राजस्थान की रजत बूंदे
अनुपम मिश्र
अनुपम मिश्र
"राजस्थान की रजत बूंदें" प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण लेख है, जो राजस्थान की मरुभूमि में जल संचयन की पारंपरिक प्रणाली "कुंई" पर आधारित है। कुंई एक छोटी, गहरी और संकरी जल संचयन प्रणाली है, जिसे वर्षा के मीठे पानी को संचित करने के लिए रेत में खोदा जाता है। इसका निर्माण कुशल श्रमिक "चेलवांजी" या "चेजारो" द्वारा किया जाता है, जो अत्यधिक मेहनत और विशेषज्ञता से इसे बनाते हैं। कुंई की खुदाई में विशेष औजार "बसौली" का उपयोग होता है, और खुदाई के दौरान गर्मी को कम करने के लिए ऊपर से रेत डाली जाती है। कुंई की गहराई लगभग 30 से 35 हाथ होती है, और इसका व्यास कम होता है। यह प्रणाली रेत की सतह के नीचे खड़िया पत्थर की परत पर आधारित होती है, जो वर्षा के पानी को नीचे के खारे पानी से मिलने से रोकती है। इस प्रकार, कुंई में संचित पानी मीठा और पीने योग्य होता है। लेखक ने इस लेख के माध्यम से जल संरक्षण की पारंपरिक प्रणालियों की महत्ता और उनके संरक्षण की आवश्यकता को उजागर किया है।
1. "राजस्थान की रजत बूंदें" के लेखक कौन हैं?
A) कुमार गंधर्व
B) बेबी हालदार
C) अनुपम मिश्र ✅
D) हजारी प्रसाद द्विवेदी
2. कुंई की खुदाई करने वाले श्रमिकों को क्या कहा जाता है?
A) चेलवांजी ✅
B) बसौली
C) चेजारो
D) दोनों A और C ✅
3. कुंई की गहराई कितनी होती है?
A) 10-15 हाथ
B) 20-25 हाथ
C) 30-35 हाथ ✅
D) 40-45 हाथ
4. कुंई की खुदाई में कौन सा औजार उपयोग होता है?
A) फावड़ा
B) बसौली ✅
C) कुल्हाड़ी
D) बेलचा
5. कुंई में संचित पानी किस प्रकार का होता है?
A) खारा
B) मीठा और पीने योग्य ✅
C) खड़िया
D) नदियों का पानी
6. कुंई का निर्माण किस उद्देश्य से किया जाता है?
A) कृषि कार्य के लिए
B) जल संचयन के लिए ✅
C) जल परिवहन के लिए
D) जल निकासी के लिए
7. कुंई की खुदाई के दौरान गर्मी को कम करने के लिए क्या किया जाता है?
A) पानी डाला जाता है
B) रेत डाली जाती है ✅
C) हवा फेंकी जाती है
D) छांव बनाई जाती है
8. कुंई में पानी कैसे संचित होता है?
A) वर्षा के पानी से
B) नदियों के पानी से
C) रेत में समाई नमी से ✅
D) तालाबों से
9. कुंई की खुदाई में कितने लोग शामिल होते हैं?
A) 1-2
B) 3-4
C) 5-6
D) कई लोग ✅
10. कुंई के निर्माण में किसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है?
A) ग्राम समाज ✅
B) सरकार
C) व्यापारी
D) शिक्षक
1. कुंई क्या है?
उत्तर: कुंई राजस्थान की मरुभूमि में बनाई जाने वाली एक छोटी, गहरी और संकरी जल संचयन प्रणाली है, जिसे वर्षा के मीठे पानी को संचित करने के लिए रेत में खोदा जाता है। इसका निर्माण कुशल श्रमिक "चेलवांजी" द्वारा किया जाता है।
2. कुंई की खुदाई में कौन सा औजार उपयोग होता है?
उत्तर: कुंई की खुदाई में "बसौली" नामक औजार का उपयोग होता है, जो फावड़े जैसा होता है, लेकिन आकार में छोटा और हल्का होता है।
3. कुंई की गहराई कितनी होती है?
उत्तर: कुंई की गहराई लगभग 30 से 35 हाथ होती है, जो सामान्य कुएं की गहराई के बराबर होती है।
4. कुंई में संचित पानी किस प्रकार का होता है?
उत्तर: कुंई में संचित पानी मीठा और पीने योग्य होता है, क्योंकि यह रेत में समाई नमी से प्राप्त होता है, न कि खारे भूजल से।
5. कुंई के निर्माण में गर्मी को कम करने के लिए क्या किया जाता है?
उत्तर: कुंई की खुदाई के दौरान गर्मी को कम करने के लिए ऊपर से रेत डाली जाती है, जिससे ताजी हवा नीचे जाती है और गर्म हवा ऊपर लौट आती है।
6. कुंई में पानी कैसे संचित होता है?
उत्तर: कुंई में पानी वर्षा के बाद रेत में समाई नमी से धीरे-धीरे संचित होता है। यह पानी खड़िया पत्थर की परत पर रिसकर जमा होता है।
7. कुंई के निर्माण में ग्राम समाज की भूमिका क्या होती है?
उत्तर: कुंई के निर्माण में ग्राम समाज का अंकुश रहता है, क्योंकि यह जल स्रोत सार्वजनिक होता है और सभी को समान रूप से पानी मिल सके, इसके लिए समाज का सहयोग आवश्यक होता है।
8. कुंई की खुदाई में चेलवांजी की भूमिका क्या होती है?
उत्तर: चेलवांजी कुंई की खुदाई करने वाले कुशल श्रमिक होते हैं, जो अत्यधिक मेहनत और विशेषज्ञता से कुंई का निर्माण करते हैं।
9. कुंई के निर्माण में रेत की परत का क्या महत्व होता है?
उत्तर: रेत की परत वर्षा के पानी को नीचे की सतह तक पहुँचने से रोकती है, जिससे पानी कुंई में संचित होता है और वाष्पित नहीं होता।
10. कुंई के निर्माण में खड़िया पत्थर की परत का क्या महत्व होता है?
उत्तर: खड़िया पत्थर की परत वर्षा के पानी को नीचे के खारे पानी से मिलने से रोकती है, जिससे कुंई में संचित पानी मीठा और पीने योग्य होता है।
1) राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओँ की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर: राजस्थान में कुंई एक पारंपरिक जल-संचयन प्रणाली है, जो विशेष रूप से मरुभूमि क्षेत्रों में वर्षा के पानी को संचित करने के लिए बनाई जाती है। कुंई संकरी और गहरी होती है, ताकि वर्षा का पानी रेत में समा सके और खारे भूजल से संपर्क न हो। इसकी गहराई लगभग 30-35 हाथ और व्यास संकरा होता है। सामान्य कुओँ की तुलना में कुंई का व्यास बहुत छोटा और गहराई तुलनात्मक रूप से समान या थोड़ी अधिक होती है। सामान्य कुओँ में व्यास बड़ा होता है और पानी सीधे भूजल से आता है, जबकि कुंई में पानी रेत में संचित वर्षा जल से प्राप्त होता है। यह कुंई को विशेष और मीठा पानी प्रदान करने वाली प्रणाली बनाता है।
2) निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंयों पर ग्राम समाज का अंकुश क्यों रहता है?
उत्तर: कुंई व्यक्तिगत रूप से किसी के स्वामित्व में हो सकती है, लेकिन गांव के लोगों के लिए यह सार्वजनिक जल स्रोत है। इसलिए ग्राम समाज इसे साझा करता है और इसकी सुरक्षा, उपयोग और रखरखाव पर निगरानी रखता है। लेखक ने यह इसलिए कहा है क्योंकि अगर कुंई पर नियंत्रण न हो, तो किसी का स्वार्थ दूसरों के पानी पर असर डाल सकता है। ग्राम समाज का अंकुश सुनिश्चित करता है कि पानी का वितरण समान और न्यायसंगत हो। यह प्रणाली पारंपरिक सामूहिक जिम्मेदारी और सहयोग का प्रतीक है, जो मरुभूमि में जीवन को स्थायी बनाती है।
3) कुंई निर्माण से संबंधित शब्द – पलारपानी, पातलपानी, रेजनिपानी – के बारे में जानकारी|
उत्तर: कुंई में पानी की परत को समझाने के लिए इन शब्दों का उपयोग किया जाता है।
पलारपानी: यह पानी की ऊपरी सतह होती है, जो कुंई की गहराई के प्रारंभिक हिस्से में जमा होती है।
पातलपानी: यह कुंई के मध्य और गहरे भाग में संचित पानी को कहते हैं, जो वर्षा जल और रेत में समाई नमी से मिलता है।
रेजनिपानी: यह कुंई के सबसे निचले हिस्से का पानी होता है, जो भूजल और खारे पानी से अलग मीठा रहता है।