IUPAC नामकरण के नियम
सर्वाधिक लंबी श्रृंखला का चयन करें।
कार्बन परमाणुओं का अंकन करने की शुरुआत उस सिरे से करें जहां से प्रतिस्थापी समूह पास हो।
प्रतिस्थापी समूह की स्थितियों का न्यूनतम योग नियम लिया जाता है। अर्थात् जिस सिरे से प्रतिस्थापी समूह पास पड़े इस सिरे से अंकन की शुरुआत करें।
प्रतिस्थापियों का नामांकन अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम से किया जाना चाहिए।
कार्बन पर समूह का स्थान और उनका क्रमांकन लिखा जाना चाहिए।
क्रियात्मक समूह, द्विबंध या त्रिबंध उपस्थित होने पर अन्य समूह की तुलना में इसकी वरीयता बढ़ जाती है।
नामांकन उस सिरे से शुरू करें, जहां क्रियात्मक समूह हो। यदि क्रियात्मक समूह ना हो, तो द्विबंध हो, यदि द्विबंध ना हो, तो त्रिबंध हो यदि त्रिबंध ना हो तो प्रतिस्थापी समूह हो।
वरीयता का बढ़ता क्रम -
क्रियात्मक समूह > द्विबंध > त्रिबंध > प्रतिस्थापी समूह
प्रेरणिक प्रभाव : जब कार्बन श्रृंखला के एक सिरे में विद्युत ऋणात्मक तत्व (F,Cl,Br,I) जुड़े होते हैं जिसके कारण साझे के इलेक्ट्रॉन का विद्युत ऋणात्मक तत्व की ओर विस्थापन होता है, इसे ही प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं।
यह एक स्थाई प्रभाव है।
यह केवल सिग्मा इलेक्ट्रॉन के विस्थापन के कारण होता है, पाई इलेक्ट्रॉन के विस्थापन के कारण नहीं होता।
प्रकार या गुण
1 ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव
यह अणु में अधिक विद्युत ऋणी या इलेक्ट्रॉन आकर्षी या इलेक्ट्रॉन ग्राही तत्व के जुड़े होने के कारण होता है। इसे '-I' से प्रदर्शित करते हैं।
CH3CH2 (1°), (CH3)2CH ( 2°), (CH3)3C (3°)
(1°) > (2°) > (3°)
2 धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव
यह अणु में इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी समूह या इलेक्ट्रॉन दाता समूह के उपस्थिति के कारण होता है। इसे '+I' से प्रदर्शित करते हैं।
CH3CH2 (1°), (CH3)2CH ( 2°), (CH3)3C (3°)
(1°) < (2°) < (3°)
अनुप्रयोग
A) आबंध लंबाई पर प्रभाव : प्रेरणिक प्रभाव जितना अधिक होता है आबंध लंबाई का मान उतना ही कम होता है।
B) द्विध्रुव आघूर्ण पर प्रभाव : प्रेरणिक प्रभाव का मान बढ़ने से द्विध्रुव आघूर्ण का मान भी बढ़ता है।
C) एल्किल हैलाइड की क्रियाशीलता ज्ञात करना :
1) तृतीय ब्यूटिल क्लोराइड मिथाइल क्लोराइड की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है।
(CH3)3C-Cl(-I प्रभाव) > CH3-Cl(-I प्रभाव)
कारण : तृतीय ब्यूटिल क्लोराइड में 3 +I प्रभाव पाया जाता है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन क्लोरीन की ओर तेजी से आकर्षित होते हैं जिससे क्लोरीन पर -I प्रभाव बढ़ जाता है। जबकि मिथाइल क्लोराइड में एक +I प्रभाव होता है जिसके कारण क्लोरीन अपेक्षाकृत कम इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है। अतः तृतीय ब्यूटिल क्लोराइड में क्लोरीन परमाणु सरलता से अन्य समूह द्वारा विस्थापित हो जाता है। अतः यह अधिक क्रियाशील होता है।
2) मिथाइल क्लोराइड मेथेन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है।
CH3-Cl(-I प्रभाव) > CH4
कारण : मिथाइल क्लोराइड में क्लोरीन पाया जाता है जो C-H, C-Cl के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है जिसके कारण यह बंध कमजोर होता है। अतः यह अधिक क्रियाशील है। जबकि मेथेन में कोई इलेक्ट्रॉन स्नेही समूह नहीं पाया जाता। अतः C-H बंध अपेक्षाकृत मजबूत होता है।
D) अम्लों की प्रबलता ज्ञात करना।
1) एसिटिक अम्ल, फार्मिक अम्ल की अपेक्षा दुर्बल होता है।
CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : एसिटिक अम्ल, फार्मिक अम्ल की अपेक्षा दुर्बल होता है क्योंकि एसिटिक अम्ल में एक +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण बंध के इलेक्ट्रॉन O-H की ओर विस्थापित होते हैं। अतः O-H बंध मजबूत हो जाता है तथा हाइड्रोजन आसानी से मुक्त नहीं हो पाता। जबकि फार्मिक अम्ल में +I प्रभाव नहीं पाया जाता। अतः O-H बंध के विघटन से (आसानी से) हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है। अतः यह अधिक अम्लीय होता है।
2) ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड, एसिटिक एसिड की अपेक्षा प्रबल एसिड होता है।
C(Cl)3-CO-O-H > CH3-CO-O-H
कारण : क्योंकि ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड में तीन -I प्रभाव होता है जो बंध के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अतः O-H बंध दुर्बल होता है जिसके कारण यह आसानी से हाइड्रोजन मुक्त कर देता है। जबकि एसिटिक अम्ल में एक +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण बंध के इलेक्ट्रॉन O-H की ओर विस्थापित होते हैं। अतः O-H बंध मजबूत हो जाता है तथा हाइड्रोजन आसानी से मुक्त नहीं हो पाता।
3) फार्मिक अम्ल, एसिटिक अम्ल, प्रोपिओनिक अम्ल, ब्यूटीरिक अम्ल के प्रबलता का क्रम -
C3H7-CO-O-H < C2H5-CO-O-H < CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : +I प्रभाव जितना अधिक होता है उसकी अम्लीयता उतनी ही कम होती है क्योंकि +I प्रभाव के कारण अम्ल में O-H के मध्य उपस्थित बंध मजबूत हो जाता है, जिसके कारण आसानी से हाइड्रोजन नहीं निकल पाता। जिस अम्ल में +I प्रभाव कम होता है उसकी अम्लीयता अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि इसमें O-H बंध दुर्बल होता है। अतः यह अपेक्षाकृत आसानी से हाइड्रोजन मुक्त करता है।
E) क्षारकों की प्रबलता ज्ञात करना।
यह यौगिक पर निर्भर करता है कि वह कितनी आसानी से H+ आयन ग्रहण करता है। अमोनिया (NH3) के H परमाणु को एल्किल समूह द्वारा प्रतिस्थापित करने पर क्रमशः प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक एमीन का निर्माण होता है। इनमें +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण मेथिल समूह के कार्बन परमाणु के इलेक्ट्रॉन नाइट्रोजन की ओर प्रतिकर्षित होते हैं।
NH3 < (R)-NH2 < (R2)-NH < (R3)N
तृतीयक एमीन में तीन एल्किल समूह होते हैं जिसके कारण इसमें +I प्रभाव अधिक होता है, अतः इसे सर्वाधिक क्षारीय होना चाहिए। किंतु बांधा प्रभाव के कारण द्वितीयक एमीन अधिक क्षारीय होता है। अतः क्षारीयता का क्रम होगा -
NH3 < (R)-NH2 < (R3)N < (R2)-NH
इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव
यह एक अस्थाई प्रभाव है। आक्रमणकारी अभिकर्मक के प्रभाव से बहु बंध से जुड़े दो परमाणुओं के बीच π इलेक्ट्रॉन युग्म का स्थानांतरण इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव कहलाता है।
प्रकार
+E प्रभाव : जब π इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण अणु के मुख्य भाग की ओर होता है तो इसे +E प्रभाव कहते हैं।
Ex. -F, -Cl, -Br, -I
-E प्रभाव : जब π इलेक्ट्रॉन युग्म का स्थानांतरण अणु के मुख्य भाग से बाहर की ओर होता है, तो उसे -E प्रभाव कहते हैं। यह इलेक्ट्रॉन आकर्षी समूह के जुड़े होने पर होता है।
Ex. =O, =S, =N
अनुनाद या मेसोमेरिक प्रभाव या संयुग्मन प्रभाव
किसी यौगिक के सभी गुणों की व्याख्या एक संरचना सूत्र से ज्ञात नहीं किया जा सकता। इसके लिए हमें एक से अधिक संरचनाएं बनाने की आवश्यकता होती है। इन संरचनाओं को अनुनादी संरचनाएं कहते हैं और एक संरचना से दूसरे संरचना में यह परिवर्तन के घटना अनुनाद कहलाती है। अनुनादी संरचनाओं का मिला-जुला रूप अनुनादी संकर कहलाती है।
यह एक स्थाई प्रभाव है।
अनुनाद में पाई बंध (π) के इलेक्ट्रॉन का विस्थापन होता है।
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अनुनाद के लिए शर्तें
अनुनाद उन यौगिकों में होता है, जो समतलीय होते हैं या उनका कुछ भाग समतलीय होता है।
अनुनाद होने के लिए निकाय संयुग्मित (एकान्तर क्रम) में होना चाहिए।
(=) (-) (=) CH2=CH-CH=CH2
(=)(-)(+Ve) CH2=CH-CH2(+)
(=)(-)(-Ve) CH2=CH-CH3(-)
(=)(-)(l.p.) CH2=CH-O-H
इससे अणु का स्थायित्व बढ़ता है किंतु सक्रियता घटती है।
अनुप्रयोग
बेंजीन की संरचना ज्ञात करने में।
अम्ल एवं क्षार के प्रबलता का स्पष्टीकरण करने में।
द्विध्रुव आघूर्ण की व्याख्या करने में।
आबंध लंबाई ज्ञात करने में।
मुक्त मूलक एवं कार्बधनायन का स्थायित्व ज्ञात करने में।
प्रकार
+R प्रभाव : यदि इलेक्ट्रॉन का विस्थापन संयुग्मित अणु में बंधित परमाणु से दूर होता है, तो उसे +R प्रभाव कहते हैं।
Ex. NH3, OH
-R प्रभाव : यदि इलेक्ट्रॉन का विस्थापन संयुग्मित अणु में बंधित परमाणु की ओर होता है, तो उसे -R प्रभाव कहते हैं।
Ex. -COOH, -CHO
सहसंयोजी बंध का विखंडन
सहसंयोजी बंध परमाणुओं के आपस में इलेक्ट्रॉन की साझेदारी से बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं -
समांश बंध विखंडन : जब सहसंयोजी बंध इस प्रकार टूटें कि साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं के पास समान मात्रा में चले जाएं, तो इस प्रकार के बंध विखंडन को समांश बंध विखंडन कहते हैं।
विषमांश बंध विखंडन : जब सहसंयोजी बंध इस प्रकार टूटें कि साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म किसी एक परमाणु के पास चले जाएं जिसके कारण एक परमाणु के ऊपर धनावेश एवं दूसरे परमाणु के ऊपर ऋणावेश आ जाता है, तो इस प्रकार के बंध विखंडन को विषमांश बंध विखंडन कहते हैं।
MCQs
IUPAC का पूरा नाम लिखिए।
Ans: इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड अप्लाइड केमेस्ट्री ()
मिथाइल क्लोराइड मीथेन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है क्यों?
Ans: प्रेरणिक प्रभाव के कारण।
एसिटिक एसिड, फार्मिक एसिड की अपेक्षा दुर्बल अम्ल है क्यों?
Ans: क्योंकि एसिटिक अम्ल में +I प्रभाव पाया जाता है।
बेंजीन में कितने पाई इलेक्ट्रॉन होते हैं?
Ans: 6
अनुनाद कैसा प्रभाव है?
Ans: स्थायी प्रभाव।
मेसोमेरिक प्रभाव के लिए निकाय कैसा होना चाहिए?
Ans: संयुग्मित (एकांतर क्रम में)।
मुक्त मूलक का विद्युतीय गुण कैसा होता है?
Ans: विद्युत उदासीन।
इलेक्ट्रॉन स्नेही क्या कहलाते हैं?
Ans: लुइस अम्ल।
कार्बनिक यौगिक के किन बंधों की संख्या से संकरण का पता लगाया जा सकता है?
Ans: सिग्मा बंध।
IUPAC नामकरण हेतु विभिन्न समूहों का क्रम लिखिए।
Ans: क्रियात्मक समूह > द्विबंध > त्रिबंध > प्रतिस्थापी समूह
Short Type Questions
Q.1 मेथिल क्लोराइड, मीथेन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है। क्यों?
Ans: CH3-Cl(-I प्रभाव) > CH4
कारण : मेथिल क्लोराइड, मीथेन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है क्योंकि मिथाइल क्लोराइड में क्लोरीन पाया जाता है जो C-H, C-Cl के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है जिसके कारण यह बंध कमजोर होता है। अतः यह अधिक क्रियाशील है। जबकि मेथेन में कोई इलेक्ट्रॉन स्नेही समूह नहीं पाया जाता। अतः C-H बंध अपेक्षाकृत मजबूत होता है।
Q.2 एसिटिक अम्ल, फार्मिक अम्ल की अपेक्षा दुर्बल होता है। क्यों?
Ans: CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : एसिटिक अम्ल, फार्मिक अम्ल की अपेक्षा दुर्बल होता है क्योंकि एसिटिक अम्ल में एक +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण बंध के इलेक्ट्रॉन O-H की ओर विस्थापित होते हैं। अतः O-H बंध मजबूत हो जाता है तथा हाइड्रोजन आसानी से मुक्त नहीं हो पाता। जबकि फार्मिक अम्ल में +I प्रभाव नहीं पाया जाता। अतः O-H बंध के विघटन से (आसानी से) हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है। अतः यह अधिक अम्लीय होता है।
Q.3 ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड, एसिटिक एसिड की अपेक्षा प्रबल होता है। क्यों?
Ans: C(Cl)3-CO-O-H > CH3-CO-O-H
कारण : क्योंकि ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड में तीन -I प्रभाव होता है जो बंध के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अतः O-H बंध दुर्बल होता है जिसके कारण यह आसानी से हाइड्रोजन मुक्त कर देता है। जबकि एसिटिक अम्ल में एक +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण बंध के इलेक्ट्रॉन O-H की ओर विस्थापित होते हैं। अतः O-H बंध मजबूत हो जाता है तथा हाइड्रोजन आसानी से मुक्त नहीं हो पाता।
Q.4 फार्मिक अम्ल, एसिटिक अम्ल, प्रोपिओनिक अम्ल, ब्यूटीरिक अम्ल के प्रबलता का क्रम लिखिए।
Ans: फार्मिक अम्ल, एसिटिक अम्ल, प्रोपिओनिक अम्ल, ब्यूटीरिक अम्ल के प्रबलता का क्रम -
C3H7-CO-O-H < C2H5-CO-O-H < CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : +I प्रभाव जितना अधिक होता है उसकी अम्लीयता उतनी ही कम होती है क्योंकि +I प्रभाव के कारण अम्ल में O-H के मध्य उपस्थित बंध मजबूत हो जाता है, जिसके कारण आसानी से हाइड्रोजन नहीं निकल पाता। जिस अम्ल में +I प्रभाव कम होता है उसकी अम्लीयता अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि इसमें O-H बंध दुर्बल होता है। अतः यह अपेक्षाकृत आसानी से हाइड्रोजन मुक्त करता है।
Q.5 मुक्त मूलक किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए एवं इसके गुण लिखिए।
Ans: विद्युत उदासीन परमाणु जिसके पास एक आयोग में इलेक्ट्रॉन होता है उसे मुक्त मूलक कहते हैं तथा मुक्त मूलक में आयोग में इलेक्ट्रॉन को एक बिंदु से प्रदर्शित करते हैं।
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गुण
ये विद्युत उदासीन परमाणु होते हैं।
ये अधिक क्रियाशील होते हैं।
कार्बन परमाणु sp² संकरित होता है।
ये अस्थाई होते हैं।
Long Type Questions
Q.1 प्रेरणिक प्रभाव किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
Ans: प्रेरणिक प्रभाव : जब कार्बन श्रृंखला के एक सिरे में विद्युत ऋणात्मक तत्व (F,Cl,Br,I) जुड़े होते हैं जिसके कारण साझे के इलेक्ट्रॉन का विद्युत ऋणात्मक तत्व की ओर विस्थापन होता है, इसे ही प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं।
यह एक स्थाई प्रभाव है।
यह केवल सिग्मा इलेक्ट्रॉन के विस्थापन के कारण होता है, पाई इलेक्ट्रॉन के विस्थापन के कारण नहीं होता।
प्रकार या गुण
1 ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव
यह अणु में अधिक विद्युत ऋणी या इलेक्ट्रॉन आकर्षी या इलेक्ट्रॉन ग्राही तत्व के जुड़े होने के कारण होता है। इसे '-I' से प्रदर्शित करते हैं।
CH3CH2 (1°), (CH3)2CH ( 2°), (CH3)3C (3°)
(1°) > (2°) > (3°)
Ex. मिथाइल क्लोराइड मेथेन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है।
CH3-Cl(-I प्रभाव) > CH4
कारण : मिथाइल क्लोराइड में क्लोरीन पाया जाता है जो C-H, C-Cl के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है जिसके कारण यह बंध कमजोर होता है। अतः यह अधिक क्रियाशील है। जबकि मेथेन में कोई इलेक्ट्रॉन स्नेही समूह नहीं पाया जाता। अतः C-H बंध अपेक्षाकृत मजबूत होता है।
2 धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव
यह अणु में इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी समूह या इलेक्ट्रॉन दाता समूह के उपस्थिति के कारण होता है। इसे '+I' से प्रदर्शित करते हैं।
CH3CH2 (1°), (CH3)2CH ( 2°), (CH3)3C (3°)
(1°) < (2°) < (3°)
Ex. फार्मिक अम्ल, एसिटिक अम्ल, प्रोपिओनिक अम्ल, ब्यूटीरिक अम्ल के प्रबलता का क्रम -
C3H7-CO-O-H < C2H5-CO-O-H < CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : +I प्रभाव जितना अधिक होता है उसकी अम्लीयता उतनी ही कम होती है क्योंकि +I प्रभाव के कारण अम्ल में O-H के मध्य उपस्थित बंध मजबूत हो जाता है, जिसके कारण आसानी से हाइड्रोजन नहीं निकल पाता। जिस अम्ल में +I प्रभाव कम होता है उसकी अम्लीयता अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि इसमें O-H बंध दुर्बल होता है। अतः यह अपेक्षाकृत आसानी से हाइड्रोजन मुक्त करता है।
Q.2 प्रेरणिक प्रभाव के अनुप्रयोग लिखिए।
Ans: प्रेरणिक प्रभाव के अनुप्रयोग अनुप्रयोग -
आबंध लंबाई पर प्रभाव : प्रेरणिक प्रभाव जितना अधिक होता है आबंध लंबाई का मान उतना ही कम होता है।
द्विध्रुव आघूर्ण पर प्रभाव : प्रेरणिक प्रभाव का मान बढ़ने से द्विध्रुव आघूर्ण का मान भी बढ़ता है।
एल्किल हैलाइड की क्रियाशीलता ज्ञात करना :
तृतीय ब्यूटिल क्लोराइड मिथाइल क्लोराइड की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है।
(CH3)3C-Cl(-I प्रभाव) > CH3-Cl(-I प्रभाव)
कारण : तृतीय ब्यूटिल क्लोराइड में 3 +I प्रभाव पाया जाता है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन क्लोरीन की ओर तेजी से आकर्षित होते हैं जिससे क्लोरीन पर -I प्रभाव बढ़ जाता है। जबकि मिथाइल क्लोराइड में एक +I प्रभाव होता है जिसके कारण क्लोरीन अपेक्षाकृत कम इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है। अतः तृतीय ब्यूटिल क्लोराइड में क्लोरीन परमाणु सरलता से अन्य समूह द्वारा विस्थापित हो जाता है। अतः यह अधिक क्रियाशील होता है।
मिथाइल क्लोराइड मेथेन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होता है।
CH3-Cl(-I प्रभाव) > CH4
कारण : मिथाइल क्लोराइड में क्लोरीन पाया जाता है जो C-H, C-Cl के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है जिसके कारण यह बंध कमजोर होता है। अतः यह अधिक क्रियाशील है। जबकि मेथेन में कोई इलेक्ट्रॉन स्नेही समूह नहीं पाया जाता। अतः C-H बंध अपेक्षाकृत मजबूत होता है।
अम्लों की प्रबलता ज्ञात करना।
एसिटिक अम्ल, फार्मिक अम्ल की अपेक्षा दुर्बल होता है।
CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : एसिटिक अम्ल, फार्मिक अम्ल की अपेक्षा दुर्बल होता है क्योंकि एसिटिक अम्ल में एक +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण बंध के इलेक्ट्रॉन O-H की ओर विस्थापित होते हैं। अतः O-H बंध मजबूत हो जाता है तथा हाइड्रोजन आसानी से मुक्त नहीं हो पाता। जबकि फार्मिक अम्ल में +I प्रभाव नहीं पाया जाता। अतः O-H बंध के विघटन से (आसानी से) हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है। अतः यह अधिक अम्लीय होता है।
ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड, एसिटिक एसिड की अपेक्षा प्रबल एसिड होता है।
C(Cl)3-CO-O-H > CH3-CO-O-H
कारण : क्योंकि ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड में तीन -I प्रभाव होता है जो बंध के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अतः O-H बंध दुर्बल होता है जिसके कारण यह आसानी से हाइड्रोजन मुक्त कर देता है। जबकि एसिटिक अम्ल में एक +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण बंध के इलेक्ट्रॉन O-H की ओर विस्थापित होते हैं। अतः O-H बंध मजबूत हो जाता है तथा हाइड्रोजन आसानी से मुक्त नहीं हो पाता।
फार्मिक अम्ल, एसिटिक अम्ल, प्रोपिओनिक अम्ल, ब्यूटीरिक अम्ल के प्रबलता का क्रम -
C3H7-CO-O-H < C2H5-CO-O-H < CH3-CO-O-H < HCO-O-H
कारण : +I प्रभाव जितना अधिक होता है उसकी अम्लीयता उतनी ही कम होती है क्योंकि +I प्रभाव के कारण अम्ल में O-H के मध्य उपस्थित बंध मजबूत हो जाता है, जिसके कारण आसानी से हाइड्रोजन नहीं निकल पाता। जिस अम्ल में +I प्रभाव कम होता है उसकी अम्लीयता अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि इसमें O-H बंध दुर्बल होता है। अतः यह अपेक्षाकृत आसानी से हाइड्रोजन मुक्त करता है।
क्षारकों की प्रबलता ज्ञात करना।
यह यौगिक पर निर्भर करता है कि वह कितनी आसानी से H+ आयन ग्रहण करता है। अमोनिया (NH3) के H परमाणु को एल्किल समूह द्वारा प्रतिस्थापित करने पर क्रमशः प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक एमीन का निर्माण होता है। इनमें +I प्रभाव पाया जाता है जिसके कारण मेथिल समूह के कार्बन परमाणु के इलेक्ट्रॉन नाइट्रोजन की ओर प्रतिकर्षित होते हैं।
NH3 < (R)-NH2 < (R2)-NH < (R3)N
तृतीयक एमीन में तीन एल्किल समूह होते हैं जिसके कारण इसमें +I प्रभाव अधिक होता है, अतः इसे सर्वाधिक क्षारीय होना चाहिए। किंतु बांधा प्रभाव के कारण द्वितीयक एमीन अधिक क्षारीय होता है। अतः क्षारीयता का क्रम होगा -
NH3 < (R)-NH2 < (R3)N < (R2)-NH
Q.3 अनुनाद किसे कहते हैं? बेंजीन में अनुवाद को समझाइए। इसके शर्तें एवं अनुप्रयोग लिखिए।
Ans: अनुनाद (Resonance)
किसी यौगिक के सभी गुणों की व्याख्या एक संरचना सूत्र से ज्ञात नहीं किया जा सकता। इसके लिए हमें एक से अधिक संरचनाएं बनाने की आवश्यकता होती है। इन संरचनाओं को अनुनादी संरचनाएं कहते हैं और एक संरचना से दूसरे संरचना में यह परिवर्तन के घटना अनुनाद कहलाती है। अनुनादी संरचनाओं का मिला-जुला रूप अनुनादी संकर कहलाती है।
यह एक स्थाई प्रभाव है।
अनुनाद में पाई बंध (π) के इलेक्ट्रॉन का विस्थापन होता है।
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अनुनाद के लिए शर्तें
अनुनाद उन यौगिकों में होता है, जो समतलीय होते हैं या उनका कुछ भाग समतलीय होता है।
अनुनाद होने के लिए निकाय संयुग्मित (एकान्तर क्रम) में होना चाहिए।
(=) (-) (=) CH2=CH-CH=CH2
(=)(-)(+Ve) CH2=CH-CH2(+)
(=)(-)(-Ve) CH2=CH-CH3(-)
(=)(-)(l.p.) CH2=CH-O-H
इससे अणु का स्थायित्व बढ़ता है किंतु सक्रियता घटती है।
अनुप्रयोग
बेंजीन की संरचना ज्ञात करने में।
अम्ल एवं क्षार के प्रबलता का स्पष्टीकरण करने में।
द्विध्रुव आघूर्ण की व्याख्या करने में।
आबंध लंबाई ज्ञात करने में।
मुक्त मूलक एवं कार्बधनायन का स्थायित्व ज्ञात करने में।
Q.4 सहसंयोजी बंध विखंडन किसे कहते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों को उदाहरण सहित समझाइए।
सहसंयोजी बंध का विखंडन
Ans: सहसंयोजी बंध परमाणुओं के आपस में इलेक्ट्रॉन की साझेदारी से बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं -
समांश बंध विखंडन : जब सहसंयोजी बंध इस प्रकार टूटें कि साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं के पास समान मात्रा में चले जाएं, तो इस प्रकार के बंध विखंडन को समांश बंध विखंडन कहते हैं।
विषमांश बंध विखंडन : जब सहसंयोजी बंध इस प्रकार टूटें कि साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म किसी एक परमाणु के पास चले जाएं जिसके कारण एक परमाणु के ऊपर धनावेश एवं दूसरे परमाणु के ऊपर ऋणावेश आ जाता है, तो इस प्रकार के बंध विखंडन को विषमांश बंध विखंडन कहते हैं।
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Q.5 इलेक्ट्रॉन स्नेही (Electrophile) एवं नाभिक स्नेही (Nucleophile) में अंतर लिखिए।