रासायनिक ऊष्मागतिकी
रासायनिक ऊष्मागतिकी, ऊष्मागतिकी की वह शाखा है जो रासायनिक अभिक्रियाओं और भौतिक अवस्था परिवर्तनों में ऊर्जा और कार्य के अंतर्संबंध का अध्ययन करती है. यह बताता है कि कैसे ऊष्मा और कार्य एक-दूसरे में परिवर्तित होते हैं और कौन सी प्रक्रियाएं स्वतःस्फूर्त (spontaneous) हो सकती हैं.
निकाय (System): अध्ययन के लिए चुना गया ब्रह्मांड का वह भाग, जिसके बारे में जानकारी एकत्रित की जाती है. इसके अलावा, निकाय के बाहर का सब कुछ परिवेश कहलाता है.
निकाय के प्रकार
खुला निकाय : ऐसा निकाय या तंत्र जिसमें ऊर्जा एवं पदार्थ दोनों का आदान-प्रदान होता है, उसे खुला निकाय कहते हैं।
उदाहरण : खुला पत्र में चाय बनाना।
बंद निकाय : ऐसा तंत्र या निकाय जिसमें ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है किंतु पदार्थ का आदान-प्रदान नहीं होता, उसे बंद निकाय कहते हैं।
उदाहरण : ढंके पात्र में गर्म पानी, ढंके कप में चाय।
विलगित निकाय : ऐसा तंत्र या निकाय जिसमें पदार्थ एवं ऊर्जा दोनों का आदान-प्रदान नहीं होता, उसे विलगित निकाय कहते हैं।
उदाहरण : बंद थर्मस में रखा हुआ गर्म चाय।
ऊष्मागतिकी प्रक्रमों के प्रकार
समतापी प्रक्रम : ऐसा प्रक्रम जिसमें सभी क्रियाएं स्थिर ताप पर संपन्न होता है समतापी प्रक्रम कहलाता है।
रूध्दोष्म प्रक्रम : ऐसा प्रक्रम जिसमें निकाय तथा पारिपार्श्विक के बीच ऊष्मा का विनिमय संभव नहीं होता अर्थात् प्रक्रम विलगित निकाय में संपन्न होता है, रूध्दोष्म प्रक्रम कहलाता है।
यदि प्रक्रम ऊष्माक्षेपी हो तो ताप बढ़ जाता है तथा यदि ऊष्माशोषी हो तो ताप कम हो जाता है।
समदाबी प्रक्रम : ऐसा प्रक्रम जो स्थिर दाब पर संपन्न होता है, समदाबी प्रक्रम कहलाता है।
समआयतनी प्रक्रम : प्रक्रम जो स्थिर आयतन पर संपन्न होता है, समआयतनी प्रक्रम कहलाता है।
चक्रीय प्रक्रम : जब निकाय विभिन्न पदों में क्रमिक परिवर्तन द्वारा अंततः मूल अवस्था में वापस आ जाता है अर्थात् ऊर्जा परिवर्तन नहीं होता, तो इसे चक्रीय प्रक्रम कहते हैं।
आंतरिक ऊर्जा : किसी निकाय में निहित ऊर्जा उसकी आंतरिक ऊर्जा कहलाती है।
बम कैलोरीमीटर या आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन
विधि : पदार्थ के आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन का मापन करने हेतु बम कैलोरीमीटर का उपयोग किया जाता है। यह एक कठोर स्टील का बना होता है। इसके भीतरी सतह पर प्लैटिनम या सोने की कोटिंग की जाती है जिससे यह ऑक्सीकृत ना हो। पदार्थ के दहन हेतु इसमें एक प्लैटिनम का प्लेट होता है जिसमें दो विद्युत तार संलग्न होते हैं जिससे विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।
इसे रूध्दोष्म बनाने के लिए तापरोधित जलकुंड में डुबा देते हैं। जलकुंड में एक विलोडक एवं एक थर्मामीटर डुबा रहता है। प्रयोग में जल का प्रारंभिक ताप नोट कर लेते हैं। विद्युत स्पार्क करने से पदार्थ का दहन होता है। दहन से उत्पन्न ताप द्वारा जलकुंड में जल का ताप बढ़ जाता है जिसे पुनः थर्मामीटर की सहायता से नोट कर लेते हैं। इस अभिक्रिया में उत्पन्न हुई ऊष्मा का मान आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है।
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प्रयुक्त सूत्र : दहन में उत्पन ऊष्मा = कैलोरीमीटर का जल तुल्यांक × ताप में परिवर्तन × जल की विशिष्ट ऊष्मा।
∆U = Q×∆T×M/m जूल।
एन्थैल्पी
एन्थैल्पी : स्थिर दाब पर किसी निकाय की ऊष्मा उसकी आंतरिक ऊर्जा, दाब एवं आयतन के गुणनफल के योग के बराबर होता है।
H = E + PV
जहां
H = एन्थैल्पी
E = आंतरिक ऊर्जा
P = दाब
V = आयतन
आंतरिक ऊर्जा की तरह एन्थैल्पी एक अवस्था फलन है, इसके निरपेक्ष मान को ज्ञात नहीं कर सकते।
∆H = H(अंतिम) - H(प्रारंभिक)
अतः एन्थैल्पी में परिवर्तन ज्ञात किया जाता है। रसायन में प्रारंभिक एवं अंतिम अवस्था को अभिकारकों एवं उत्पादों में दर्शाते हैं।
अतः
∆H = H(उत्पाद) - H(अभिकारक)
एन्थैल्पी में परिवर्तन
माना स्थिर दाब पर किसी निकाय की प्रारंभिक अवस्था में एन्थैल्पी H1, E1, V1 हो तथा ऊर्जा ग्रहण करने के बाद इसका मान क्रमशः H2, E2, V2 हो जाता है।
H = E + PV
H1 = E1 + PV1 ------(1)
H2 = E2 + PV2 -------(2)
समीकरण (2) - (1) करने पर,
H2 - H1 = E2 -E1 + P(V2 - V1)
∆H = ∆E + P∆V
ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया : यदि किसी अभिक्रिया के फलस्वरुप ऊष्मा उत्पन्न होता है, तो उस अभिक्रिया को ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया कहते हैं।
N2(g) + 3H2(g) --- 2NH3 (g) ∆H = -92.3KJ
ऊष्माशोषी अभिक्रिया : यदि किसी अभिक्रिया कोसांपना होने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है अर्थात ऊष्मा का अवशोषण होता है तो उसे ऊष्माशोषी अभिक्रिया कहते हैं।
C(s) + 2S(s) ---- CS2 ∆H = +83.16KJ
हेस का नियम : इस नियम का प्रतिपादन सन् 1840 में हेस के द्वारा किया गया। किसी भौतिक या रासायनिक परिवर्तन में एन्थैल्पी (ऊर्जा) का मन समान रहता है चाहे अभिक्रिया एक पद में हो या एक से अधिक पद में हूं। अतः एन्थैल्पी परिवर्तन हमेशा स्थिर रहता है। यह ऊर्जा संरक्षण पर आधारित है।
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अभिक्रिया के पथ पर,
पदार्थ A को X में बदला जा सकता है।
A --X में बदला जा सकता है।
A -- B -- C -- X में बदला जा सकता है।
हेस के नियम अनुसार,
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कार्बन (C) को कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) में निम्नलिखित दो विधि द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है -
प्रथम विधि
C(s) + O2(g) --- CO2(g) ∆H = -393.5KJ
द्वितीय विधि
a) C(s) + 1/2 O2 -- CO(g) ∆H = -110.5KJ
b) CO + 1/2 O2 --- CO2(g) ∆H = -283 KJ
a) + b) ∆H = -393.5KJ
गिब्स मुक्त ऊर्जा
तंत्र या निकाय से प्राप्त वह ऊर्जा जिसे किसी उपयोगी काम के लिए लगाया जा सके, वह ऊर्जा तंत्र की मुक्त ऊर्जा कहलाती है।
इसे 'G' से प्रदर्शित करते हैं।
G = H - TS ----(1)
जहां
G = गिब्स मुक्त ऊर्जा
H = एन्थैल्पी
T = ताप
S = एंट्राॅपी
हम जानते हैं कि
H = E + PV ----(2)
समीकरण (1) व (2) से,
G = E + PV - TS
तंत्र ऊर्जा में परिवर्तन
∆G = ∆(E) + ∆(PV) - ∆(TS)
यदि प्रक्रम स्थिर दाब व ताप पर हो रहा है, तो ∆(PV) को P∆V तथा ∆(TS) को T∆S लिख सकते हैं।
∆G = ∆E + P∆V - T∆S
हम जानते हैं कि स्थिर दाब पर एन्थैल्पी में परिवर्तन (∆H = ∆E + P∆V) होता है, तब
∆G = ∆H - T∆S
मेयर सूत्र
ऊष्मा धारिता: 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक सूचना की मात्रा कहलाती है इसका मात्रक जूल प्रति केल्विन होता है।
स्थिर आयतन पर ऊष्मा धारिता
Cv = [∆V/∆T]v
∆V = Cv∆T = qv ------ (1)
स्थिर दाब पर ऊष्मा धारिता
Cp = [∆H/∆T]p
∆H = Cp∆T = qp ------ (2)
आदर्श गैस के एक मोल हेतु,
∆H = ∆V + ∆(PV)
∆H = ∆V + ∆(RT)
∆H = ∆V + R∆V -------(3)
समीकरण (1) व (2) से मान रखने पर,
Cp∆T = Cv∆T + R∆T
दोनों पक्ष में ∆T से भाग देने पर,
Cp∆T/∆T = Cv∆T/∆T + R∆T/∆T
Cp = Cv + R
Cp - Cv = R -----(4)
समीकरण (4) मेयर सूत्र या समीकरण कहलाता है।
दहन ऊष्मा: स्थिर ताप पर किसी यौगिक के एक मोल के पूर्ण दहन से एन्थैल्पी में जितना परिवर्तन होता है उसे उसकी दहन ऊष्मा कहते हैं।
Ex. C + O2 ---- CO2 -393.5 KJ
अनुप्रयोग -
यौगिक का संभवन ज्ञात करने में।
यौगिक की संरचना ज्ञात करने में।
ईंधन का तापक मान ज्ञात करने में।
संभवन ऊष्मा : किसी यौगिक के निर्माण (संभवन) के समय उसके एक मोल के निर्माण में होने वाला पूर्ण ऊष्मा परिवर्तन उस यौगिक का संभवन ऊष्मा कहलाता है।
Ex. C + 2H2 --- CH4 ∆H = -21kcal
बहुलीकरण : जब रासायनिक अभिक्रिया में दो या दो से अधिक अणु जुड़कर एक बड़ा (वृहद) अणु का निर्माण करते हैं, तो उसे बहुलक कहते हैं तथा इस घटना को बहुलीकरण कहते हैं।
Ex. n(C2H4) + 100-300°C ------ (-CH2-CH2-)n polythene
अनुप्रयोग -
PVC पाइप बनाने में।
विद्युत रोधी तार बनाने में।
बैकलाइट के निर्माण में।
गलन की ऊष्मा या वाष्पन की एन्थैल्पी : एक मोल ठोस को उसके गलनांक व एक वायुमंडलीय दाब पर एक मोल द्रव में परिवर्तित करने के लिए एन्थैल्पी में जितना परिवर्तन होता है, उसे ठोस की गलन की ऊष्मा या वाष्पन की एन्थैल्पी कहते हैं।
अवस्था फलन : वे ऊष्मागतिक गुण जो किसी निकाय की अवस्था को निर्धारित करता है, उसे अवस्था फलन कहते हैं। यह पथ पर निर्भर नहीं करता। जैसे ताप, दाब, आयतन, एन्थैल्पी, एंट्राॅपी एवं मुक्त ऊर्जा आदि।