श्वसन (Respiration)
श्वसन तीन प्रकार के होते हैं -
बाह्य श्वसन : वातावरण एवं फेफड़ों के मध्य गैसों का आदान-प्रदान बाह्य श्वसन कहलाता है।
आंतरिक श्वसन : फेफड़े एवं रक्त के बीच गैसों का आदान-प्रदान आंतरिक श्वसन कहलाता है।
कोशिकीय श्वसन : रक्त एवं कोशिकाओं के मध्य गैसों का आदान-प्रदान कोशिकीय श्वसन कहलाता है। इस श्वसन के परिणामस्वरुप ऊर्जा प्राप्त होता है।
श्वसन के चरण :
साॅंस (Breathing) : फेफड़ों में वायु को अंदर लेना वह फेफड़ों से वायु को बाहर निकलना साॅंस कहलाता है।
अंतः श्वसन (Inhalation) : वातावरण से वायु का फेफड़ों के अंदर पहुंचना जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ा फैल जाता है अंतः श्वसन कहलाता है।
बाह्य श्वसन (External respiration) : फेफड़ों से वायु का वातावरण में मुक्त होना जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ा सिकुड़ जाता है बाह्य श्वसन या नि: श्वसन कहलाता है।
ऑक्सीकरण (Oxidation of food) : ऑक्सीजन की उपस्थिति में भोज्य पदार्थों का उसके सरल यौगिकों में टूटना, जिसके परिणामस्वरुप ऊर्जा प्राप्त होता है ऑक्सीकरण कहलाता है।
मनुष्य में श्वसन (Respiration in human)
नाक (Nose) → ग्रसनी (Pharynx) → श्वासनली (Trachea) → श्वसनी (Bronchi) → श्वसनिका (Bronchiole) → एल्विओलाई नलिका (Alveoli duct) → एल्विओलाई (Alveoli ) → फेफड़ा (Lung)
नाक (Nose) :
श्वसन का प्राथमिक अंग होता है।
नाक नासाछिद्र द्वारा बाहर की ओर खुलता है तथा अंदर की ओर ग्रसनी में खुलता है।
नासाछिद्र (Nostril) : नाक नासाछिद्र द्वारा बाहर की ओर खुलता है तथा अंदर की ओर ग्रसनी में खुलता है।
नासाकक्ष (Nasal cavity) : नाक नासापट द्वारा दो नासाकक्ष में विभाजित होता है।
प्रत्येक नासिका कक्ष को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है जो निम्नलिखित है -
प्रघाण भाग : नासाकक्ष का अग्र भाग होता है।
कार्य : इस भाग में बाल एवं तेल ग्रंथियां उपस्थित होता है जो धूल के कणों को प्रवेश करने से रोकता है।
श्वसन भाग :
यह भाग अत्यधिक संवहनीय, लाल रंग का होता है।
श्लेष्मा झिल्ली द्वारा आस्तरित होता है।
कार्य : वायु को नर्म व गर्म करना जिससे फेफड़ों में ठंडी वायु ना पहुंच पाए तथा फेफड़ों का संक्रमण से बचाव हो सके।
घ्राण भाग :
यह सबसे भीतरी भाग होता है जो सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देता है।
यह घ्राण उपकला (श्नीडेरियन झिल्ली) द्वारा आस्तरित (आवरित) होता है।
कार्य : यह सूंघने में मदद करता है।
ग्रसनी (Pharynx) : यह वायु एवं भोजन के लिए उभयनिष्ठ मार्ग होता है।
कंठ (Larynx) :
ध्वनि पेटिका या स्वर तंतु भी कहते हैं।
यह श्वासनली के ऊपरी भाग का रूपांतरण है।
नौ उपास्थियों एवं दो जोड़ी वाक् रज्जू से मिलकर बना होता है।
नौ उपास्थियां इस प्रकार है -
1.तीन अयुग्मित
थायराॅइड
एपिग्लोटिस
क्रिकाॅइड
2.तीन युग्मित
एरिटेनाॅइड
क्यूनिफॉर्म
काॅर्निकुलैट
दो जोड़ी वाक् रज्जू
1 जोड़ी कूट वाक् रज्जू
ध्वनि उत्पन्न नहीं करता।
1 जोड़ी वास्तविक वाक् रज्जू
ध्वनि उत्पन्न करता है।
यह स्त्री एवं पुरुष में अलग-अलग आकार का होता है -
स्त्री
छोटे व पतले होते हैं।
तनाव अधिक होता है।
तारत्व अधिक होता है।
इससे पतली, तीखी आवाज निकलती है।
पुरुष
बड़े व मोटे होते हैं।
तनाव कम होता है।
तारत्व कम होता है।
इससे भारी आवाज निकलता है।
श्वासनली (Trachea)
ग्रसनी से श्वसनी तक एक नली पाई जाती है जिसमें C आकर के उपास्थिल छल्ले पाए जाते हैं, इसे श्वासनली कहते हैं।
यह उपास्थिल छल्ले प्राथमिक श्वसनिका तक पाए जाते हैं। यह श्वासनली, श्वसनी एवं प्राथमिक श्वसनिका को चिपकने (पिचकने) से बचाते हैं।
श्वसनी (Bronchi)
श्वासनली आगे विभाजित होकर श्वसनी बनाती है।
प्राथमिक श्वसनी (Primary Bronchi) : मध्यवक्ष गुहा में प्रवेश करने पर श्वासनली पांचवें वक्षीय कशेरुक के स्तर पर दाएं व बाएं प्राथमिक श्वसनी में विभाजित होती है।
द्वितीयक श्वसनी (Secondary Bronchi) : प्राथमिक श्वसनी के विभाजन से द्वितीय श्वसनी बनती है।
तृतीयक श्वसनी (Tertiary Bronchi) : द्वितीय श्वसनी के विभाजन से तृतीयक श्वसनी बनती है।
श्वसनिका (Bronchiole) :
श्वसनी के विभाजन से श्वसनिका बनती है।
प्राथमिक श्वसनिका (Primary Bronchiole) : तृतीयक श्वसनी के विभाजन से प्राथमिक श्वसनिका बनती है।
अंतस्थ श्वसनिका (Internal Bronchiole) : प्राथमिक श्वसनिका के विभाजन से अंतस्थ श्वसनिका बनती है।
एल्विओलाई नलिका (Alveoli duct) : अंतस्थ श्वसनिका आगे पतली नलिकाओं में खुलती है, जिसे एल्वूलाई नलिका कहते हैं।
एल्विओलाई (Alveoli) : एल्वूलाई नलिकाएं आगे गुब्बारे के समान संरचनाओं में खुलती है जिसे एल्वूलाई कहते हैं। यही से गैसों का आदान-प्रदान होता है (विसरण द्वारा)।
फेफड़ा (Lung) :
मनुष्य में एक जोड़ी फेफड़ा पाया जाता है।
वक्षीय गुहा में डायफ्राॅम के ऊपर स्थित होते है।
वक्षीय गुहा वायुरोधी होता है क्योंकि फेफड़ों में पेशियां नहीं पाई जाती अर्थात् वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ने से फेफड़ों का आयतन भी बढ़ जाता है। जब वक्षीय गुहा का आयतन कम होता है तो फेफड़े का आयतन भी कम हो जाता है।
ऐसी व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि फेफड़ों के आयतन (फुफ्फुसीय आयतन) को सीधे नहीं बदला जा सकता है।
फेफड़ों के चारों ओर दोहरा आवरण पाया जाता है जिसे प्लूरा कहते हैं।
इन दोनों आवरण के मध्य एक द्रव्य भरा होता है जिसे प्लूरल द्रव्य कहते हैं। यह फेफड़ों के दोनों आवरण के मध्य घर्षण नहीं होने देता एवं फेफड़ों के आंतरिक भाग को सुरक्षा प्रदान करता है।
एक फेफड़े में 300 मिलियन कुपिकाएं (एल्वूलाई) पाई जाती है।
श्वसन में सहायक संरचना
उरोस्थि
पसलियां
अंतरापर्शुक पेशीयां (Intercostal muscle) : पसलियों के मध्य उपस्थित पेशियां होती है।
बाह्य अंतरापर्शुक पेशीयां
अंतः अंतरापर्शुक पेशीयां
डायफ्राॅम : उदर गुहा और वक्षीय गुहा के मध्य पेशीयों का पट होता है जिसे डायफ्राॅम कहते हैं। यह फ्रेनिक पेशियों का बना होता है।
श्वसन संबंधी आयतन एवं क्षमताएं
ज्वारीय आयतन (Tidal Volume) : सामान्य श्वसन के दौरान एक बार में जितनी वायु फेफड़ों के अंदर ली जाती है या जितनी वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है उसे ज्वारीय आयतन कहते हैं।
TV = 500ml
अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume) : वायु की वह मात्रा जो सामान्य अंतः श्वसन के पश्चात् बलपूर्वक अंतः श्वसित की जा सकती है अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन कहलाती है।
IRV = 2500ml से 3000ml
नि: श्वसित सुरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume) : वायु की वह मात्रा जो सामान्य नि: श्वसन के पश्चात् बलपूर्वक नि: श्वसित की जा सकती है नि: श्वसित सुरक्षित आयतन कहलाता है।
ERV = 1000ml से 1100ml
अवशिष्ट आयतन (Residual Volume) : वायु की वह मात्रा जो बलपूर्वक नि: श्वसित करने के पश्चात् भी फेफड़ों में रह जाती है उसे अवशिष्ट आयतन कहते हैं।
RV = 1100ml से 1200ml
आयतनों का बढ़ता क्रम
TV < ERV < RV < IRV
श्वसन क्षमता (Respiratory capacity) :
यह श्वसन आयतनों का योग होता है।
अंतः श्वसित क्षमता (Inspiratory Capacity) : ज्वारीय आयतन एवं अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन का योग होता है।
IC = 3000ml से 3500ml
नि: श्वसित क्षमता (Expiratory Capacity) : ज्वारीय आयतन एवं नि: श्वसित सुरक्षित आयतन का योग होता है।
EC = 1500ml से 1600ml
कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity) : सामान्य बाह्य श्वसन के पश्चात् जितनी वायु फेफड़ों में शेष रह जाती है उसे कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता कहते हैं।
नि: श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अवशिष्ट आयतन का योग होता है।
FRC = 2100ml से 2300ml
जैविक क्षमता (Vital Capacity) : ज्वारीय आयतन, नि: श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन का योग होता है।
VC = 4000ml से4600ml
फेफड़ों की कुल क्षमता (Total Lung Capacity) : ज्वारीय आयतन, नि: श्वसित सुरक्षित आयतन, अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अवशिष्ट आयतन का योग होता है।
TLC = 5100ml से 5800ml
गैसों का विनिमय (Exchange of gases)
गैसों का विनिमय सरल विसरण द्वारा होता है। कूपिकाओं में ऑक्सीजन का दाब 104mmHg एवं कार्बन डाइऑक्साइड का दाब 40mmHg होता है। विऑक्सीजनीकृत रक्त में ऑक्सीजन का दाब 40mmHg एवं कार्बन डाइऑक्साइड का दाब 45mmHg होता है। जब विऑक्सीजनीकृत रक्त फेफड़ों के पास से होकर गुजरता है तब सरल विसरण द्वारा कूपिकाओं से ऑक्सीजन रक्त में आ जाता है एवं रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में चला जाता है। इस प्रकार विऑक्सीजनीकृत, ऑक्सीजनीकृत रक्त में परिवर्तित हो जाता है एवं पल्मोनरी शिरा के द्वारा हृदय तक पहुंचाया जाता है। ऑक्सीजनीकृत रक्त में ऑक्सीजन का दाब 95mmHg एवं कार्बन डाइऑक्साइड का दाब 40mmHg होता है। हृदय से ऑक्सीजनीकृत रक्त महाधमनियों के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों कोशिकाओं तक पहुंचाया जाता है। सरल विसरण द्वारा ऑक्सीजनीकृत रक्त से ऑक्सीजन कोशिकाओं में चला जाता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड कोशिकाओं से रक्त में आ जाता है। इस प्रकार रक्त विऑक्सीजनीकृत हो जाता है। यह महाशिराओं के माध्यम से हृदय तक पहुंचाया जाता है और यह प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रहती है।
गैसों का परिवहन (Transportation of gases)
गैसों का परिवहन रक्त के माध्यम से होता है।
रक्त ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन का माध्यम है।
ऑक्सीजन का 3% भाग रक्त प्लाज्मा में घुलनशील होता है तथा 97% भाग रक्त के RBCs द्वारा ले जाया जाता है (ऑक्सी हीमोग्लोबिन के रूप में)।
कार्बन डाइऑक्साइड का 7% भाग प्लाज्मा में पाया जाता है। 70% कार्बन डाइऑक्साइड बाइकार्बोनेट के रूप में रक्त में परिवहन करता है तथा 23% कार्बन डाइऑक्साइड कार्बामीनों यौगिक के रूप में परिवहन करता है।
श्वसन का नियमन (Regulation of respiration)
A) तंत्रिकीय नियमन
1.प्राथमिक लय केंद्र
मेडुला ऑब्लंगेटा
डोर्सल रेस्पिरेटरी ग्रुप : सामान्य श्वसन को नियंत्रित करता है।
सेंट्रल रेस्पिरेटरी ग्रुप : गहरा, बलपूर्वक श्वसन को नियंत्रित करता है।
2.सहायक केंद्र
पोन्स
न्यूमोटेक्सिक केंद्र कहलाता है केंद्र कहलाता है।
यह अंतः श्वसन को बंद करने वाले बिंदु पर कार्य करता है। इससे प्रबल संकेत आने पर अंतः श्वसन अवधि कम हो जाती है जिससे श्वसन दर बढ़ जाता है।
दुर्बल संकेत आने पर अंतः श्वसन अवधि बढ़ जाती है जिससे श्वसन दर कम हो जाता है।
B) रासायनिक नियमन - रसोसंवेदी
कार्बन डाइऑक्साइड, अम्लीयता या ताप के बढ़ने से श्वसन दर भी बढ़ जाता है।
श्वसन संबंधी विकार (Respiratory disorder)
1 अस्थमा (Asthma)
यह एलर्जिक विकार है।
श्वसनी में संकुचन होता है जिससे वायु मार्ग संकरा हो जाता है। श्वसन में कठिनाई आती है इसे अस्थमा कहते हैं।
श्वसनी प्रसारक पंप का उपयोग किया जाता है जिससे श्वसनी का मार्ग फैल जाता है।
2 एम्फाइसिमा (Emphysema)
यह धुम्रपान के कारण होने वाला रोग है।
धूम्रपान करने से कूपिकीय भित्ति नष्ट हो जाता है जिसके कारण गैस विनिमय के लिए पृष्ठीय क्षेत्रफल कम हो जाता है।
इसका पूर्ण उपचार संभव नहीं है। जितनी कूपिकाएं स्वस्थ बची हुई है केवल उनको ही बचाया जा सकता है।
3 व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational respiratory disorder)
खदानों, उद्योगों, धूल-मिट्टी का काम करने वाले लोगों के फेफड़ों में रेशों, धूल आदि का जमाव होने लगता है, जिसके कारण फेफड़ों में गैसों की कमी होने लगती है। इसके कारण रोग उत्पन्न होते हैं जैसे एस्बेस्टोसिस, सिलिकोसिस।
4 ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)
श्वसनी में सूजन व श्लेष्मा के जमाव के कारण होता है।
वायु का मार्ग संकरा हो जाता है, जिससे साॅंस लेने में दिक्कत आती है।
लगातार खांसी आते रहता है।
MCQs
Q.1 एम्फाइसिमा किसके कारण होता है?
Ans: धुम्रपान।
Q.2 अस्थमा किस प्रकार का विकार है?
Ans: एलर्जिक विकार।
Q.3 100 ml रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कितनी होती है?
Ans: 20 ml
Q.4 100 मल रक्त ऊतकों को कितना ऑक्सीजन देता है?
Ans: 5 ml
Q.5 जब रक्त कूपिकाओं के पास पहुंचता है, तो सिग्माॅइड वक्र में क्या परिवर्तन होता है?
Ans: बांई ओर विस्थापन ।
Q.6 जब रक्त कोशिकाओं के पास पहुंचता है, तो सिग्माॅइड वक्र में क्या परिवर्तन होता है?
Ans: दांई ओर विस्थापन ।
Q.7 ऑक्सीजन का कितना प्रतिशत भाग प्लाज्मा में उपस्थित होता है?
Ans: तीन प्रतिशत।
Q.8 फेफड़ों के चारों ओर कौन सा आवरण पाया जाता है?
Ans: प्लूरा।
Q.9 नाक का कौन सा भाग सूंघने का काम करता है?
Ans: घ्राण भाग ।
Q.10 श्वासनली कहां पर श्वसनी में विभाजित हो जाता है?
Ans: पांचवें वक्षीय कशेरुक के स्तर पर।
Short Type Question
Q.1 ज्वारीय आयतन किसे कहते हैं?
Ans: ज्वारीय आयतन (Tidal Volume) : सामान्य श्वसन के दौरान एक बार में जितनी वायु फेफड़ों के अंदर ली जाती है या जितनी वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है उसे ज्वारीय आयतन कहते हैं।
TV = 500ml
Q.2 नाक के विभिन्न भागों के नाम एवं उनके कार्य लिखिए।
Ans: 1 नासाछिद्र (Nostril)
2 नासाकक्ष (Nasal cavity) : निम्नलिखित भाग होते है-
प्रघाण भाग
कार्य : इस भाग में बाल एवं तेल ग्रंथियां उपस्थित होता है जो धूल के कणों को प्रवेश करने से रोकता है।
श्वसन भाग :
कार्य : वायु को नर्म व गर्म करना जिससे फेफड़ों में ठंडी वायु ना पहुंच पाए तथा फेफड़ों का संक्रमण से बचाव हो सके।
घ्राण भाग :
कार्य : यह सूंघने में मदद करता है।
Q.3 अंतः श्वसन एवं नि: श्वसन को परिभाषित कीजिए।
Ans: अंतः श्वसन (Inhalation) : वातावरण से वायु का फेफड़ों के अंदर पहुंचना जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ा फैल जाता है अंतः श्वसन कहलाता है।
बाह्य श्वसन/नि: श्वसन (External respiration) : फेफड़ों से वायु का वातावरण में मुक्त होना जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ा सिकुड़ जाता है बाह्य श्वसन या नि: श्वसन कहलाता है।
Q.4 गैसों के परिवहन को समझाइए।
Ans:
गैसों का परिवहन रक्त के माध्यम से होता है।
ऑक्सीजन का 3% भाग रक्त प्लाज्मा में घुलनशील होता है तथा 97% भाग रक्त के RBCs द्वारा ले जाया जाता है (ऑक्सी हीमोग्लोबिन के रूप में)।
कार्बन डाइऑक्साइड का 7% भाग प्लाज्मा में पाया जाता है। 70% कार्बन डाइऑक्साइड बाइकार्बोनेट के रूप में रक्त में परिवहन करता है तथा 23% कार्बन डाइऑक्साइड कार्बामीनों यौगिक के रूप में परिवहन करता है।
Q.5 एम्फाइसिमा क्या है?
Ans: एम्फाइसिमा (Emphysema)
यह धुम्रपान के कारण होने वाला रोग है।
धूम्रपान करने से कूपिकीय भित्ति नष्ट हो जाता है जिसके कारण गैस विनिमय के लिए पृष्ठीय क्षेत्रफल कम हो जाता है।
Q.6 ब्रोंकाइटिस के कारण एवं लक्षण लिखिए।
Ans:कारण : श्वसनी में सूजन व श्लेष्मा के जमाव के कारण होता है।
लक्षण :
वायु का मार्ग संकरा हो जाता है, जिससे साॅंस लेने में दिक्कत आती है।
लगातार खांसी आते रहता है।
Q.7 कृत्रिम श्वसन किसे कहते हैं?
Ans: किसी व्यक्ति में श्वासोच्छवास की क्रिया धीमी या रुक जाती है, तब ऑक्सीजन देने के लिए उसके फेफड़ों में कृत्रिम रूप से वायु पहुंचाई जाती है तथा निकाली जाती है, इस क्रिया को कृत्रिम श्वसन कहते हैं।
Q.8 ऑक्सीजन ऋण क्या है? पेशीय थकावट क्यों होती है?
Ans: जब कठिन परिश्रम का कार्य किया जाता है तब पेशियों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। ऐसी स्थिति में अनाॅक्सीकृत ग्लाइकोलाइसिस क्रिया द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है, जिससे लैक्टिक एसिड बनता है। विश्राम के समय लैक्टिक एसिड के ऑक्सीकरण के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है इसे ही ऑक्सीजन ऋण कहते हैं।
Q.9 फेफड़ों की कुल क्षमता क्या है? लिखिए।
Ans: ज्वारीय आयतन, नि: श्वसित सुरक्षित आयतन, अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अवशिष्ट आयतन का योग होता है।
TLC = 5100ml से 5800ml
Q.10 फेफड़ों में पेशियां अनुपस्थित होती है। क्यों?
Ans: फेफड़ों में पेशियां नहीं पाई जाती क्योंकि वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ने से फेफड़ों का आयतन भी बढ़ जाता है। जब वक्षीय गुहा का आयतन कम होता है तो फेफड़े का आयतन भी कम हो जाता है।
ऐसी व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि फेफड़ों के आयतन (फुफ्फुसीय आयतन) को सीधे नहीं बदला जा सकता है।
Long Type Question
Q.1 श्वसन संबंधी आयतन और क्षमताओं को समझाइए।
Ans: श्वसन संबंधी आयतन
ज्वारीय आयतन (Tidal Volume) : सामान्य श्वसन के दौरान एक बार में जितनी वायु फेफड़ों के अंदर ली जाती है या जितनी वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है उसे ज्वारीय आयतन कहते हैं।
TV = 500ml
अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume) : वायु की वह मात्रा जो सामान्य अंतः श्वसन के पश्चात् बलपूर्वक अंतः श्वसित की जा सकती है अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन कहलाती है।
IRV = 2500ml से 3000ml
नि: श्वसित सुरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume) : वायु की वह मात्रा जो सामान्य नि: श्वसन के पश्चात् बलपूर्वक नि: श्वसित की जा सकती है नि: श्वसित सुरक्षित आयतन कहलाता है।
ERV = 1000ml से 1100ml
अवशिष्ट आयतन (Residual Volume) : वायु की वह मात्रा जो बलपूर्वक नि: श्वसित करने के पश्चात् भी फेफड़ों में रह जाती है उसे अवशिष्ट आयतन कहते हैं।
RV = 1100ml से 1200ml
आयतनों का बढ़ता क्रम
TV < ERV < RV < IRV
श्वसन क्षमता : यह श्वसन आयतनों का योग होता है।
अंतः श्वसित क्षमता (Inspiratory Capacity) : ज्वारीय आयतन एवं अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन का योग होता है।
IC = 3000ml से 3500ml
नि: श्वसित क्षमता (Expiratory Capacity) : ज्वारीय आयतन एवं नि: श्वसित सुरक्षित आयतन का योग होता है।
EC = 1500ml से 1600ml
कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity) : सामान्य बाह्य श्वसन के पश्चात् जितनी वायु फेफड़ों में शेष रह जाती है उसे कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता कहते हैं।
नि: श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अवशिष्ट आयतन का योग होता है।
FRC = 2100ml से 2300ml
जैविक क्षमता (Vital Capacity) : ज्वारीय आयतन, नि: श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन का योग होता है।
VC = 4000ml से4600ml
फेफड़ों की कुल क्षमता (Total Lung Capacity) : ज्वारीय आयतन, नि: श्वसित सुरक्षित आयतन, अंतः श्वसित सुरक्षित आयतन एवं अवशिष्ट आयतन का योग होता है।
TLC = 5100ml से 5800ml
Q.2 अतः श्वसन एवं नि: श्वसन को परिभाषित कीजिए एवं इसकी क्रियाविधि को सचित्र समझाइए।
Ans: वायु को फेफड़ों के अंदर लिया जाना व फेफड़ों से बाहर करने की क्रिया को श्वासोच्छवास कहते हैं। श्वासोच्छवास की क्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है -
A अंतः श्वसन : जब डायफ्राॅम का संकुचन होता है, तो डायफ्राॅम चपटा हो जाता है जिसके कारण वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ जाता है फलस्वरुप फेफड़ों का आयतन भी बढ़ जाता है। इसी प्रकार जब बाह्य इंटरकोस्टल मसल्स का संकुचन होता है तो उरोस्थि आगे व ऊपर की ओर चली जाती है फलस्वरुप वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ जाता है फलस्वरुप फेफड़ों का आयतन भी बढ़ जाता है। जब फेफड़ों का आयतन बढ़ जाता है तो फेफड़ों के अंदर गैस का दाब, वायुमंडलीय दाब से कम हो जाता है फलस्वरुप वातावरण की वायु फेफड़ों के अंदर प्रवेश करती है। यह क्रिया सरल विसरण द्वारा होता है इसे अंतः श्वसन कहते हैं।
अंतः श्वसन की क्रिया का क्रम -
नाक → ग्रसनी → एपिग्लाॅटिस → कंठ → ट्रैकिया → श्वसनी → श्वसनिका → कूपिका (एल्वूलाई)
B नि: श्वसन : इसे बाह्य श्वसन भी कहते हैं। जब डायफ्राॅम का शिथिलन होता है, तो डायफ्राॅम गुंबदाकार हो जाता है फलस्वरुप वक्षीय गुहा का आयतन कम हो जाता है, जिसके कारण फेफड़ों का आयतन भी कम हो जाता है। इसी प्रकार जब एक्सटर्नल इंटरकोस्टल मसल्स का शिथिलन होता है तो उरोस्थि नीचे व पीछे की ओर आती है जिसके कारण वक्षीय गुहा का आयतन कम हो जाता है, फलस्वरूप फेफड़ों का आयतन भी कम हो जाता है। जब फेफड़े का आयतन कम होता है तो फेफड़ों के अंदर गैस का दाब, वायुमंडलीय दाब से अधिक होता है जिसके कारण फेफड़े के अंदर की वायु वातावरण में चली जाती है, इस क्रिया को नि: श्वसन कहते हैं।
नि: श्वसन की क्रिया का क्रम -
कूपिका (एल्वूलाई) → श्वसनिका → श्वसनी → ट्रैकिया → कंठ → एपिग्लाॅटिस → ग्रसनी → नाक
Q.3 गैसों के विनिमय को सचित्र समझाइए।
Ans: गैसों का विनिमय (Exchange of gases)
गैसों का विनिमय सरल विसरण द्वारा होता है। कूपिकाओं में ऑक्सीजन का दाब 104mmHg एवं कार्बन डाइऑक्साइड का दाब 40mmHg होता है। विऑक्सीजनीकृत रक्त में ऑक्सीजन का दाब 40mmHg एवं कार्बन डाइऑक्साइड का दाब 45mmHg होता है। जब विऑक्सीजनीकृत रक्त फेफड़ों के पास से होकर गुजरता है तब सरल विसरण द्वारा कूपिकाओं से ऑक्सीजन रक्त में आ जाता है एवं रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में चला जाता है। इस प्रकार विऑक्सीजनीकृत, ऑक्सीजनीकृत रक्त में परिवर्तित हो जाता है एवं पल्मोनरी शिरा के द्वारा हृदय तक पहुंचाया जाता है। ऑक्सीजनीकृत रक्त में ऑक्सीजन का दाब 95mmHg एवं कार्बन डाइऑक्साइड का दाब 40mmHg होता है। हृदय से ऑक्सीजनीकृत रक्त महाधमनियों के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों कोशिकाओं तक पहुंचाया जाता है। सरल विसरण द्वारा ऑक्सीजनीकृत रक्त से ऑक्सीजन कोशिकाओं में चला जाता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड कोशिकाओं से रक्त में आ जाता है। इस प्रकार रक्त विऑक्सीजनीकृत हो जाता है। यह महाशिराओं के माध्यम से हृदय तक पहुंचाया जाता है और यह प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रहती है।
Q.4 श्वसन संबंधी होने वाले विकारों को लिखिए।
Ans: 1 अस्थमा (Asthma)
यह एलर्जिक विकार है।
श्वसनी में संकुचन होता है जिससे वायु मार्ग संकरा हो जाता है। श्वसन में कठिनाई आती है इसे अस्थमा कहते हैं।
श्वसनी प्रसारक पंप का उपयोग किया जाता है जिससे श्वसनी का मार्ग फैल जाता है।
2 एम्फाइसिमा (Emphysema)
यह धुम्रपान के कारण होने वाला रोग है।
धूम्रपान करने से कूपिकीय भित्ति नष्ट हो जाता है जिसके कारण गैस विनिमय के लिए पृष्ठीय क्षेत्रफल कम हो जाता है।
इसका पूर्ण उपचार संभव नहीं है। जितनी कूपिकाएं स्वस्थ बची हुई है केवल उनको ही बचाया जा सकता है।
3 व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational respiratory disorder)
खदानों, उद्योगों, धूल-मिट्टी का काम करने वाले लोगों के फेफड़ों में रेशों, धूल आदि का जमाव होने लगता है, जिसके कारण फेफड़ों में गैसों की कमी होने लगती है। इसके कारण रोग उत्पन्न होते हैं जैसे एस्बेस्टोसिस, सिलिकोसिस।
4 ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)
श्वसनी में सूजन व श्लेष्मा के जमाव के कारण होता है।
वायु का मार्ग संकरा हो जाता है, जिससे साॅंस लेने में दिक्कत आती है।
लगातार खांसी आते रहता है।
Q.5 स्त्री एवं पुरुष के कंठ (larynx) में अंतर लिखिए।
Ans: