Q.1 टोटीपोटेंसी की खोज किसने की?
Ans: स्टीवर्ड
Q.2 कैलस क्या है?
Ans: कोशिकाओं का अविभाजित व असंगठित समूह।
Q.3 ऊतक संवर्धन में लिए गए पादप के भाग को क्या कहते हैं?
Ans: एक्सप्लांट
Q.4 उत्तक संवर्धन में जी पादप का उपयोग किया जाता है उसे क्या कहते हैं?
Ans: एलीट
Q.5 सबसे पहले बनाया गया कृत्रिम फसल कौन सा है?
Ans: ट्रिटिकेल
Q.6 ट्रिटिकेल किससे बनाया गया?
Ans: ट्रिटिकम एवं सिकेल के मध्य कृत्रिम संकरण से।
Q.7 उत्तक संवर्धन की किस विधि में हार्मोन का प्रयोग किया जाता है?
Ans: कैलस संवर्धन में।
Q.8 मुर्गी का अन्य नाम बताइए।
Ans: गैलस डोमेस्टिकस।
Q.9 धान के विभिन्न किस्मों के नाम लिखिए।
Ans: जया, रत्ना (अर्ध्दवामन किस्में)
ताइचूंग 1, पूसा सुगंध, माही सुगंधा, बासमती, IR-8, IR-18, IR-32।
Q.10 गेहूं के विभिन्न किस्मों के नाम लिखिए।
कल्याण सोना, सोनालिका (अर्ध्दवामन किस्में)।
Q.11 विभिन्न मछलियों के नाम व उपयोग लिखिए।
Ans:
रोहू (लोबिया रोहिता) : इसमें फास्फोप्रोटीन पाया जाता है जो आंखों की रोशनी बढ़ता है।
कतला-कतला : इसमें फास्फोप्रोटीन पाया जाता है जो आंखों की रोशनी बढ़ता है।
सिंघाला : इसमें आयरन तथा कॉपर पाया जाता है जो रक्त संबंधी विकार को दूर करता है।
मृगाला : इसमें आयरन तथा कॉपर पाया जाता है जो रक्त संबंधी विकार को दूर करता है।
Q.12 एकल कोशिका प्रोटीन क्या है?
Ans: एकल कोशिका प्रोटीन : एक कोशिकीय जीव जैसे बैक्टीरिया लिस्ट सवाल आदि से उत्पन्न की गई खाने योग्य प्रोटीन को एकल कोशिका प्रोटीन कहते हैं।
एकल कोशिका प्रोटीन का उत्पादन करने वाले सूक्ष्मजीव के उदाहरण ;
स्पाइरूलिना यह एक साइनोबैक्टीरिया है यह स्पाइरूलिन प्रोटीन बनता है।
क्लोरेला यह एककोशिकीय शैवाल है जिसमें प्रोटीन, विटामिन जैसे पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
महत्व
इसके उत्पादन से आवश्यक प्रोटीन हेतु कृषि पर निर्भरता कम होती है।
यह पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने में सहायक है।
शैवालों से पर्यावरण संतुलन भी बना रहता है।
Q.13 बायोफोर्टिफिकेशन किसे कहते हैं?
Ans: बायोफोर्टिफिकेशन : वह प्रक्रिया जिसकी सहायता से खाद्य फसलों की पोषक गुणवत्ता को आधुनिक जैव तकनीक की सहायता से बढ़ाया जा सकता है, उसे बायोफोर्टिफिकेशन कहते हैं।
उद्देश्य :
प्रोटीन की मात्रा में सुधार करना।
लिपिड की मात्रा में सुधार करना।
विटामिन के मात्रा एवं गुणवत्ता में सुधार करना।
कार्बोहाइड्रेट की मात्रा एवं गुणवत्ता में सुधार करना।
Biofortification = increasing the nutritional value of crops
Atlas 66 यह गेहूं का एक किस्म है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
Q.14 उत्तक संवर्धन किसे कहते हैं? इसके उद्देश्य एवं प्रकार लिखिए।
Ans: उत्तक संवर्धन वह विधि है जिसके द्वारा पादप कोशिका या उत्तक से संवर्धन माध्यम में पूर्ण पौधे का विकास किया जाता है।
उद्देश्य :
पौधे के किसी भी अवस्था से नए पौधे का विकास करना।
रोगी पौधे से रोग मुक्त पौधे का विकास करना।
महत्वपूर्ण पौधों को कम समय में अधिक संख्या में उगाना।
उत्तक संवर्धन के प्रकार : ये निम्नलिखित है -
1 एकल कोशिका संवर्धन पादप ऊतक संवर्धन की वह प्रक्रिया जिसमें नियंत्रित वातावरण में अजर्मीकृत, पृथक्कृत एक कोशिका को पोषण माध्यम में विकास कराया जाता है उसे एकल कोशिका संवर्धन कहते हैं।
लाभ
इस तकनीक से एकल कोशिका के क्लोन बनाते हैं।
इस तकनीक से पौधों की उन्नत किस्म का उत्पादन करते हैं।
इस तकनीक से पूर्ण पौधे का विकास करते हैं।
2 कैलस संवर्धन पादप उत्तक संवर्धन की वह प्रक्रिया जिसमें कैलस के निर्माण हेतु संवर्धन माध्यम में ऑक्जिन तथा साइटोकाइनिन समान अनुपात में मिलाया जाता है, उसे कैलस संवर्धन कहते हैं।
उपयोग
कैलस संवर्धन की सहायता से हार्मोन उपचार वाले पौधे विकसित होते हैं।
हार्मोन उपचार के बाद कैलस से भ्रूण विकसित होते हैं।
3 कायिक संकरण संवर्धन पादप उत्तक संवर्धन की वह प्रक्रिया जिसमें दो अलग-अलग पौधे की स्वतंत्रता कोशिकाओं को संयुग्मित कराकर द्विगुणित संकर कोशिका का निर्माण किया जाता है तथा उससे नये द्विगुणित संकर पौधे को विकसित किया जाता है, कायिक संकरण कहलाता है।
लाभ या महत्व
इसके द्वारा पौधों की अनुवांशिक गुणों में परिवर्तन कर अधिक पैदावार प्राप्त किया जा सकता हैं।
इसमें लैंगिक संकरण होता है जिससे विकास की संभावनाएं बढ़ती है।
श्रेष्ठ गुण वाले पौधे विकसित किये जा सकते हैं।
4 अंग संवर्धन पादप उत्तक संवर्धन की वह प्रक्रिया जिसमें पादप के किसी विशेष अंग का संवर्धन माध्यम में संवर्धन किया जाता है, उसे अंग संवर्धन कहते हैं जैसे परागकोष, बीजांड, अण्डाशय आदि।
5 माइक्रोप्रोपेगेशन
कृषि, बागवानी और वानिकी आदि के लिए उपयोगी पौधों के विभिन्न भागों को तेजी से वर्धी रूप से विभाजित करवारकर बहुत कम समय में अधिक संख्या में पौधे प्राप्त करना माइक्रोप्रोपेगेशन कहलाता है।
लाभ या महत्व
इस विधि से उत्पन्न सभी पौधे जनक के समान होते हैं।
बहुत कम समय में बहुत अधिक पौधे विकसित होते हैं।
यह उन पौधों में अधिक उपयोगी है जिनमें बीज नहीं बनते हैं।