Metallurgy Process
अयस्क का नमूना → अयस्क का पाउडर बनाना → अयस्क का सांद्रण → अयस्क का ऑक्साइड में परिवर्तन (भर्जन एवं निस्तापन) → अयस्क के ऑक्साइडों का अपचयन → शोधन → शुद्ध धातु
Q.1 अयस्क के सांद्रण किसे कहते हैं? अयस्क के सांद्रण की विधियां लिखिए।
Ans: अयस्क के सांद्रण : अयस्क से अशुद्धियों (गैंग) को अलग करने की प्रक्रिया अयस्क के सांद्रण कहलाती है। इसके लिए अयस्क को क्रसर मील पीसा जाता है जिससे चूर्ण बनता है।
अयस्क के सांद्रण के 4 विधियां है जो निम्नलिखित है -
1 गुरुत्वीय पृथक्करण विधि : इस विधि में बारीक पीसे हुए अयस्क पर जल की धारा प्रवाहित की जाती है जिससे अयस्क में उपस्थित हल्की अशुद्धियां जल की धारा के साथ बह जाती है तथा अयस्क के भारी कण नीचे तली में बैठ जाते हैं। इस विधि का उपयोग ऑक्साइड अयस्कों (हेमेटाइट, टिन स्टोन एवं सिल्वर, गोल्ड) के सांद्रण में किया जाता है।
2 चुंबकीय पृथक्करण विधि : इस विधि का प्रयोग उन अयस्कों के सांद्रण में किया जाता है जिसमें अयस्क या अशुद्धी चुंबकीय प्रकृत्ति की होती है।
इस विधि में बारीक पीसे हुए अयस्क को पट्टी पर डालते हैं जो चुंबकीय रोलर से होकर गुजरती है। इसमें जो पदार्थ अनुचुंबकीय होते हैं वे रोलर से दूर तथा जो पदार्थ चुंबकीय प्रवृत्ति के होते हैं वह रोलर के पास गिरते हैं। इसका उपयोग टिन स्टोन के सांद्रण में भी किया जाता है जिसमें टिन स्टोन अचुंबकीय तथा गैंग चुंबकीय प्रकृति की होती है।
3 झाग या फेन उत्प्लावन विधि : इस विधि का उपयोग सल्फाइड अयस्कों के संद्रन में किया जाता है। जैसे जिंक सल्फाइड (जिंक ब्लेण्डी)।
इस विधि में बारीक पीसे अयस्क को जल में मिलाकर टैंक में डालकर निलंबन बनाते हैं। इसमें थोड़ी मात्रा में पाइन तेल मिलाते हैं। इस निलंबन में ऊपर से वायु प्रवाहित करते हैं जो संग्राहक अयस्क के कणों को जल से अलग कर देते हैं। सल्फाइड अयस्क पानी से नहीं भींगता है बल्कि तेल से भींगता है तथा अशुद्धियां पानी से भींगता है। सल्फाइड धातु के कण हल्के होने तथा तेल से भींगे होने के कारण झाग के साथ ऊपर आ जाते हैं तथा अशुद्धियां टैंक के तली में बैठ जाती है। धातु सल्फाइड को झाग के रूप में चम्मच से पृथक कर, सुखाकर सांद्रित अयस्क प्राप्त करते हैं।
4 निक्षालन (Leaching) : यदि अयस्क किसी उपयुक्त विलायक में विलय हो तो प्रायः लिचिंग का उपयोग करते हैं।
जब अयस्क को किसी उपयुक्त रसायन में घोला जाता है तो संकुल का निर्माण होता है। जब संकुल में उपयुक्त अभिकर्मक मिलाया जाता है, तब अयस्क और अशुद्धियां अलग हो जाते हैं।
बॉक्साइट से एल्युमिना का निक्षालन
बॉक्साइट में आयरन ऑक्साइड, TiO2, SiO2 की अशुद्धियां पाई जाती है।
जब बॉक्साइट अयस्क को सांद्र सोडियम हाइड्रोक्साइड विलयन में 473 - 525K ताप एवं 35atm दाब पर घोला जाता है तब Na[Al(OH)4] संकुल का निर्माण होता है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करने पर अवक्षेप प्राप्त होता है जिसे छानकर, सुखाकर 1470 केल्विन ताप पर गर्म करने पर एल्युमिना प्राप्त होता है।
Ex. सोना एवं चांदी के सांद्रण हेतु भी इसी विधि का उपयोग किया जाता है।
Q.2 भर्जन किसे कहते हैं? इसके लिए आवश्यक शर्तें लिखिए।
Ans: वायु अथवा ऑक्सीजन की उपस्थिति में सांद्रित अयस्क को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित करना भर्जन कहलाता है।
भर्जन के द्वारा सामान्यतः सल्फाइड अयस्क को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित किया जाता है।
भर्जन के लिए आवश्यक शर्तें निम्नलिखित है -
भर्जन के लिए वायु की उपस्थिति आवश्यक होती है।
धातु के गलनांक से नीचे के (कम) तापमान पर सांद्रित अयस्क को भट्टी में गर्म करते हैं।
2 ZnS + 3O2 + ∆ → 2 ZnO + 2 SO2
2 PbS + 3O2 + ∆ → 2 PbO + 2 SO2
2 Cu2S + 3O2 + ∆ → 2 Cu2O + 2 SO2
इस प्रक्रिया में बनने वाले SO2 गैस का उपयोग सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) बनाने के लिए किया जाता है।
Q.3 निस्तापन किसे कहते हैं? इसके लिए आवश्यक शर्तें लिखिए।
Ans: वायु अथवा ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सांद्रित अयस्क को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित करना निस्तापन कहलाता है।
निस्तापन की प्रक्रिया में अयस्क को गर्म किया जाता है जिससे वाष्पशील पदार्थ निकल जाते हैं तथा धातु ऑक्साइड शेष रह जाते हैं।
निस्तापन में सामान्यतः कार्बोनेट अयस्क को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित किया जाता है।
ZnCO3 (कैलामाइन) + ∆ → ZnO + CO2 (g)
CaCO3.MgCO3 (डोलोमाइट) + ∆ → CaO + MgO +2 CO2 (g)
Q.4 आयरन (लोहे) के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को लिखिए।
Ans: निम्नलिखित है -
दहन क्षेत्र: इसका तापमान 2200 केल्विन होता है।
C + O2 → CO2
अपचयन क्षेत्र: इसका तापमान लगभग 500 से 800 केल्विन होता है।
3 Fe2O3 + Co → 2 Fe3O4 + CO2(g)
Fe3O4 + CO → 3 FeO + CO2(g)
FeO + CO → Fe + CO2(g)
धातुमल निर्माण क्षेत्र: इसका तापमान लगभग 900 से 1500 केल्विन होता है।
CaCO3 → CaO + CO2(g)
CaO + SiO2 → CaSiO3 (धातुमल)
गलन क्षेत्र: इसका तापमान लगभग 1600 से 1800 केल्विन होता है।
CO2 + C → 2 CO(g)
Q.5 आयरन (लोहे) के तीन प्रकार कौन-कौन से हैं? समझाइए।
Ans: आयरन के तीन प्रकार निम्नलिखित है -
3) कच्चा आयरन (Pig iron) :
वात्या भट्टी में के बाद प्राप्त लोहा कच्चा आयरन कहलाता है।
इसमें 4% कार्बन तथा सल्फर, फास्फोरस आदि की अशुद्धियां होती है।
यह अशुद्ध लोहा होता है।
2) ढलवा आयरन (Cast iron) :
कच्चा लोहा को रद्दी लोहा और कोक के साथ गर्म करके ढलवा लोहा बनाया जाता है।
यह अशुद्ध लोहा होता है।
यह कठोर एवं भंगुर होता है।
3) पिटवा आयरन (wrought iron) :
हेमेटाइट की परत चढ़ी हुई परिवर्तनी भट्ठी में ढलवा लोहा के अशुद्धियों को ऑक्सीकृत करके पिटवा लोहा बनाया जाता है।
यह शुद्ध लोहा होता है।
यह आघातवर्ध्य एवं तन्य होता है।
Q.6 कॉपर के निष्कर्षण में भर्जन का सचित्र वर्णन करें।
Ans: कॉपर के निष्कर्षण में भर्जन :
सांद्रित अयस्क को ऑक्साइड में परिवर्तित करने के लिए भर्जन का उपयोग किया जाता है।
भर्जन के लिए परिवर्तनी भट्ठी का उपयोग करते हैं।
सांद्रित अयस्क को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है।
परिवर्तनी भट्ठी में अयस्क और ईंधन आपस में नहीं मिलते हैं।
परिवर्तनी भट्ठी के मुख्य तीन भाग होते हैं।
एक ओर के स्थान पर ईंधन तथा दूसरे ओर के स्थान पर चिमनी होती है। दोनों के बीच अयस्क भरा होता है।
कॉपर पायराइटिज के भर्जन की अभिक्रियाएं इस प्रकार है
2 CuFeS2 + O2 + ∆ → 2 FeS + Cu2S + SO2
2 FeS + 3 O2 + ∆ →2 FeO + 2 SO2
2 Cu2S + 3 O2 + ∆ → 2 Cu2O + 2 SO2
इस अभिक्रिया के अंत में FeS, Cu2S, FeO, Cu2O प्राप्त होता है।
Q.7 हाॅल हेराल्ट प्रक्रम से एल्युमिनियम का निष्कर्षण कैसे किया जाता है?
Ans: हाॅल हेराल्ट प्रक्रम से एल्युमिनियम का निष्कर्षण -
इस प्रक्रम में कार्बन की परत युक्त स्टील का पात्र होता है जो कैथोड का कार्य करता है।
इस प्रक्रम में ग्रेफाइट के छड़ एनोड का कार्य करते है।
इस पात्र के निचले भाग में गलित एलुमिना तथा क्रायोलाइट भरा होता है।
क्रायोलाइट के गलनांक को कम करने के लिए इसे गलित अवस्था में भरा जाता है।
इस पात्र के निचले भाग में एल्युमिनियम के निष्कासन हेतु नली पायी जाती है।
इस विधि से प्राप्त एल्युमिनियम काफी शुद्ध होता है।
कैथोड पर अभिक्रिया
Al+3 +3e- → Al(l)
एनोड पर अभिक्रिया
C + 2O-2 → CO2 + 4e-
कुल अभिक्रिया
2 Al2O3 + 3 C → 3 CO2 + 4 Al(l)
Q.8 मंडल परिष्करण (प्रभाजी क्रिस्टलीकरण) किसे कहते हैं? सचित्र समझाइए एवं इसके शर्तें भी लिखिए।
Ans: धातु के निष्कर्ष से प्राप्त धातुओं में सामान्य रूप से अशुद्धियां मिली होती है। ऐसे धातु जो उच्च ताप पर ठोस होते हैं किंतु उसमें उपस्थित अशुद्धियां गलित अवस्था में होती है, तो उसका शोधन करने के लिए जिस विधि का प्रयोग किया जाता है उसे मंडल परिष्करण कहते हैं।
यह विधि धातु और अशुद्धियों के गुणों में अंतर पर निर्भर करता है।
इस विधि में अशुद्धी युक्त धातु के ऊपर-नीचे हीटर चलाया जाता है जिससे गलित अशुद्धियां एक किनारे पर एकत्रित हो जाते हैं।
धातु के उस भाग (गलित अशुद्धियों ) को काटकर अलग कर दिया जाता है तथा इस प्रकार शुद्ध धातु प्राप्त हो जाता है।
इसकी शर्तों निम्नलिखित है -
धातु में उपस्थित अशुद्धियां गलित अवस्था में होनी चाहिए।
धातु उच्च ताप पर ठोस होना चाहिए।
उदाहरण - अर्ध्दचालकों का शोधन।
Q.9 वाष्प प्रावस्था परिष्करण क्या हैं? माॅण्ड्स प्रक्रम एवं वाॅन आरकैल प्रक्रम को समझाइए।
Ans: यह धातु शोध की एक विधि है इस विधि में धातु को वाष्प से लिए योग में परिवर्तित कर उसके विघटन से शुद्ध धातु प्राप्त किया जाता है।
इसके दो प्रक्रम (विधि) निम्नलिखित है -
1) माॅण्ड्स प्रक्रम
निकिल के शोधन हेतु प्रयोग किया जाता है।
i) Ni + 4CO → [Ni(CO)4] (वाष्पशील यौगिक) at 350K temp.
ii) [Ni(CO)4] → Ni (शुद्ध धातु) + 4CO at 450K temp.
2) वाॅन आरकैल प्रक्रम
जर्कोनियम के शोधन हेतु प्रयोग किया जाता है।
i) Zr + 2I2 → ZrI4 (वाष्पशील यौगिक) at 870K temp.
ii) ZrI4 → Zr (शुद्ध धातु) + 2I2 at 2075K temp.
Q.10 विद्युत अपघटन परिष्करण क्या है? Cu के शोधन को सचित्र समझाइए।
Ans: धातुओं की शोधन की इस विधि में शुद्ध धातु का पतला कैथोड और अशुद्ध धातु का मोटा एनोड होता है। एनोड पर ऑक्सीकरण की क्रिया होती है। चूंकि दोनों इलेक्ट्रोड उसी धातु के विलयन में डूबे होते हैं। ये आयन कैथोड पर अपचयित हो जाते हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे शुद्ध धातु का कैथोड मोटा और अशुद्ध धातु का एनोड पतला होते जाता है। अशुद्धियां पात्र की तली में एनोड मंड के रूप में रह जाती है।
उदाहरण - कॉपर का शोधन इसी विधि द्वारा किया जाता है।
एनोड पर अभिक्रिया
Cu(s) → Cu+2(aq) + 2e- (Oxidation)
कैथोड पर अभिक्रिया
Cu+2(aq) + 2e- → Cu(s). (Reduction)
Q.11 जिंक के निष्कर्षण की प्रक्रिया को समझाइए।
Ans:
अयस्क - जिंक ब्लैण्डी (ZnS)
अयस्क का सांद्रण - झाग उत्प्लावन विधि
सांद्रित अयस्क का ऑक्साइड में परिवर्तन - भर्जन द्वारा
2ZnS + 3O2 -- 2SO2 + 2ZnO
भर्जित अयस्क का अपचयन -
ZnO + C + ∆ at 1673K -- Zn (अशुद्ध जिंक धातु) + CO
अयस्क का शोधन - आसवन विधि द्वारा
Zn (अशुद्ध) + वाष्पीकरण + आसवन -- Zn (शुद्ध)
Q.12 काॅपर के निष्कर्षण की प्रक्रिया को समझाइए।
Ans:
अयस्क -
कॉपर पायराइटीज (CuFeS2)
कॉपर ग्लांस (Cu2S)
अयस्क का सांद्रण - झाग उत्प्लावन विधि
सांद्रित अयस्क का ऑक्साइड में परिवर्तन - भर्जन द्वारा
2CuFeS2 + O2 +∆ -- Cu2S + 2FeS + SO2
2Cu2S + 3O2 + ∆ -- 2Cu2O + 2SO2
2FeS + 3O2 + ∆ -- 2FeO + 2SO2
भर्जित अयस्क का अपचयन -
FeO + SiO2 -- FeSiO3
2Cu2O + Cu2S --- 6Cu (फफोलदार कॉपर) + SO2
अयस्क का शोधन - विद्युत अपघटन विधि द्वारा
Q.13 आयरन (Fe) के निष्कर्षण की प्रक्रिया को समझाइए।
Ans:
अयस्क -
हेमेटाइट (Fe2O3)
मैग्नेटाइट (Fe3O4)
अयस्क का सांद्रण - गुरुत्वीय पृथक्करण विधि
अयस्क का निष्कर्षण (वात्याभट्ठी में) -
दहन क्षेत्र
C + O2 -- CO2(g)
अपचयन क्षेत्र
3Fe2O3 + CO -- CO2(g) + 2Fe3O4
Fe3O4 + CO -- 3FeO + CO2(g)
FeO + CO -- Fe + CO2(g)
धातुमल निर्माण क्षेत्र
CaCO3+∆ -- CaO + CO2(g)
SiO2 + CaO -- CaSiO3
गलन क्षेत्र
Fe and CaSiO3 गलित अवस्था में आ जाता है।
Q.14 एल्युमिनियम के निष्कर्षण की प्रक्रिया को समझाइए।
Ans:
अयस्क -
बाॅक्साइट (Al2O3.2H2O)
क्रायोलाइट (Na3AlF6)
अयस्क का सांद्रण - लीचिंग द्वारा प्राप्त होता है।
सांद्रित अयस्क का अपचयन - हाॅल हेराॅल प्रक्रम द्वारा
एल्युमिनियम के निष्कर्षण के इस प्रक्रम में एक स्टील का पात्र होता है, जिस पर कार्बन की परत चढ़ी होती है। यह कैथोड का कार्य करता है। इसमें ग्रेफाइट की छड़ होती है, जो एनोड का कार्य करता है। इस विधि से प्राप्त एल्युमिनियम काफी शुद्ध होता है।
कैथोड पर अभिक्रिया : Al+³ + 3e- -- Al(l)
एनोड पर अभिक्रिया : 2O-² + C -- CO2 + 4e-
कुल अभिक्रिया : 2Al2O3 + 3C ---- 4Al + 3CO2