मस्तिष्क में होने वाले निम्नलिखित विकारों को समझाइए।
ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन स्ट्रोक, अल्जाइमर
Ans:
ब्रेन ट्यूमर : दिमाग में असामान्य कोशिकाओं का कैंसर के रूप में या बिना कैंसर के जमा हो जाना ब्रेन ट्यूमर कहलाता है। ट्यूमर शरीर के अन्य भागों से शुरू होता है और बाद में मस्तिष्क तक फैल जाता है।
ब्रेन स्ट्रोक : रक्त वाहिका के फटने या उसमें रुकावट के कारण मस्तिष्क की कोशिकाओं को तक रक्त एवं ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है, इसे ब्रेन स्ट्रोक कहते हैं।
अल्जाइमर : यह याददाश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा करता है।
Q.12 मस्तिष्क के कार्य लिखिए।
Ans:
यह चेतना, विचार, बुद्धि, स्मरण का केंद्र होता है और यह सोचने, समझने, विचारने, स्मरण करने, याद रखने आदि क्रियाओं को संचालित करता है।
यह व्यक्ति के प्रेम, क्रोध, दुख आदि क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
सेरीब्रम का फ्रंटल लोब ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
सेरीब्रम का पेराइटल लोब स्पर्श, ताप, व दर्द आदि संवेदनाओं को नियंत्रित करता है।
सेरीब्रम का ऑक्सीपिटल लोब दृष्टि क्षेत्र पर कार्य करता है।
सेरीब्रम का टेंपोरल लोब श्रवण केंद्र एवं घ्राण केंद्र होता है। अतः यह सुनने व सूंघने की क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
यह शरीर के सभी गतिविधियों का नियंत्रण करता है इसलिए इसे शरीर का नियंत्रण कक्ष या केंद्र कहते हैं।
Q.13 तंत्रिका कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए।
Ans:
Long Type Questions
Q.1 मानव तंत्रिका तंत्र के वर्गीकरण को समझाइए।
Ans: मानव तंत्रिका तंत्र (Human Nervous System)
A) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System)
मस्तिष्क (Brain)
मेरुरज्जु (Spinal cord)
B) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System)
कायिक तंत्रिका तंत्र : अक्षीय अंगों पर कार्य करता है।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र : आंतरिक अनेक्षिक अंगों पर कार्य करता है।
अनुकंपी तंत्रिका तंत्र
परानुकंपी तंत्रिका तंत्र
तांत्रिकाएं
संवेदी तंत्रिका: यह सूचनाओं को शरीर के विभिन्न अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाता है।
प्रेरक तंत्रिका: यह सूचनाओं को कें
Long Type Questions
Q.1 मानव तंत्रिका तंत्र के वर्गीकरण को समझाइए।
Ans: मानव तंत्रिका तंत्र (Human Nervous System)
A) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System)
मस्तिष्क (Brain)
मेरुरज्जु (Spinal cord)
B) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System)
कायिक तंत्रिका तंत्र : अक्षीय अंगों पर कार्य करता है।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र : आंतरिक अनेक्षिक अंगों पर कार्य करता है।
अनुकंपी तंत्रिका तंत्र
परानुकंपी तंत्रिका तंत्र
तांत्रिकाएं
संवेदी तंत्रिका: यह सूचनाओं को शरीर के विभिन्न अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाता है।
प्रेरक तंत्रिका: यह सूचनाओं को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के विभिन्न अंगों से तक पहुंचाता है।
Q.2 न्यूराॅन्स क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों को लिखिए।
Ans: न्यूरॉन (तंत्रिका) : यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती है।
न्यूरॉन के प्रकार (Types of neuron)
A) प्रवर्ध के आधार पर
एक-ध्रुवीय न्यूराॅन्स : ऐसे न्यूरॉन जिसमें केवल एक डेन्ड्राॅइट या एक्साॅन होता है, उसे एक-ध्रुवीय न्यूराॅन्स कहते हैं।
द्वि-ध्रुवीय न्यूराॅन्स : ऐसे न्यूरॉन जिसमें केवल एक डेन्ड्राॅइट एवं एक एक्साॅन होता है, उसे द्वि-ध्रुवीय न्यूराॅन्स कहते हैं।
बहु-ध्रुवीय न्यूराॅन्स : ऐसे न्यूरॉन जिसमें अनेक डेन्ड्राॅइट एवं एक एक्साॅन होता है, उसे बहु-ध्रुवीय न्यूराॅन्स कहते हैं।
B) तंत्रिकाक्ष के आधार पर
आच्छदी: ऐसे न्यूरॉन जिसके एक्साॅन के चारों ओर मायलिन शीथ पाई जाती है उसे आच्छदी न्यूरॉन कहते हैं।
आच्छदहीन: ऐसे न्यूरॉन जिसके एक्साॅन के चारों ओर मायलिन शीथ नहीं पाई जाती है उसे आच्छदहीन न्यूरॉन कहते हैं।
Q.3 तंत्रिकीय आवेगों के संवहन का सचित्र वर्णन कीजिए।
Ans: तंत्रिकीय आवेग : बाह्य एवं आंतरिक उद्दीपन का अनुभव संवेदी अंगों द्वारा होता है। इन अंगों की कोशिकाएं उद्दीपनों को ग्रहण करके उत्तेजित हो जाती है और इस उद्दीपन को तंत्रिका तंतुओं में पहुंचा देती है, इसी तंत्रिका तंतुओं के उद्दीपन को तंत्रिकीय आवेग कहते हैं। यह निम्नलिखित अवस्थाओं में पूर्ण होता है -
1) विरामावस्था (ध्रुवण) : इस अवस्था में तंत्रिकाओं में सूचना का प्रवाह नहीं होता इसलिए इसे विश्रामावस्था भी कहते हैं। तंत्रिका कोशिका के बाह्य कोशिकीय द्रव Na+ व अंतःकोशिकीय द्रव में K+ होता है। तंत्रिका कोशिका का एक्साॅन K+ की तुलना में Na+ के लिए 30 गुना अधिक पारगम्य होता है। अतः एक्सोलेमा के बाहर की ओर +Ve व अंदर की ओर -Ve होता है।
विश्रामावस्था का विभव -70 माइक्रोवोल्ट होता है।
इसका कारण यह है कि एक्सोलेमा के अंदर बाह्य कोशिकीय द्रव 2K+ लाने के लिए 3Na+ बाहर किए जाते हैं, Na+-K+ इसे पंप कहते हैं। अतः एक्साॅन के बाहर (+Ve) आयन बढ़ जाता है व अंदर (+Ve) कम हो जाता है।
2) सक्रिय अवस्था (विध्रुवण) : जब तंत्रिका को कोई उद्दीपन दिया जाता है तो आवेग पलट जाता है व बाह्य कोशिकीय द्रव -Ve आवेशित व अंतः कोशिकीय द्रव +Ve हो जाता है, इसे सक्रिय अवस्था भी कहते हैं। इस अवस्था में Na+ वोल्टेज गैटेड चैनल (VGC) खुल जाते हैं, जिसके कारण Na+ तेजी से अंदर आ जाते हैं।
सक्रिय अवस्था का विभव +30 से +45 माइक्रोवोल्ट होता है।
3) पुनर्ध्रुवण : इस अवस्था में फिर से एक्साॅन बाहर की ओर +Ve आवेशित व अंदर की ओर -Ve आवेशित हो जाता है। इसका कारण यह है कि जब K+ VGC खुल जाते हैं तो K+ अंदर से बाहर जाने लगते हैं अतः इस अवस्था में बाह्य कोशिकीय द्रव +Ve आवेशित व अंतःकोशिकीय द्रव -Ve आवेशित हो जाता है, इसलिए इसे पुनर्ध्रुवण कहते हैं।
D
Q.4 मस्तिष्क क्या है? इसका वर्गीकरण समझाइए।
Ans: मस्तिष्क (Brain)
इसकी उत्पत्ति एक्टोडर्म से होती है।
इसका भाई 1.4 केजी होता है।
मस्तिष्क में गुहाएं पाई जाती है जिसमें द्रव भरा होता है, जिसे सेरिब्रल स्पाइनल फ्लूइड (Cerebral Spinal Fluid) कहते हैं।
मस्तिष्क के भाग (Parts of brain)
A) अग्र मस्तिष्क (Fore brain or Prosencephalon)
1 टीलेनसेफेलाॅन
a) सेरीब्रम: यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है।
b) लिबिक तंत्र
2 डाइनसेफेलाॅन
a) एपिथैलेमस: डाइनसेफेलाॅन का छत होता है।
b) थैलेमस: डाइनसेफेलाॅन की दीवार होती है।
c) हाइपोथैलेमस: डाइनसेफेलाॅन का आधार होता है।
B) मध्य मस्तिष्क (Mid brain or Mesencephalon)
क्रुरा सेरीब्राई: यह उद्दीपनों को सेरीब्रम, सेरीबेलम, पोंस एवं मेडूला के मध्य रिले करने का कार्य करता है।
कॉर्पोरा क्वाड्रिजेमिना: दृष्टि, घ्राण व प्रतिवर्ती क्रियाओं का केंद्र होता है।
C) पश्च मस्तिष्क (Hind brain or Rhombencephalon)
पोन्स: यह श्वसन क्रिया का केंद्र होता है।
मेडूला ऑब्लांगेटा: यह श्वसन, पाचन, परिसंचरण (अनैच्छिक क्रियाओं) का केंद्र होता है।
सेरीबेलम/अनुमस्तिष्क: यह पेशियों व मस्तिष्क के मध्य समन्वय बनाकर रखता है।
Q.5 नेत्र की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
Ans: नेत्र की संरचना (Structure of eye)
A) बाहरी स्तर (Outer layer): कॉर्निया एवं स्क्लेरा का बना होता है।
कॉर्निया (Cornea): आँख के कॉर्निया (cornea) में रक्त नहीं पाया जाता है। यह आंख का पारदर्शी, सामने का हिस्सा होता है जो प्रकाश को अंदर जाने देता है।
स्क्लेरा (Sclera): यह नेत्र का सफेद भाग होता है।
B) मध्य स्तर (Middle layer): कोराॅईड, आइरिस एवं सिलिअरीपेशी से मिलकर बना होता है।
कोराॅईड (Choroid)
आइरिस (Iris) : आइरिस के मध्य खाली जगह पाया जाता है जिसे प्यूपिल कहते हैं। यह प्रकाश के प्रवेश के लिए होता है।
सिलिअरीपेशी (Ciliary muscle) : यह जलीय द्रव्य (आंसू) बनाता है।
C) आंतरिक स्तर (Inner layer): इसके अंतर्गत रेटिना आता है।
लेंस के पीछे रेटिना में एक गर्त पाया जाता है जिसे पीत बिंदु या फोविया कहते हैं। यहां पर प्रकाश पड़ने से सबसे स्पष्ट प्रतिबिंब बनता है।
रेटिना में दो प्रकार की प्रकाश संवेदी कोशिकाएं उपस्थित होती है - शंकु (Cones) एवं शलाका (Rods)
1 शंकु (Cones) :
तीव्र प्रकाश में प्रतिबिंब बनाता है।
यह रंगीन प्रतिबिंब बनाता है।
इसमें आइडोपसिन/फोटोपसिन नामक वर्णक पाया जाता है।
2 शलाका (Rods) :
मंद प्रकाश में प्रतिबिंब बनाता है।
यह ब्लैक एंड व्हाइट प्रतिबिंब बनाता है।
इसमें रोडोपसिन/ स्कोटाॅपसिन वर्णक पाया जाता है।
Q.6 नेत्र से संबंधित विकारों को समझाइए।
Ans: नेत्र से संबंधित विकार निम्नलिखित है -
मोतियाबिंद (Cataract): लेंस के ऊपर कैरोटीन प्रोटीन के जमाव के कारण प्रतिबिंब धुंधला दिखाई देता है इसे मोतियाबिंद कहते हैं।
रंग अंधता (Color blindness): शंकु के अभाव होने पर नेत्र तीव्र प्रकाश में रंगीन प्रतिबिंब नहीं बना पाता जिससे रंगों का ज्ञान नहीं हो पता है, इसे रंग अंधता कहते हैं।
जीरोफ्थैल्मिया (Xerophthalmia): विटामिन ए की कमी से कंजक्टाइवा में कैरोटीन का जमाव हो जाता है जिससे कंजक्टाइवा घनी हो जाती है तथा इसके कारण ठीक से दिखाई नहीं देता है, इसे जीरोफ्थैल्मिया कहते हैं।
कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis): कॉर्निया के आगे एक जेली पाई जाती है जिसे कंजक्टाइवा कहते हैं। जब इसमें धूल, धुआं आदि कारणों से सूजन हो जाता है तो इसे कंजेक्टिवाइटिस कहते हैं।
रतौंधी (Night blindness): विटामिन ए की कमी से रोडोपसिन वर्णक का संश्लेषण कम हो जाता है जिससे कम प्रकाश में साफ दिखाई नहीं देता है, इसे रतौंधी कहते हैं।
काला मोतियाबिंद (Black cataract): जब नेत्र के श्लेम के कैनाल में अवरोध उत्पन्न हो जाता है, जिससे जलीय द्रव्य का अवशोषण रुक जाता है जिसके कारण नेत्र गोलक के अंदर दबाव पड़ता है तथा रेटिना की कोशिकाएं नष्ट होती है। इसके कारण प्रतिबिंब स्पष्ट नहीं बन पाता, यह काला मोतियाबिंद कहलाता है।
Q.7 कर्ण की संरचना समझाइए एवं इसके कार्य लिखिए।
Ans: कर्ण की संरचना (Structure of ear)
1 बाह्य कर्ण (External ear)
इसके अंतर्गत पिन्ना एवं टीम्पनम आता है।
कार्य: ध्वनि तरंगों को एकत्रित करता है।
2 मध्य कर्ण (Middle ear)
तीन अस्थियों (मेलियस, इनकस, स्टैपिस) का एवं यूस्टेचियन नलिका का बना होता है
कार्य : ध्वनि तरंगों का आवर्धन करता है। इस दौरान ध्वनि अधिक कंपन करती है।
3 अंत: कर्ण (Internal ear)
a) वेस्टीबुलर उपकरण : यह शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
अर्ध्दचंद्राकार नलिका (SCC)
इसकी संख्या तीन होती है। इसमें एम्पुला पाया जाता है जो गतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
यूट्रीकल: तीन अर्ध्दचंद्राकार नलिका लंबवत होते है व तीनों SCC मिलकर एक कक्ष में खुलती है, जिसे यूट्रीकल कहते हैं। यह स्थैतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
सैक्यूल: यूट्रीकल जिस कक्ष में खुलता है, उसे सैक्यूल कहते हैं।यह स्थैतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
b) कोक्लिया: यह वास्तव में सुनने का काम करता है। इसमें कोर्टी के अंग (संवेदी अंग) पाए जाते हैं, जिसे सुनने की आधारभूत इकाई कहते हैं।
कार्य : सुनना एवं शरीर का संतुलन बनाए रखना।
कार्य
शरीर का स्थैतिक संतुलन बनाए रखता है।
शरीर का गतिक संतुलन बनाए रखता है।
सुनने का कार्य करता है।
Q.8 शंकु (cones) एवं शलाका (rods) में अंतर लिखिए।
Q.9 केंद्रीय तंत्रिका तंत्र एवं परिधीय तंत्रिका तंत्र में अंतर लिखिए।
Q.10 अनुकंपी एवं परानुकंपी तंत्रिका में अंतर लिखिए।
Q.11 अंध बिंदु एवं पीत बिंदु में अंतर लिखिए।
Q.12 कोराॅइड एवं रेटिना में अंतर लिखिए।