Q.1 स्कंदन/ अवक्षेपण किसे कहते हैं? हार्डी सुल्जे का नियम क्या है?
Ans: विद्युत अपघट्य के विलयन द्वारा कोलाइडी विलयन को अवक्षेपित करने की प्रक्रिया स्कंदन कहलाती है। इसे अवक्षेपण भी कहते हैं।
हार्डी सुल्जे का नियम : हार्डी सुल्जे के नियम के दो कथन है जो निम्नलिखित है -
किसी कोलाइड विलयन को विक्षेपित करने के लिए विपरीत आवेशित आयन की आवश्यकता होती है।
किसी आएं पर जितना अधिक आवेश होता उसके स्कंदन क्षमता उतनी ही अधिक होगी।
समान संयोजकता वाले आयनो की स्कंदन क्षमता समान होती है एवं ज्यादा संयोजकता वाले आयनों की स्कंदन क्षमता अधिक होती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जिस आयन की संयोजकता अधिक होगी उसकी स्कंदन क्षमता उतनी ही अधिक होगी।
धनायनों के स्कंदन क्षमता का बढ़ता क्रम निम्न अनुसार है -
Na+ < Mg+² < Al+³ < C+⁴
ऋणायनों के स्कंदन क्षमता का बढ़ता क्रम निम्न अनुसार है -
Cl- < SO4-² < PO4-³
Q.2 अधिशोषण किसे कहते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों को समझाइए।
Ans: अधिशोषण : किसी ठोस या द्रव की सतह पर किसी पदार्थ के अणुओं का आकर्षित होकर जुड़ने की प्रक्रिया अधिशोषण कहलाती है।
ये दो प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है -
1 भौतिक अधिशोषण : वह अधिशोषण जिसमें अधिशोषक एवं अधिशोष्य के मध्य दुर्बल आकर्षण बल पाया जाता है भौतिक अधिशोषण कहलाता है।
यह अविशिष्ट होता है।
भौतिक अधिशोषण कम ताप पर अधिक होता है।
यह उत्क्रमणीय प्रकृति का होता है।
यह अस्थायी होता है।
यह बहुपरतीय होता है।
इसमें अधिशोषक एवं अधिशोष्य के मध्य दुर्बल आकर्षण बल पाया जाता है ।
सक्रियण ऊर्जा का मान कम होता है।
Ex.चारकोल की सतह पर गैसों का अधिशोषण
2 रसायनिक अधिशोषण : वह अधिशोषण जिसमें अधिशोषक एवं अधिशोष्य के मध्य प्रबल रासायनिक बंध पाया जाता है रसायनिक अधिशोषण कहलाता है।
यह विशिष्ट होता है।
रासायनिक अधिशोषण उच्च ताप पर अधिक होता है।
यह अनुत्क्रमणीय प्रकृति का होता है।
यह स्थायी होता है।
यह एकपरतीय होता है।
इसमें अधिशोषक एवं अधिशोष्य के मध्य प्रबल रासायनिक बंध पाया जाता है।
सक्रियण ऊर्जा का मान अधिक होता है।
Ex.प्लैटिनम की सतह पर हाइड्रोजन गैस का अधिशोषण।
Q.3 कोलाइड किसे कहते हैं? इसके वर्गीकरण को समझाइए।
Ans: वे पदार्थ जो घुलनशील अवस्था में पार्चमैण्ट पेपर से नहीं निकल पाते या फिर अत्यंत मंद गति से निकलते हैं, उन्हें कोलाइड कहते हैं।
कोलाइड का वर्गीकरण
A) आणविक आकार के आधार पर
1 बहु आणविक कोलाइड : वह कोलाइडी विलयन जिनके कोलाइड बहुत से परमाणुओं से जुड़कर बना होता है उसे बहु आणविक कोलाइड कहते हैं।
इनके अणुओं के मध्य दुर्बल वाण्डर वॉल बल पाया जाता है।
द्रव विरोधी प्रकृति के होते हैं।
सिल्वर के कोलाइड, गोल्ड के कोलाइड
2 दीर्घाणुक कोलाइड : वह कोलाइडी विलयन जिसके कोलाइड कण उच्च अणुभार वाले एक अणु होता है उसे दीर्घाणुक कोलाइड कहते हैं।
इनके अणुओं के मध्य प्रबल बल पाया जाता है।
द्रव स्नेही कोलाइड होते हैं।
प्रोटीन, स्टार्च, सेल्यूलोज।
3 संगुणित कोलाइड : ऐसा कोलाइडी विलयन जो तनु अवस्था में वास्तविक विलयन होते हैं किंतु सांद्रता बढ़ाने पर इसके अणु जुड़कर बड़ा कण बनाता है। उसे संगुणित कोलाइड कहते हैं।
इनके अणुओं के मध्य प्रबल रासायनिक बंध पाया जाता है।
यह द्रव स्नेही एवं द्रव विरोधी प्रकृति के होते हैं।
साबुन।
B) प्रावस्था की अंतः क्रिया के आधार पर
1 द्रव स्नेही कोलाइड
वे कोलाइडी विलयन जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य पर्याप्त आकर्षण होता है उस विलयन के कोलाइडी कण को द्रव स्नेही कोलाइड कहते हैं।
यह प्रायः स्थाई होते हैं।
यह उत्क्रमणीय प्रकृति की होती है।
यह अति सूक्ष्म माइक्रोस्कोप से दिखाई नहीं देते।
गोंद, स्टार्च, प्रोटीन आदि।
2 द्रव विरोधी कोलाइड
वे कोलाइडी विलयन जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य आकर्षण नहीं होता है उस विलयन के कोलाइडी कण को द्रव विरोधी कोलाइड कहते हैं।
ये अस्थाई होते हैं।
यह अनुत्क्रमणीय प्रकृति की होती है।
यह अति सूक्ष्म माइक्रोस्कोप से दिखाई देता है।
सिल्वर की कोलाइड, गोल्ड के कोलाइड
Q.4 कोलाइड किसे कहते हैं? परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर एवं आवेश के आधार पर इसका वर्गीकरण कीजिए।
Ans: वे पदार्थ जो घुलनशील अवस्था में पार्चमैण्ट पेपर से नहीं निकल पाते या फिर अत्यंत मंद गति से निकलते हैं, उन्हें कोलाइड कहते हैं।
कोलाइड का वर्गीकरण
A) परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर
हाइड्रोसॉल : यदि परिक्षेपण माध्यम जल हो तो उसे हाइड्रोसॉल कहते हैं।
एयरोसॉल : यदि परिक्षेपण माध्यम हवा हो तो उसे एयरोसॉल कहते हैं।
एल्कोसाॅल : यदि परिक्षेपण माध्यम एल्कोहल हो तो उसे अल्कोसाॅल कहते हैं।
बेंजासाॅल : यदि परिक्षेपण माध्यम बेंजीन हो तो उसे बेंजासाॅल कहते हैं।
B) आवेश के आधार पर
1 धनावेशित कोलाइड
यदि कोलाइडी विलयन के इलेक्ट्रोफोरेसिस के दौरान कण ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर गति करते हैं तो वह धनात्मक प्रकृति का होता है तथा उस कोलाइड को धनावेशित कोलाइड कहते हैं।
Ex.मिथिलीन ब्लू, Al(OH)3, Fe(OH)3
2 ऋणावेशित कोलाइड
यदि कोलाइडी विलयन के इलेक्ट्रोफोरेसिस के दौरान कण धनात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर गति करते हैं तो वह ऋणात्मक प्रकृति का होता है तथा उस कोलाइड को ऋणावेशित कोलाइड कहते हैं।
Ex.सिल्वर की कोलाइड, गोल्ड के कोलाइड
Q.5 उत्प्रेरक किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? उदाहरण सहित लिखिए।
या
उत्प्रेरण किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? उदाहरण सहित लिखिए।
Ans: उत्प्रेरक : वे पदार्थ जिसकी उपस्थिति में रासायनिक अभिक्रिया की दर में परिवर्तित हो जाती है किंतु यह स्वयं रासायनिक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता है उसे उत्प्रेरक कहते हैं तथा यह घटना उत्प्रेरण कहलाता है।
उत्प्रेरक के प्रकार (Types of catalyst) :
A) प्रकृति के आधार पर
1 संमागी उत्प्रेरक : जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में प्रयुक्त अभिकारक व उत्प्रेरक सामान अवस्था में होते हैं तो ऐसे उत्प्रेरक को संमागी उत्प्रेरक कहते हैं तथा यह घटना संमागी उत्प्रेरण कहलाती है।
2 विषमांगी उत्प्रेरक : जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में प्रयुक्त अभिकारक व उत्प्रेरक अलग-अलग अवस्था में होते हैं तो ऐसे उत्प्रेरक को विषमांगी उत्प्रेरक कहते हैं तथा यह घटना विषमांगी उत्प्रेरण कहलाती है।
B) गुणों के आधार पर
1 धनात्मक उत्प्रेरक : ऐसे उत्प्रेरक जिसकी उपस्थिति में रासायनिक अभिक्रिया की दर बढ़ जाती है उसे धनात्मक उत्प्रेरक कहते हैं तथा यह घटना धनात्मक उत्प्रेरण कहलाती है।
2 ऋणात्मक उत्प्रेरक : ऐसे उत्प्रेरक जिसकी उपस्थिति में रासायनिक अभिक्रिया की दर घट जाती है उसे ऋणात्मक उत्प्रेरक कहते हैं तथा यह घटना ऋणात्मक उत्प्रेरण कहलाती है।
3 स्व उत्प्रेरक : जब रासायनिक अभिक्रिया से बनने वाला उत्पाद ही उत्प्रेरक का कार्य करने लगता है तो उसे स्व उत्प्रेरक कहते हैं तथा यह घटना स्व उत्प्रेरण कहलाती है।
4 प्रेरित उत्प्रेरक : जब कोई रासायनिक अभिक्रिया किसी दूसरे रासायनिक अभिक्रिया की दर को बढ़ा देता है तो उसे प्रेरित उत्प्रेरक कहलाता है तथा इस घटना को प्रेरित उत्प्रेरण कहते हैं।
Q.6 टिंडल प्रभाव किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
या
कोलाइडी विलयन के प्रकाश संबंधी गुण को समझाइए।
Ans: टिंडल प्रभाव : कोलाइडी विलयन में प्रकाश किरण गुजारने पर किरण का मार्ग चमकने लगता है इसे टिंडल प्रभाव कहते हैं।
टिंडल प्रभाव को सर्वप्रथम फैराडे ने दिया तथा इसका अध्ययन टिंडल द्वारा सन् 1869 में किया गया।
टिंडल प्रभाव की सीमाएं या शर्तें
परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य से बड़ा होना चाहिए।
परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के अपवर्तनांक में अधिक अंतर होना चाहिए।
(द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन में टिंडल प्रभाव प्रदर्शित होता है।)
उदाहरण
तारों का टिमटिमाना।
अंधेरे कमरे में जब किसी छेद या खिड़की से सूर्य की किरण प्रवेश करती है तो उसका मार्ग चमकीला दिखाई देता है।
Q.7 ब्राउनी गति किसे कहते हैं? इसके कारण तथा महत्व लिखिए।
Ans: ब्राउनी गति : कोलाइडी विलयन में कोलाइडी कण अनियमित दिशा में zig-zag गति करते हैं, जिसे ब्राउनी गति कहते हैं। ब्राउनी गति की खोज सन् 1827 में रॉबर्ट ब्राउन द्वारा की गयी।
कारण : कोलाइडी कण पर परिक्षेपण माध्यम के कण प्रहार करते हैं जिसके कारण परिक्षिप्त प्रावस्था के कण इधर-उधर अनियमित रूप से गति करते हैं।
महत्व : ब्राउनी गति के कारण कोलाइडी विलयन के कण तली में बैठते नहीं है। अतः यह कोलाइडी विलयन को स्थायित्व प्रदान करता है।
Q.8 पायस किसे कहते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों को लिखिए तथा इसके पहचान की विधि लिखिए।
Ans: पायस : वह कोलाइडी विलयन जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम दोनों द्रव होता है, उसे पायस कहते हैं।
पायसीकरण : पायस को स्थायित्व प्रदान करने के लिए इसमें कुछ पदार्थ मिलाए जाते हैं जिसे पायसीकारक कहते हैं तथा यह घटना पायसीकरण कहलाता है।
पायस के प्रकार
1) Water in oil (W/O) emulsion :
जब परिक्षिप्त प्रावस्था Water (कम) एवं परिक्षेपण माध्यम oil (अधिक) हो।
पायसीकारक - भारी धातु के लवण, एल्कोहल।
Ex. मक्खन।
2) Oil in water (O/W) emulsion :
जब परिक्षिप्त प्रावस्था Oil (कम) एवं परिक्षेपण माध्यम water (अधिक) हो।
पायसीकारक - प्रोटीन, गोंद।
Ex. दूध।
पायस के पहचान करने की विधियां
1) तनुता विधि (microscopic method)
जब पायस में जल की कुछ बूंदों का छिड़काव किया जाता है तो यदि उसमें परिवर्तन होता है तो वह Water in oil (W/O) emulsion प्रकार का पायस होता है तथा यदि उसमें कोई भी परिवर्तन नहीं होता तो Oil in water (O/W) emulsion प्रकार का पायस होता है।
2) चालकता मापन विधि (Conductivity measurement method)
यदि पायस का विद्युत अपघटन करने पर चालकता बढ़ती है तो वह Oil in water (O/W) emulsion प्रकार का पायस होता है।तथा यदि विद्युत अपघटन करने पर उसकी चालकता अपरिवर्तित रहती है तो वह Water in oil (W/O) emulsion प्रकार का पायस होता है।
Q.9 टिप्पणी लिखिए
ब्राउनी गति, रक्षण, रक्षी कोलाइड, स्वर्ण संख्या, अपोहन (डायलिसिस), विद्युत अपोहन, अतिसूक्ष्म छनन/ फिल्टरन/निस्यंदन, पेप्टीकरण, पेप्टीकारक, स्कंदन क्षमता
Ans:
1 ब्राउनी गति : ब्राउनी गति कोलाइडी विलयन में कोलाइडी कण अनियमित दिशा में zig-zag गति करते हैं, जिसे ब्राउनी गति कहते हैं। ब्राउनी गति की खोज सन् 1827 में रॉबर्ट ब्राउन द्वारा की गयी।
2 रक्षण : जब किसी द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन में विद्युत अपघट्य मिलाने से पहले उसमें कुछ मात्रा में द्रव स्नेही कोलाइडी विलयन मिला दिया जाता है तो द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन का स्कंदन रुक जाता है इसे रक्षण कहते हैं।
3 रक्षी कोलाइड : जब किसी द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन में विद्युत अपघट्य मिलाने से पहले उसमें कुछ मात्रा में द्रव स्नेही कोलाइडी विलयन मिला दिया जाता है तो द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन का स्कंदन रुक जाता है अर्थात् द्रव स्नेही कोलाइड द्वारा द्रव विरोधी कोलाइड का स्कंदन से रक्षा होती है। अतः द्रव स्नेही कोलाइड रक्षी कोलाइड कहलाता है।
4 स्वर्ण संख्या : किसी रक्षी कोलाइड की मिलीग्राम में वह मात्रा जो स्वर्ण के साॅल के 10 ग्राम में 10% NaCl के 1ml विलयन द्वारा स्कंदन होने से रोक देती है, स्वर्ण संख्या कहलाती है।
स्वर्ण संख्या का मान जितना अधिक होता है उस राक्षी कोलाइड की स्कंदन क्षमता उतनी ही कम होती है।
सबसे अधिक स्वर्ण संख्या - स्टार्च (25)
सबसे कम स्वर्ण संख्या - जेलेटिन (0.005)
5 अपोहन (डायलिसिस) : पार्चमेण्ट पेपर द्वारा कोलाइडी विलयन में से अशुद्धियों को अलग करने की विधि को अपोहन कहते हैं। अपोहन विधि में पार्चमेण्ट पेपर का एक थैला होता है जिसमें कोलाइडी विलयन को भर दिया जाता है। इसमें उपस्थित अशुद्धियां पार्चमेण्ट पेपर से छनकर जल के साथ बह जाती है और थैली में शुद्ध कोलाइडी विलियन रह जाता है।
6 विद्युत अपोहन : जब अपोहन की विधि में पार्चमेण्ट पेपर के दोनों ओर इलेक्ट्रोड लगा देते हैं तथा इससे विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तब थैली में उपस्थित अशुद्धियां विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर तेजी से आकर्षित होती है तथा जल के साथ बह जाती है। शुद्ध कोलाइडी विलयन थैली में रह जाता है, इस प्रक्रिया को विद्युत अपोहन कहते हैं।
7 अतिसूक्ष्म छनन/ फिल्टरन/निस्यंदन : जब अशुद्धी युक्त कोलाइडी विलयन को पार्चमेण्ट पेपर से छाना जाता है, तो अशुद्धियां पेपर से बाहर निकल जाती है किंतु कोलाइड कण पार्चमेण्ट पेपर से बाहर नहीं निकल पाते हैं तथा ये पेपर के ऊपर ही रह जाते हैं इसे ही अतिसूक्ष्म छनन/ फिल्टरन/निस्यंदन कहते हैं। यह अपोहन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
8 पेप्टीकरण : कोलाइडी विलयन के स्कंदन से प्राप्त ताजा बने हुए अवक्षेप को उपयुक्त विद्युत अपघट्य द्वारा कोलाइडी विलयन में परिवर्तित करने की प्रक्रिया पेप्टीकरण कहलाती है।
उदाहरण फेरिक हाइड्राॅक्साइड के ताजा अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड मिलाने पर लाल रंग का कोलाइडी विलयन प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया में मिलाये जाने वाले विद्युत अपघट्य (फेरिक क्लोराइड) को पेप्टीकारक कहते हैं।
Fe(OH)3 (ताजा अवक्षेप) + FeCl3 (पेप्टीकारक) → Fe(OH)3 (कोलाइडी विलयन)
9 पेप्टीकारक : कोलाइडी विलयन के स्कंदन से प्राप्त ताजा बने हुए अवक्षेप को उपयुक्त विद्युत अपघट्य द्वारा कोलाइडी विलयन में परिवर्तित करने की प्रक्रिया पेप्टीकरण कहलाती है।
उदाहरण फेरिक हाइड्राॅक्साइड के ताजा अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड मिलाने पर लाल रंग का कोलाइडी विलयन प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया में मिलाये जाने वाले विद्युत अपघट्य (फेरिक क्लोराइड) को पेप्टीकारक कहते हैं।
Fe(OH)3 (ताजा अवक्षेप) + FeCl3 (पेप्टीकारक) → Fe(OH)3 (कोलाइडी विलयन)
10 स्कंदन क्षमता : किसी कोलाइडी विलयन में विद्युत अपघट्य की स्कंदन क्षमता उस विद्युत अपघट्य के लिए स्कंदन मान के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
अतः किसी विद्युत अपघट्य के लिए स्कंदन मान जितना कम होता है उस विद्युत अपघट्य की स्कंदन क्षमता उतनी ही अधिक होता है।
Q.10 अधिशोषण एवं अवशोषण में अंतर लिखिए।
Q.11 भौतिक अधिशोषण एवं रसायनिक अधिशोषण में अंतर लिखिए।
Q.12 वास्तविक विलयन, कोलाइडी विलयन एवं निलंबन (संशपेंसन) में अंतर लिखिए।