परमाणु : पदार्थ के अत्यंत सूक्ष्म एवं अविनाशी एवं अविभाज्य कानों से मिलकर बना होता है उन कणों को परमाणु कहते हैं।
परमाणु में इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन पाए जाते हैं।
इलेक्ट्रॉन इसकी खोज जे.जे थॉमसन द्वारा 1897 में की गयी।
प्रोटॉन इसकी खोज गोल्डस्टीन के द्वारा 1836 में की गयी।
न्यूट्रॉन इसकी खोज जेम्स चैडविक के द्वारा 1932 में की गयी।
कैथोड किरणों के गुण (इलेक्ट्रॉन की खोज)
कैथोड किरण का अध्ययन सबसे पहले सन 1870 में विलियम क्रॉप्स ने किया।
इसके अनुसार -
कैथोड किरणें सरल रेखा में गति करती है।
यह ऋणात्मक प्रकृति की होती है।
यह चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित होती है।
यह किरणें छोटे-छोटे द्रव्य कणों से मिलकर बनी होती है।
यह किरणें X-किरणें उत्पन्न करती है।
यह ऊष्मीय प्रभाव उत्पन्न करती है।
यह फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती है।
Note : इलेक्ट्रॉन की खोज जे.जे थॉमसन द्वारा सन् 1897 में की गयी।
इलेक्ट्रॉन का आवेश 1.6×10-¹⁹ C होता है।
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान 9.1×10-³¹ Kg होता है।
एनोड किरणों या कैनाल किरणों के गुण (प्रोटॉन की खोज)
वे किरणें जो धनावेशित कणों से मिलकर बनी होती है, उसे एनोड किरणें या धनात्मक किरणें या कैनाल किरणें कहते हैं।
इसके गुण निम्नलिखित है -
एनोड किरणें सरल रेखा में गति करती है।
ये धनात्मक प्रकृति की होती है।
ये चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित होती है।
ये किरणें छोटे-छोटे द्रव्य कणों से मिलकर बनी होती है।
ये फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती है।
Note : प्रोटॉन की खोज गोल्डस्टीन द्वारा सन् 1836 में की गयी।
प्रोटॉन का आवेश +1.6×10-¹⁹ C होता है।
प्रोटॉन का द्रव्यमान 1.6×10-²⁷ Kg होता है।
न्यूट्रॉन की खोज
न्यूट्रॉन की खोज जेम्स चैडविक के द्वारा सन् 1932 में की गयी।
न्यूट्रॉन के गुण -
यह विद्युत का उदासीन कण है।
इस n⁰ से प्रदर्शित करते हैं।
इसकी भेदन क्षमता बहुत अधिक होती है।
न्यूट्रॉन की त्रिज्या 10-¹³cm होती है।
इसका द्रव्यमान 1.6×10-²⁷ Kg होता है।
थॉमसन का परमाणु मॉडल (तरबूज मॉडल)
सन् 1898 में जे.जे थॉमसन ने बताया कि परमाणु गोलाकार आकृति में होते हैं जिसमें धन आवेश समान रूप से वितरित होते हैं। इसमें इलेक्ट्रॉन बीच-बीच में गुथें रहते हैं। इलेक्ट्रॉन की संख्या संपूर्ण धन आवेश को उदासीन करने के लिए पर्याप्त होती है। इसमें इलेक्ट्रॉन इस प्रकार गुथें होते हैं जैसे तरबूज में बीज लगे होते हैं, इसलिए इसे तरबूज मॉडल भी कहा जाता है।
सीमाएं: रदरफोर्ड के अल्फा किरण प्रकीर्णन प्रयोग के परिणाम की व्याख्या नहीं कर सका।
रदरफोर्ड का अल्फा कण प्रकीर्णन (रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल)
सन 1911 में रदरफोर्ड ने स्वर्ण पत्र पर अल्फा कणों की बौछार किया एवं परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया।
इस प्रयोग के अनुसार -
अधिकांश कण स्वर्ण पत्र से बिना विचलित हुए सीधे निकल जाते हैं।
कुछ अल्फा कण निम्न कोणों पर विचलित हो जाते हैं, जिसे प्रकीर्णन कोण कहते हैं।
बहुत कम अल्फा कण विचलित होकर वापस लौट आते हैं।
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रदरफोर्ड परमाणु मॉडल के निष्कर्ष
परमाणु का अधिकांश भाग खोखला होता है।
अल्फा कण विचलित हो जाते हैं अर्थात् परमाणु के केंद्र पर धनात्मक आवेश होता है जिससे प्रतिकर्षित होकर अल्फा कण विचलित हो जाते हैं, उस केंद्रीय भाग को नाभिक कहा गया।
कुछ अल्फा कण वापस लौट आते हैं अतः नाभिक दृढ़ होता है एवं परमाणु में अत्यंत कम स्थान घेरता है।
परमाणु में नाभिक का आकार अत्यंत छोटा होता है।
इलेक्ट्रॉन एवं नाभिक के मध्य विद्युत आकर्षण बल पाया जाता है।
रदरफोर्ड मॉडल की सीमाएं
रदरफोर्ड परमाणु मॉडल के दोष निम्नलिखित है-
1) परमाणु का स्थायित्व : रदरफोर्ड के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर गति करते रहता है अर्थात् इलेक्ट्रॉन एक त्वरित आवेश है। चुंबकीय तरंगों के सिद्धांत के अनुसार त्वरित आवेश विद्युत चुंबकीय तरंगे उत्सर्जित करता है इसलिए इलेक्ट्रॉन को भी विद्युत चुंबकीय तरंगे उत्सर्जित करनी चाहिए। इस प्रकार यदि इलेक्ट्रॉन विद्युत चुंबकीय तरंग उत्सर्जित करेगा तो उसकी ऊर्जा कम होते जाएगी, फलस्वरुप उसकी वृत्तीय कक्षा की त्रिज्या कम हो जाएगी और इलेक्ट्रॉन नाभिक में गिर जाएगा अर्थात् परमाणु अस्थाई होगा।
2) सतत् स्पेक्ट्रम की व्याख्या : यदि त्वरित इलेक्ट्रॉन विद्युत चुंबकीय तरंगे उत्सर्जित करता है, तब हम जानते हैं कि विद्युत चुंबकीय तरंगों का स्पेक्ट्रम सतत् होता है किंतु परमाणु का स्पेक्ट्रम रेखीय होता है। अतः रदरफोर्ड इसकी व्याख्या नहीं कर पाए।
नील बोर का परमाणु मॉडल
सन 1913 में नील बोर ने परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया जो निम्न अनुसार है -
बोर के अनुसार, इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित बंद वृताकार मार्ग में गति करते हैं, इस वृताकार मार्ग को कक्षा कहते हैं।
प्रत्येक कक्षाएं ऊर्जा के निश्चित मात्रा से संलग्न होती है, जिन्हें ऊर्जा कोश कहते हैं। ऊर्जा कोशों को क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ या K,L,M,N से प्रदर्शित करते हैं।
नाभिक के सर्वाधिक पास के ऊर्जा कोश को प्रथम या K नाम दिया गया।
इलेक्ट्रॉन केवल उन निश्चित कक्षाओं में गति करते हैं जिनके लिए उसका कोणीय संवेग निम्न होता है -
mvr = nh/2π
m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
v = इलेक्ट्रॉन का वेग
r = कक्षा की त्रिज्या
n = कोशों की संख्या
h = प्लांक स्थिरांक
इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण कर उच्च ऊर्जा कोश में चले जाते हैं तथा अस्थाई होने के कारण स्थायित्व प्राप्त करने हेतु ऊर्जा मुक्त कर पुनः अपनी मूल कोश में वापस आ जाते हैं।
नील बोर मॉडल की सीमाएं या कमियां
बोर के परमाणु मॉडल की कमियां निम्नलिखित है -
यह परमाणु मॉडल केवल हाइड्रोजन जैसे परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या करता है जैसे - Li+², He+
अर्थात् यह केवल एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या करता है किंतु एक से अधिक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं करता।
बोर इलेक्ट्रॉन को केवल एक कण के रूप में मानता है लेकिन इसमें तरंग की प्रकृति भी होती है।
बोर का सिद्धांत एक इलेक्ट्रॉन की गति एवं स्थिति दोनों को निश्चितता के साथ परिभाषित करता है जबकि यह हाइजेन बर्ग के अनिश्चितता के सिद्धांत के विरुद्ध है, जिसके अनुसार 'किसी भी वस्तु की स्थिति तथा वेग एक ही समय पर सटीक रूप से नहीं मापी जा सकती।'
यह कोणीय संवेग के क्वांटिकरण को नहीं समझ सका।
इसमें माना गया की इलेक्ट्रॉन वृताकार कक्षाओं में गति करते हैं जबकि वे दीर्घ वृताकार कक्षाओं में गति करते हैं।
इसमें नाभिक को स्थाई माना गया जबकि नाभिक में अक्ष घूर्णन पाया जाता है।
क्वांटम संख्या
किसी परमाणु या तत्व के इलेक्ट्रॉन की स्थिति आकृति विन्यास को व्यक्त करने के लिए जी संख्याओं की आवश्यकता होती है उसे क्वांटम संख्या कहते हैं।
क्वांटम संख्या के प्रकार
क्वांटम संख्याएं मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है -
मुख्य क्वांटम संख्या
द्विगंशी क्वांटम संख्या
चुंबकीय क्वांटम संख्या
चक्रण क्वांटम संख्या
1. मुख्य क्वांटम संख्या : वह क्वांटम संख्या जो परमाणु के नाभिक से इलेक्ट्रॉन के बीच का डिस्टेंस बताता है मुख्य क्वांटम संख्या कहलाता है।
मुख्य बिंदु
मुख्य क्वांटम संख्या को 'n' से प्रदर्शित करते हैं।
इस क्वांटम संख्या से ऊर्जा कोशों का पता चलता है।
यह परमाणु के नाभिक से इलेक्ट्रॉन के बीच की दूरी बताता है।
मुख्य क्वांटम संख्या क्रमशः 1, 2, 3, 4 या K, L, M, N से दर्शाया जाता है जैसे -
n = 1(K)
n = 2(L)
n = 3(M)
n = 4(N)
किसी ऑर्बिट में मैक्सिमम '2n²' इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं जैसे -
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2.द्विगंशी क्वांटम संख्या : वह क्वांटम संख्या जो उपकोश का आकार या आकृति बताता है द्विगंशी क्वांटम संख्या कहलाता है।
मुख्य बिंदु
इसे 'l' से प्रदर्शित करते हैं।
इसका (l) मान मुख्य क्वांटम संख्या (n) के मान पर निर्भर करता है।
n के मान के लिए l का मान 0 से (n-1) तक हो सकता है।
l का मान 0, 1, 2, 3 हो सकता है।
इसे निम्न उपकोशों में बांटा गया है -
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l का मान इस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है -
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3.चुंबकीय क्वांटम संख्या : वह क्वांटम संख्या जो दिए गए उपकोश में आर्बिटल्स की संख्या तथा उनके अभिविन्यास का निर्धारण करता है चुंबकीय क्वांटम संख्या कहलाता है।
मुख्य बिंदु या महत्व
चुंबकीय क्वांटम संख्या के महत्व निम्नलिखित है -
इसे 'm' से प्रदर्शित करते हैं।
इसका मान 'l' के मान पर निर्भर करता है।
'l' के मान के लिए 'm' का मान -l से +l तक हो सकता है।
'm' का मान (2l+1) होता है। जैसे -
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4.चक्रण क्वांटम संख्या : वह क्वांटम संख्या जो किसी परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन के चक्रण को बताता है चक्रण क्वांटम संख्या कहलाता है।
मुख्य बिंदु या महत्व
इसे 's' से प्रदर्शित करते हैं।
's' का मान 'm' के मान पर निर्भर करता है।
's' के मुख्यतः दो मान होते है। जैसे -
1) +1/2 = दक्षिणावर्त चक्रण
2) -1/2 = वामावर्त चक्रण
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इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
किसी परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की व्यवस्था प्रदर्शित करने के लिए एक विन्यास का उपयोग किया जाता है जिसे इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कहते हैं।
उदाहरण : आयरन (Fe) में कुल 26 इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं, जिनकी व्यवस्था इस प्रकार होती है -
26Fe = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p⁶, 3d⁶, 4s²
यह आयरन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है। इसे ऑफबाऊ सिद्धांत के अनुसार इस प्रकार लिखा जाता है -
26Fe = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p⁶, 4s², 3d⁶
सामान्यतः इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ज्ञात करने के लिए पाऊली, हुण्ड और ऑफबाऊ के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की व्याख्या -
1.प्रथम आवर्त के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
इस प्रकार है -
1H = 1s¹
2He = 1s²
2.द्वितीय आवर्त के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
यह निम्न अनुसार होता है -
3Li = 1s², 2s¹
4Be = 1s², 2s²
5B = 1s², 2s², 2p¹
6C = 1s², 2s², 2p²
7N = 1s², 2s², 2p³
8O = 1s², 2s², 2p⁴
9F = 1s², 2s², 2p⁵
10Ne = 1s², 2s², 2p⁶
3.तृतीय आवर्त के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
यह इस प्रकार है -
11Na = 1s², 2s², 2p⁶, 3s¹
12Mg = 1s², 2s², 2p⁶, 3s²
13Al = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p¹
14Si = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p²
15P = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p³
16S = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p⁴
17Cl = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p⁵
18Ar = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p⁶ = 1s², 2s², 2p⁶, 3s², 3p⁶
परमाणु या ऑर्बिट में इलेक्ट्रॉन भरने के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन किया जाता है -
पाऊली का अपवर्जन सिद्धांत
इस सिद्धांत अनुसार "यदि किसी परमाणु में दो या दो से अधिक इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो तो उनकी चारो क्वांटम संख्याओं का मन एक समान नहीं हो सकता अर्थात कर क्वांटम संख्याओं में से किसी एक क्वांटम संख्या का मन अवश्य ही भिन्न होगा।"
माना किसी परमाणु में दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं अर्थात् फर्स्ट कक्षा ऑर्बिट स उपकोष में दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित है इन दोनों इलेक्ट्रोनिक के लिए क्वांटम संख्याओं का मन इस प्रकार है -
पहले इलेक्ट्रॉन के लिए
मुख्य क्वांटम संख्या n = 1
द्विगंशी क्वांटम संख्या l = 0
चुंबकीय क्वांटम संख्या m = 0
चक्रण क्वांटम संख्या s = +1/2
दूसरे इलेक्ट्रॉन के लिए
मुख्य क्वांटम संख्या n = 1
द्विगंशी क्वांटम संख्या l = 0
चुंबकीय क्वांटम संख्या m = 0
चक्रण क्वांटम संख्या s = -1/2
इस प्रकार एक ही उपकोष के दो इलेक्ट्रॉनों की चारो क्वांटम संख्याएं सामान नहीं होती चक्रण क्वांटम संख्या का मन भिन्न-भिन्न होता है।
अतः किसी परमाणु में दो या दो से अधिक इलेक्ट्रॉन होने पर उसके चारो क्वांटम संख्याओं का मन एक समान नहीं हो सकता।
उदाहरण : हीलियम (2He) = 1s²
पहले इलेक्ट्रॉन के लिए क्वांटम संख्या का मान
n = 1
l = 0
m = 0
s = +1/2
दूसरे इलेक्ट्रॉन के लिए क्वांटम संख्या का मान
n = 1
l = 0
m = 0
s = -1/2
हुण्ड के अधिकतम बहुलता का नियम
इस नियमानुसार "किसी परमाणु के उपकोश के कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन तब तक नहीं होता, जब तक उस उपकोश के सभी कक्षकों में एक-एक इलेक्ट्रॉन नहीं भर जाते।"
माना कि किसी परमाणु के उपकोश में 4 इलेक्ट्रॉन उपस्थित है अर्थात् np⁴ है।
अब हम जानते हैं कि p उपकोश में 3 कक्षक /आर्बिटल्स होते हैं। अतः इन आर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन इस प्रकार होगा -
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हुण्ड की अधिकतम बहुलता नियमानुसार,
उदाहरण : ###
ऑफबाऊ का सिद्धांत
इस सिद्धांत अनुसार "किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन उस कक्षा में पहले भरते हैं जिसकी ऊर्जा कम होती है अर्थात् किसी एक परमाणु में इलेक्ट्रॉन निम्न ऊर्जा वाले कक्षाओं से उच्च ऊर्जा वाले कक्षाओं की ओर भरते हैं, इसे ऑफबाऊ का सिद्धांत कहते हैं।"
####
व्याख्या
किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन भरने का क्रम कक्षाओं की ऊर्जा पर निर्भर करता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है -
1.कक्षाओं की ऊर्जा का क्रम
प्रथम कक्षा की ऊर्जा सबसे कम होती है। कक्षाओं के मध्य ऊर्जा का क्रम इस प्रकार होता है -
प्रथम कक्षा < द्वितीय कक्षा < तृतीय कक्षा < चतुर्थ कक्षा
2.उपकोशों के ऊर्जा का क्रम
s उपकोश की ऊर्जा सबसे कम होती है। उपकोशों के मध्य ऊर्जा का क्रम इस प्रकार है -
s उपकोश < p उपकोश < d उपकोश < f उपकोश
(n+l) नियम
इस नियमानुसार "किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन उस कक्षक में पहले भरता है जिसके लिए (n+l) का मन कम होता है। यदि एक से अधिक उपकोश के कक्षकों के लिए (n+l) का मान समान हो, तो इलेक्ट्रॉन उस उपकोश के कक्षक में पहले भरता है जिसके लिए (n+l) का मान कम होता है।"
व्याख्या
4s एवं 3d के लिए (n+l) का मान इस प्रकार होंगे -
4s में n = 4, l = 0
तो (n+l) = (4+0) = 4
3d में n = 3, l = 2
तो (n+l) = (3+2) = 5
अतः इलेक्ट्रॉन पहले 4s कक्षक में भरेंगे तत्पश्चात् 3d कक्षक में भरेंगे।
3d, 4p एवं 5s के लिए (n+l) का मान इस प्रकार होगा -
3d में n = 3, l = 2, तो (n+l) = (3+2) = 5
4p में n = 4, l = 1, तो (n+l) = (4+1) = 5
5s में n = 5, l = 0, तो (n+l) = (5+0) = 5
3d, 4p एवं 5s के लिए (n+l) का मान एकसमान है। अतः इलेक्ट्रॉन उस उपकोश में पहले भरेगा, जिसके लिए n का मान कम हो।
अतः इलेक्ट्रॉन भरने का क्रम 3d, 4p, 5s होगा।
उदाहरण :
3Li = 1s², 2s¹
4Be = 1s², 2s²
5B = 1s², 2s², 2p¹
हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार,
"किसी गतिमान कण की स्थिति एवं संवेग का निर्धारण एक साथ नहीं किया जा सकता अर्थात् यदि किसी गतिमान कण की स्थिति का निर्धारण करें, तो हम उसके संवेग का निर्धारण नहीं कर सकते एवं यदि हम उसका संवेग का निर्धारण करें, तो हम उसके स्थिति का सटीक रूप से निर्धारण नहीं कर सकते।"
Note : किसी गतिमान कण की स्थिति एवं संवेग का एक साथ निर्धारण संभव नहीं है।
गणितीय व्याख्या
किसी गतिमान कण की स्थिति एवं संवेग में परिवर्तन का गुणनफल सदैव h/4π के बराबर या उससे अधिक होता है। अतः -
∆x × ∆P ≥ h/4π --------(1)
जहां
∆x = स्थिति में अनिश्चितता
∆P = संवेग में अनिश्चितता
h = प्लांक स्थिरांक
समीकरण (1) में संवेग का मान रखने पर,
∆x × ∆(mv) ≥ h/4π
∆x × ∆v ≥ h/4πm ------(2)
यह हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता समीकरण है।
हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता सिद्धांत का महत्व :
इस सिद्धांत के निम्नलिखित महत्व है -
1.दैनिक जीवन में महत्व : दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले सभी वस्तुओं का द्रव्यमान अधिक होता है जिसके कारण यह सिद्धांत दैनिक जीवन में दिखाई नहीं देता।
2.सूक्ष्म कणों के लिए : सूक्ष्म कणों (जैसे इलेक्ट्रॉन) के लिए इस सिद्धांत की उपेक्षा नहीं की जा सकती। सूक्ष्म कणों का द्रव्यमान बहुत कम होता है इसलिए ∆x × ∆v का मान बहुत अधिक होता है। इलेक्ट्रॉन जैसे सूक्ष्म कणों के अध्ययन के लिए यह सिद्धांत उपेक्षणीय नहीं माना जा सकता।
हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत की निर्भरता -
संवेग पर : यदि संवेग का मान अधिक हो, तो ∆x का मान कम होगा।
समीकरण 1 से,
∆x ∝ 1/∆P
यदि ∆P अधिक, तो ∆x का मान कम
कण की स्थिति पर : यदि ∆x का मान अधिक हो, तो ∆P का मान कम होगा।
समीकरण 1 से,
∆P ∝ 1/∆x
यदि ∆x का मान ज्यादा, तो ∆P का मान कम
कण के द्रव्यमान पर : यदि कण का द्रव्यमान अधिक हो, तो ∆x × ∆v का मन कम होगा।
यदि कण का द्रव्यमान बहुत कम हो, तो ∆x × ∆v का मन अधिक होगा।
कक्षकों की आकृति : कक्षक/आर्बिटल : नाभिक के चारों ओर का वह त्रिविम क्षेत्र जहां पर इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की संभावना अधिक होती है कक्षक/आर्बिटल कहलाता है।
कक्षकों के प्रकार (Types of orbital) : उपकोश के आधार पर कक्षक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं -
s उपकोश या कक्षक
गुण एवं लक्षण -
वृताकार होते हैं।
अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन पाए जा सकते हैं।
इसमें केवल एक ऑर्बिटल होता हैं।
यह अदिशात्मक प्रकृति का होता है।
इसके लिए l = 0, m = 0, s = ±1/2 होता है।
p उपकोश या कक्षक
गुण एवं लक्षण -
ये डंबलाकर होते हैं।
इसमें तीन कक्षक (आर्बिटल्स) होते हैं।
इसमें अधिकतम 6 इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।
इसकी प्रकृति दिशात्मक होती है।
इसके लिए l = 1, m = -1 to +1, s = ±1/2 होता है।
d उपकोश या कक्षक
गुण एवं लक्षण -
डबल डंबलाकर होते हैं।
इसमें पांच ऑर्बिटल्स पाए जाते हैं।
इसमें अधिकतम 10 इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।
इन आर्बिटल्स की प्रकृति दिशात्मक होती है।
इसके लिए l = 2, m = -2 to +2, s = ±1/2 होता है।है।
f उपकोश या कक्षक
गुण एवं लक्षण -
इसकी आकृति अनिश्चित होता है।
इसमें 7 आर्बिटल्स पाए जाते हैं।
इसमें अधिकतम 14 इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।
इन आर्बिटल्स की प्रकृति दिशात्मक होती है।
इसके लिए l = 3, m = -3 to +3, s = ±1/2 होता है।
द्रव्य की द्वैत प्रकृति या डी ब्रोग्ली तरंग सिद्धांत
द्रव्य के गतिमान कण उपयुक्त परिस्थितियों में तरंग की भांति व्यवहार करते हैं, इन तरंगों को डी ब्रोग्ली तरंगे कहते हैं तथा उनके तरंगदैर्ध्य को डी ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य कहते हैं।
डी ब्रोग्ली का समीकरण :
डी ब्रोग्ली में प्लांक सिद्धांत एवं आइंस्टीन की अपेक्षिकता सिद्धांत के आधार पर तरंग समीकरण प्रस्तुत किया जिसे डी ब्रोग्ली का तरंग समीकरण कहते हैं।
प्लांक सिद्धांत : इसके अनुसार, किसी गतिमान कण की ऊर्जा hf के बराबर होता है अर्थात्
E = hf ----(1)
आइंस्टीन का अपेक्षिकता सिद्धांत : इस सिद्धांत के अनुसार, किसी गतिमान कण की ऊर्जा mc² के बराबर होता है अर्थात्
E = mc² -------(2)
समीकरण (1) और (2) से,
hf = mc² (f = c/λ)
hc/λ = mc²
h/λ = mc (c~v)
h/λ = mv (P = mv)
h/λ = P
λ = h/P -------(3)
जहां
λ = तरंगदैर्ध्य
h = प्लांक स्थिरांक
P = संवेग
अतः समीकरण (3) अभीष्ट व्यंजक है।
अल्फा, बीटा एवं गामा किरण में अंतर लिखिए।
कक्षा एवं कक्षक में अंतर लिखिए।