सहर्ष स्वीकारा है
गजानन माधव मुक्तिबोध
गजानन माधव मुक्तिबोध
प्रश्न 1: वह क्या-क्या है जिसे कवि ने सहर्ष स्वीकारा है?
उत्तर: कवि ने अपने जीवन के समस्त कमजोरियों 'और उपलब्धियों को स्वीकार किया है। उन्होंने अपनी जिंदगी में मिलने वाले सभी वस्तु, भाव, सुख-दुःख 'आदि को सहर्ष स्वीकार किया है, उनके मन में किसी भी वस्तु को स्वीकार न करने की भावना नहीं है। कवि को अपने गरीब होने पर भी गर्व है, उसकी गरीबी भी गरबीली (स्वाभिमानी) है।
प्रश्न 2: कवि के पास जो कुछ भी अच्छा-बुराई है वह विशिष्ट और मौलिक कैसे और क्यों है ?
उत्तर: कवि के कहता है कि उनके पास जो कुछ भी अच्छा-बुरा है वह विशिष्ट और मौलिक है, कवि का मानना है कि उसकी प्रियतमा का समर्थन उन्हें हमेशा, हर उपलब्धि में प्राप्त हुआ है। कवि की निर्धनता, विचार, वैभव, दृढ़ता, करूणा सभी मौलिक है क्योंकि उन्हें इन मौलिक गुणों के साथ उनकी प्रियतमा का भी समर्थन प्राप्त हुआ है इसलिए यह सब विशिष्ट है।
प्रश्न 3: 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता में कवि का संबोध्य कौन है?
उत्तर: सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि का संबोध्य तुम है। यहा तुम उनकी प्रियतमा, उनकी माँ या उनकी बहन भी हो सकती है। सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में अपनी सभी कमजोरियों एवं उपलब्धियों को स्वीकारा है। कवि को अपने गरीबी पर गर्व है उनकी गरीबी भी स्वाभिमानी है। कवि हर सुखः दुख, हार-जीत सभी में उनकी प्रियतमा का समर्थन प्राप्त हुआ है। कवि ने अपने जीवन में सभी उपलब्धियों को भी इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि उनकी प्रियतमा ने उनकी उपलब्धियों या कमजोरियों को स्वीकारा है। मेरे अनुसार कवि का संबोध्य उनकी प्रियतमा हो सकती है।
प्रश्न 4: बहलाती सहलाती आत्मीयता बर्दाश नहीं होती है कवि गजानन मुक्तिबोध ने ऐसा क्यों कहा है? क्या इसमें अंतर्विरोध है?
Ans: बहलाती सहलाती आत्मीयता बर्दाश नहीं होती है इस कविता 'सहर्ष स्वीकार है' में अंतर्विरोध है। कवि गजानन मुक्तिबोध जी कहता है कि उनकी प्रिये उनसे अत्यधिक स्नेह करती है। उनके स्नेह ने उन्हें पूरी तरह भावुक बना दिया है। कवि अपनी प्रिये के अत्यधिक स्नेह, प्रेम के कारण स्वयं को निर्बल महसूस करने लगा है। अब उन्हें उनकी प्रिये द्वारा प्रेम से बहलाना, दुख में प्रेम से सहृदयपूर्ण सहलाना बर्दाश नहीं होता। अतः वह अपने प्रिये से दंड के रूप में ऐसे स्थान में भेजने की मांग करता है जहां दक्षिणी ध्रुवी अंधकार अमावस्या के समान हो अर्थात् वह अपने प्रिय से दूर उस स्थान में जाना चाहता है जहां न तो सूर्य की रोशनी पहुंचती हो और न ही चंद्रमा की। वह ऐसे सुनसान, विरान स्थान में भेजने के लिए कहता है ताकि वह स्वयं को आत्मनिर्भर, सबल, सक्षम बना सके।