गलता लोहा
शेखर जोशी
शेखर जोशी
‘गलता लोहा’ शेखर जोशी की एक संवेदनशील कहानी है जो जातिवाद, सामाजिक बंधन और मानवीय संघर्षों को उजागर करती है। कहानी का नायक मोहन, एक मेधावी ब्राह्मण लड़का है, जो अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष करता है। उसका पिता वंशीधर तिवारी पुरोहिताई करते हैं, लेकिन वृद्धावस्था में शारीरिक कमजोरी के कारण कठिन श्रम नहीं कर पाते। मोहन खेतों की देखभाल करने के लिए हँसुवा लेकर घर से निकलता है, लेकिन रास्ते में वह धनराम लोहार की दुकान पर रुकता है। धनराम की भट्टी की आवाज़ें और लोहे के काम में रुचि देखकर मोहन वहाँ बैठ जाता है। वह धीरे-धीरे लोहार के काम में माहिर हो जाता है और जातिगत भेदभाव को नकारते हुए शिल्पकार टोले में बैठकर काम करता है। यह घटना सामाजिक मर्यादाओं को चुनौती देने वाली है, क्योंकि ब्राह्मणों को शिल्पकारों के यहाँ बैठना अपमानजनक माना जाता था। मोहन का यह कदम जातिवाद के खिलाफ एक सकारात्मक संदेश देता है और यह दर्शाता है कि मानवता और मेहनत से बढ़कर कोई जाति या धर्म नहीं है।
1. कहानी का नायक कौन है?
A) धनराम
B) मोहन ✅
C) त्रिलोक सिंह
D) वंशीधर तिवारी
2. मोहन का पिता किस पेशे से जुड़े थे?
A) लोहार
B) पुरोहित ✅
C) शिक्षक
D) किसान
3. मोहन ने किसके साथ लोहे का काम सीखा?
A) धनराम ✅
B) त्रिलोक सिंह
C) वंशीधर तिवारी
D) रमेश
4. कहानी में किसका निधन हुआ था?
A) धनराम
B) त्रिलोक सिंह ✅
C) मोहन
D) वंशीधर तिवारी
5. मोहन ने किसका हँसुवा लिया था?
A) धनराम का ✅
B) त्रिलोक सिंह का
C) वंशीधर तिवारी का
D) रमेश का
6. कहानी में किसे 'लोहा भरा' कहा गया था?
A) धनराम
B) मोहन ✅
C) त्रिलोक सिंह
D) वंशीधर तिवारी
7. मोहन ने किसे अपनी भूल के लिए माफ़ी दी?
A) धनराम ✅
B) त्रिलोक सिंह
C) वंशीधर तिवारी
D) रमेश
8. कहानी में किसे 'मास्साब' कहा गया था?
A) धनराम
B) त्रिलोक सिंह ✅
C) मोहन
D) वंशीधर तिवारी
9. मोहन ने किसे 'लाला' कहा था?
A) धनराम ✅
B) त्रिलोक सिंह
C) वंशीधर तिवारी
D) रमेश
10. कहानी में किसका निधन हुआ था?
A) धनराम
B) त्रिलोक सिंह ✅
C) मोहन
D) वंशीधर तिवारी
1. मोहन के जीवन में आए परिवर्तनों का वर्णन करें।
Ans: मोहन एक मेधावी ब्राह्मण लड़का था, जो आर्थिक कठिनाइयों के कारण अपने परिवार की सहायता करने के लिए खेतों में काम करता था। वह धनराम लोहार से मिलता है और लोहे के काम में रुचि दिखाता है। धीरे-धीरे वह लोहार के काम में माहिर हो जाता है और जातिगत भेदभाव को नकारते हुए शिल्पकार टोले में बैठकर काम करता है। इससे उसके जीवन में आत्मविश्वास और सामाजिक समरसता की भावना विकसित होती है।
2. वंशीधर तिवारी के संघर्षों का विश्लेषण करें।
Ans: वंशीधर तिवारी एक पुरोहित थे, जो वृद्धावस्था में शारीरिक कमजोरी के कारण कठिन श्रम नहीं कर पाते थे। उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर थी, लेकिन उन्होंने अपने बेटे मोहन को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और उसे कठिनाईयों के बावजूद शिक्षा दिलवाने की कोशिश की। उनका संघर्ष यह दर्शाता है कि वे अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे।
3. धनराम और मोहन के रिश्ते का विश्लेषण करें।
Ans: धनराम लोहार जाति का था और मोहन ब्राह्मण जाति का। धनराम ने कभी जातिगत भेदभाव को नहीं माना और मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा। वह मोहन के साथ मिलकर लोहे के काम में माहिर हो गया। उनका रिश्ता जातिगत भेदभाव से परे था, जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
4. कहानी में जातिवाद के प्रभाव का विश्लेषण करें।
Ans: कहानी में जातिवाद का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। मोहन को शिल्पकार टोले में बैठना अपमानजनक माना जाता था, लेकिन उसने जातिगत भेदभाव को नकारते हुए वहाँ बैठकर काम किया। यह दर्शाता है कि जातिवाद समाज में विभाजन और असमानता का कारण बनता है, जिसे समाप्त करना आवश्यक है।
5. कहानी के माध्यम से शेखर जोशी ने क्या संदेश दिया है?
Ans: शेखर जोशी ने इस कहानी के माध्यम से जातिवाद, सामाजिक भेदभाव और मानवीय संघर्षों को उजागर किया है। उन्होंने यह संदेश दिया है कि जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति से बढ़कर मानवता और मेहनत महत्वपूर्ण हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि समाज में समानता और भाईचारे की भावना विकसित करनी चाहिए।
1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं समझता था?
धनराम, जो एक लोहार था, मोहन के साथ अपने संबंधों में कभी भी प्रतिद्वंद्विता नहीं महसूस करता। उसका दृष्टिकोण जाति या उम्र पर आधारित नहीं था। मोहन एक ब्राह्मण लड़का होने के बावजूद, लोहे के काम में रुचि और लगन दिखाता है। धनराम मोहन की मेहनत, लगन और सीखने की इच्छा को देखता है, और उसे प्रतियोगिता या खतरे के रूप में नहीं देखता। वह जानता था कि मोहन का उद्देश्य किसी से मुकाबला करना नहीं, बल्कि अपने कौशल और ज्ञान को बढ़ाना है। धनराम के लिए यह महत्वपूर्ण था कि मोहन काम को ईमानदारी और लगन से करता है। इसलिए उसने मोहन को अपना प्रतिद्वंदी नहीं माना, बल्कि उसे एक साथी और सीखने वाला साथी समझा। इस दृष्टिकोण से कहानी में जाति और सामाजिक भेदभाव के पार मानवीय सहयोग और समझ का संदेश मिलता है।
2. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?
धनराम को मोहन के मेहनती और लगनशील व्यवहार पर आश्चर्य होता है। मोहन, एक ब्राह्मण लड़का होने के बावजूद, लोहार की भट्टी में बैठकर कठिन और धैर्यशील कार्य करता है। यह उसकी रुचि, धैर्य और सीखने की इच्छा को दर्शाता है। मोहन बिना किसी डर या संकोच के काम सीखता है और नई चीज़ों में अपनी क्षमता दिखाता है। धनराम आश्चर्यचकित होता है क्योंकि आम तौर पर ब्राह्मण जाति के लोग इस प्रकार के श्रमसाध्य और शिल्पकर्म में नहीं बैठते थे। मोहन का यह व्यवहार सामाजिक मान्यताओं और जातिगत धारणाओं के खिलाफ था। उसकी ईमानदारी, लगन और जिज्ञासा देखकर धनराम समझता है कि मोहन केवल ज्ञान और कौशल प्राप्त करने के उद्देश्य से आया है, न कि उसका मुकाबला करने या उसे अपमानित करने के लिए। इसीलिए धनराम मोहन के व्यवहार से आश्चर्यचकित होता है।
3. मोहन के लखनऊ आने के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
लेखक ने मोहन के लखनऊ आने के समय को उसके जीवन का नया अध्याय इसलिए कहा क्योंकि यह मोहन के जीवन में परिवर्तन और विकास का प्रतीक बनता है। लखनऊ आने के बाद मोहन ने नए अनुभव प्राप्त किए, नए लोगों से मुलाकात की और समाज की अलग-अलग परिस्थितियों को समझा। यहाँ उसकी शिक्षा, सामाजिक समझ और व्यक्तिगत कौशल में वृद्धि हुई। लखनऊ में मोहन ने अपनी पिछली सीमाओं और जातिगत धारणाओं को पार किया और आत्मनिर्भर और समझदार बनने का रास्ता अपनाया। यह समय मोहन के जीवन में एक मोड़ साबित हुआ क्योंकि उसने अपने लक्ष्य की ओर अधिक दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कदम बढ़ाए। लेखक ने इसे नया अध्याय इसलिए कहा क्योंकि यह मोहन के मानसिक, सामाजिक और व्यक्तिगत विकास का आरंभिक बिंदु है, जो उसकी भविष्य की उपलब्धियों और जीवन दृष्टि के लिए महत्वपूर्ण है।