हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
अक्क महादेवी
अक्क महादेवी
कवयित्री भूख, प्यास, नींद, क्रोध, मोह, लोभ, मद, ईर्ष्या आदि इंद्रियों से निवेदन करती हैं कि वे भक्ति के मार्ग में विघ्न न डालें। वह चाहती हैं कि ये इंद्रियाँ उनके ध्यान में विघ्न न डालें, ताकि वह अपने आराध्य शिव की भक्ति में लीन हो सकें।
कवयित्री शिव से प्रार्थना करती हैं कि वह उन्हें ऐसी परिस्थितियों में डालें, जहाँ उनका अहंकार नष्ट हो जाए। वह चाहती हैं कि वह भीख मांगने की स्थिति में आएं, लेकिन कोई उन्हें कुछ न दे। यदि कोई देने के लिए हाथ बढ़ाए, तो वह गिर जाए, और यदि वह उसे उठाने झुके, तो कोई कुत्ता आकर उसे छीन ले। इस प्रकार, वह अपने अहंकार को पूरी तरह से नष्ट करना चाहती हैं।
कविता का उद्देश्य और संदेश
इस कविता के माध्यम से अक्क महादेवी ने यह संदेश दिया है कि भक्ति के मार्ग में इंद्रियों और अहंकार से मुक्त होना आवश्यक है। वह चाहती हैं कि व्यक्ति अपने भीतर के विकारों को नियंत्रित करके शिव की भक्ति में लीन हो। उनका यह भी मानना है कि जब तक व्यक्ति अपने अहंकार और इंद्रियों से मुक्त नहीं होता, तब तक वह सच्ची भक्ति की प्राप्ति नहीं कर सकता।
1. इस कविता की रचना किसने की है?
A) माखनलाल चतुर्वेदी
B) अक्क महादेवी ✅
C) सुमित्रानंदन पंत
D) हरिवंश राय बच्चन
2. कविता का मुख्य विषय क्या है?
A) प्रकृति की सुंदरता
B) भक्ति और अहंकार/इंद्रियों का नियंत्रण ✅
C) स्वतंत्रता संग्राम
D) बाल जीवन
3. कवि इंद्रियों से क्या निवेदन करती हैं?
A) उन्हें हमेशा सक्रिय रहने दें
B) भक्ति के मार्ग में विघ्न न डालें ✅
C) केवल शिक्षा दें
D) भोजन में मदद करें
4. कवि किस देवता की भक्ति में लीन हैं?
A) विष्णु
B) शिव ✅
C) कृष्ण
D) गणेश
5. कविता में “भूख और प्यास” का क्या प्रतीक है?
A) प्राकृतिक आवश्यकताएँ
B) इंद्रियों और इच्छाओं का प्रतीक ✅
C) समाज का प्रतीक
D) स्वतंत्रता
6. कविता में अहंकार को कैसे नष्ट करने का विचार है?
A) शिक्षा से
B) कठिन परिस्थितियों और निर्बल होने से ✅
C) खेल-कूद से
D) दौलत से
7. कविता का उद्देश्य क्या है?
A) बाहरी पूजा का महत्व समझाना
B) भक्ति के मार्ग में आंतरिक शुद्धता और समर्पण दिखाना ✅
C) प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण
D) समाज सुधार
8. कवि क्यों चाहती हैं कि कोई उन्हें कुछ न दे?
A) ताकि वे भूखे रहें
B) ताकि उनका अहंकार नष्ट हो जाए ✅
C) ताकि उन्हें कष्ट मिले
D) ताकि वे ध्यान न करें
9. कविता में कुत्ते का क्या प्रतीक है?
A) भय
B) अहंकार और बाहरी दुनिया की बाधाएँ ✅
C) भक्ति
D) मित्रता
10. कविता का मुख्य संदेश क्या है?
A) केवल पूजा से भक्ति संभव है
B) भक्ति के मार्ग में आंतरिक शुद्धता और इंद्रियों तथा अहंकार से मुक्त होना आवश्यक है ✅
C) प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लें
D) सामाजिक जीवन पर ध्यान दें
1. कविता का मुख्य विषय और उद्देश्य क्या है?
उत्तर: “हे भूख!” कविता का मुख्य विषय भक्ति और इंद्रियों/अहंकार का नियंत्रण है। कवयित्री अक्क महादेवी अपने भीतर चल रही इच्छाओं, क्रोध, लोभ, अहंकार और अन्य इंद्रियों से निवेदन करती हैं कि वे भक्ति के मार्ग में विघ्न न डालें। उनका उद्देश्य पूर्ण आत्मसमर्पण और ईश्वर की भक्ति को प्राप्त करना है। कविता यह संदेश देती है कि भक्ति केवल बाहरी पूजा नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और समर्पण के माध्यम से संभव है।
2. कविता में इंद्रियों का क्या महत्व है?
उत्तर: कविता में इंद्रियाँ जैसे भूख, प्यास, नींद, क्रोध, मोह, लोभ भक्ति में बाधा डालने वाली शक्तियाँ हैं। कवयित्री इनसे निवेदन करती हैं कि वे उसके ध्यान और भक्ति को न बिगाड़ें। यह दर्शाता है कि भक्ति मार्ग में व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और संयम आवश्यक हैं।
3. अहंकार का नाश कविता में कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर: कवयित्री चाहती हैं कि उन्हें ऐसी परिस्थितियाँ मिलें जहाँ उनका अहंकार नष्ट हो। वे कहते हैं कि यदि कोई उन्हें कुछ देने आए, तो गिर जाए; यदि वह उठाने झुके, तो कुत्ता छीन ले। यह पूरी तरह से अहंकार की विनाश प्रक्रिया और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
4. कविता का सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश क्या है?
उत्तर: कविता का संदेश है कि भक्ति मार्ग में इंद्रियों और अहंकार से मुक्त होना आवश्यक है। आंतरिक शुद्धता और समर्पण के बिना सच्ची भक्ति संभव नहीं। यह हमें सिखाती है कि आध्यात्मिक उन्नति केवल ईश्वर के प्रति विश्वास और संयम से ही संभव है।
5. कवयित्री का भक्ति भाव कैसे प्रकट होता है?
उत्तर: कवयित्री का भक्ति भाव उनके इंद्रियों से निवेदन और अहंकार नष्ट करने की इच्छा में प्रकट होता है। उनका सम्पूर्ण समर्पण, विनम्रता और आत्मसंयम भक्ति के मार्ग में उनकी गहरी श्रद्धा को दर्शाता है।
1. कविता का मुख्य विषय और उद्देश्य क्या है?
उत्तर: “मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर” कविता का मुख्य विषय ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति है। कवयित्री ईश्वर को जूही के फूल की तरह कोमल और सुगंधित मानती हैं। उनका उद्देश्य दर्शाना है कि भक्ति केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति प्रेम और आत्मसमर्पण की अनुभूति है।
2. जूही के फूल का प्रतीक कविता में क्या है?
उत्तर: जूही का फूल कोमलता, सुगंध और पवित्रता का प्रतीक है। कवयित्री ईश्वर को इसी कोमलता और शुद्धता के रूप में देखती हैं। यह उनके भक्ति भाव और ईश्वर के प्रति सादगी का प्रतीक है।
3. कवयित्री ईश्वर से क्या प्रार्थना करती हैं?
उत्तर: कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वह उन्हें सच्ची भक्ति, शांति और आत्मसमर्पण का अनुभव दें। वे चाहती हैं कि भक्ति मार्ग में उनके मन में कोई विकार या इंद्रियों का प्रभाव न हो, ताकि उनकी भक्ति पूर्ण और निरंतर बनी रहे।
4. कविता का संदेश क्या है?
उत्तर: कविता का संदेश यह है कि भक्ति का मार्ग केवल पूजा और नियमों तक सीमित नहीं, बल्कि प्रेम, संवेदनशीलता और आत्मसमर्पण तक फैला होना चाहिए। जूही के फूल के माध्यम से कवयित्री भक्ति की कोमलता और सुंदरता का प्रतीक प्रस्तुत करती हैं।
5. कवयित्री का भक्ति भाव कैसे प्रकट होता है?
उत्तर: कवयित्री का भक्ति भाव उनके ईश्वर की कोमलता की कल्पना और आत्मसमर्पण की प्रार्थना में प्रकट होता है। वह चाहते हैं कि उनका मन शुद्ध और भक्ति में लीन रहे। कविता में उनके शब्दों में प्रेम, संवेदनशीलता और ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास स्पष्ट दिखाई देता है।
1. लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं – इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर: कविता में अक्क महादेवी बताती हैं कि इंद्रियाँ जैसे भूख, प्यास, क्रोध, लोभ, मोह आदि मानव को भक्ति और आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर होने से रोकती हैं। ये इच्छाएँ और लालसाएँ मन को भटका देती हैं और ध्यान को विचलित करती हैं। जब व्यक्ति अपने लक्ष्य – यानी ईश्वर की भक्ति और आत्मज्ञान – को प्राप्त करना चाहता है, तब इन इंद्रियों पर नियंत्रण आवश्यक है। यदि इंद्रियाँ अनियंत्रित रहें, तो मन बाहरी और क्षणिक वस्तुओं में फँस जाता है और लक्ष्य से ध्यान हट जाता है। इसलिए कवयित्री इन इंद्रियों से निवेदन करती हैं कि वे भक्ति मार्ग में बाधा न डालें, ताकि व्यक्ति अपना लक्ष्य पूर्ण रूप से प्राप्त कर सके।
2. “अरे चंचल! मत चुक अवसर” – इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति में कवयित्री हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में प्राप्त अवसरों को गंवाना नहीं चाहिए। भक्ति और आत्मसाक्षात्कार का मार्ग कठिन है और अवसर सीमित हैं। यदि मन या इंद्रियाँ व्याकुल हों, तो व्यक्ति इन अद्भुत अवसरों को खो देता है। कवयित्री इसे चेतावनी और निवेदन दोनों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनका आशय है कि व्यक्ति अपने भीतर की इच्छाओं, अहंकार और विकारों को नियंत्रित करके इन अवसरों का सदुपयोग करे और भक्ति, ध्यान तथा आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर रहे।
3. “अपना घर” से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर: कविता में “अपना घर” मानव के अपने मन और अहंकार का प्रतीक है। कवयित्री कहती हैं कि भक्ति में सफलता पाने के लिए व्यक्ति को अपने मन, स्वाभिमान और अहंकार की सीमाओं को भूलना चाहिए। इसे भूलकर वह पूर्ण रूप से ईश्वर में लीन हो सके। यह भौतिक और मानसिक बंधनों से मुक्ति का संकेत है। अपना घर भूलना इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति अहंकार, इच्छाओं और इंद्रियों की सीमा से मुक्त होकर सच्ची भक्ति और आत्मज्ञान की प्राप्ति करे।
4. अहंकार नष्ट करने की आवश्यकता कविता में क्यों दिखाई गई है?
उत्तर: कवयित्री का मानना है कि अहंकार भक्ति और आत्मसाक्षात्कार की राह में सबसे बड़ी बाधा है। अहंकार व्यक्ति को अपनी सीमाओं और इच्छाओं में फँसा देता है। कविता में उन्होंने उदाहरण देकर दिखाया कि अगर कोई सहायता करे, तो व्यक्ति गिर जाए; अगर वह उठाने झुके, तो कुत्ता उसे छीन ले। यह प्रतीकात्मक है कि व्यक्ति को अपने अहंकार और आत्मसम्मान को पूरी तरह त्यागना चाहिए। केवल तब वह ईश्वर में पूर्ण रूप से लीन होकर भक्ति और आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।
5. कविता का संदेश और भक्ति में आंतरिक शुद्धता का महत्व।
उत्तर: कविता का मुख्य संदेश है कि भक्ति केवल बाहरी पूजा या नियमों तक सीमित नहीं होती, बल्कि आंतरिक शुद्धता, समर्पण और इंद्रियों एवं अहंकार से मुक्त होना आवश्यक है। कवयित्री दिखाती हैं कि भक्ति मार्ग में इच्छाएँ और विकार बाधक होते हैं। व्यक्ति को अपने भीतर की सीमाओं और मनोवैज्ञानिक बाधाओं को पहचानकर उन्हें नियंत्रित करना चाहिए। केवल तब वह सच्ची भक्ति, आत्मसमर्पण और ईश्वर का अनुभव प्राप्त कर सकता है। यह कविता आध्यात्मिक चेतना और जीवन में संतुलन का मार्ग भी बताती है।