जूझ
आनंद यादव
आनंद यादव
लेखक का मन हमेशा पाठशाला जाने के लिए तड़पता था, लेकिन उसके पिता उसे पढ़ाई से रोकते थे। वे स्वयं खेतों का काम नहीं करते थे और लेखक से ही सारा काम करवाते थे। लेखक की माँ भी पति से डरती थीं, इसलिए वह बेटे की पढ़ाई के पक्ष में खुलकर कुछ नहीं कह पाती थीं। एक दिन लेखक ने अपनी माँ से दत्ता जी राव सरकार से मदद लेने की बात की, क्योंकि वे गाँव के प्रमुख व्यक्ति थे और उनके सामने पिता को समझाना आसान था। माँ ने लेखक की बात मानी और दोनों रात में दत्ता जी राव के पास गए।
दत्ता जी राव ने लेखक की माँ से सारी बातें सुनीं और उन्होंने लेखक के पिता को समझाने का आश्वासन दिया। जब लेखक के पिता दत्ता जी राव के पास गए, तो उन्होंने लेखक से पूछा कि वह किस कक्षा में पढ़ते हैं। लेखक ने बताया कि वह पाँचवीं कक्षा में पढ़ते थे, लेकिन अब नहीं जा पाते। इस पर दत्ता जी राव ने लेखक के पिता को डाँटा और उन्हें बेटे की पढ़ाई जारी रखने की सलाह दी।
लेखक की माँ और दत्ता जी राव की मदद से लेखक की पढ़ाई फिर से शुरू हो गई। स्कूल में नए माहौल में ढलने में उसे कठिनाई हुई, लेकिन उसने संघर्ष जारी रखा। मराठी के शिक्षक सौंदलेकर के मार्गदर्शन से लेखक ने कविता लिखना शुरू किया और गणित में भी अव्वल आने लगा।
पात्र परिचय
लेखक (आनंद यादव): किशोर अवस्था में शिक्षा के प्रति गहरी रुचि रखने वाला लड़का, जो अपने सपने को साकार करने के लिए संघर्ष करता है।
पिता: बेटे की पढ़ाई के खिलाफ था।
माँ: समझदार और सहायक महिला, जो बेटे की पढ़ाई के पक्ष में थी, लेकिन पति से डरती थी।
दत्ता जी राव सरकार: गाँव के प्रमुख व्यक्ति, जो लेखक के पिता को बेटे की पढ़ाई के लिए समझाते हैं।
मुख्य विचार
संघर्ष और शिक्षा: लेखक ने शिक्षा प्राप्त करने के लिए परिवार और समाज की बाधाओं से संघर्ष किया।
माँ का सहयोग: माँ ने बेटे की पढ़ाई के लिए अपने डर को पार किया और दत्ता जी राव से मदद ली।
दत्ता जी राव का योगदान: गाँव के प्रमुख व्यक्ति ने लेखक के पिता को समझाया और बेटे की पढ़ाई के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
"जूझ" कहानी यह संदेश देती है कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष आवश्यक है। परिवार का सहयोग और समाज के सकारात्मक व्यक्तियों की मदद से कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। लेखक की यह यात्रा हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष करें।
1. "जूझ" कहानी के लेखक कौन हैं?
(a) फणीश्वरनाथ रेणु
(b) आनंद यादव ✅
(c) मनोहर श्याम जोशी
(d) धर्मवीर भारती
2. लेखक की पढ़ाई क्यों रुकी हुई थी?
(a) स्कूल बंद था
(b) पिता पढ़ाई के खिलाफ थे ✅
(c) स्वास्थ्य खराब था
(d) स्कूल दूर था
3. लेखक की पढ़ाई को फिर से शुरू कराने में किसकी मदद मिली?
(a) पिता
(b) दत्ता जी राव ✅
(c) शिक्षक
(d) मित्र
4. लेखक की माँ ने किसके पास मदद के लिए गईं?
(a) शिक्षक
(b) गाँव के प्रधान दत्ता जी राव ✅
(c) पड़ोसी
(d) किसी रिश्तेदार
5. दत्ता जी राव ने लेखक के पिता को क्या समझाया?
(a) खेती में अधिक मेहनत करें
(b) बेटे की पढ़ाई जारी रखें ✅
(c) बेटे को घर पर काम करवाएं
(d) शहर में भेज दें
6. कहानी में लेखक को किस शिक्षक ने मार्गदर्शन दिया?
(a) गणित के शिक्षक
(b) कविता शिक्षक सौंदलेकर ✅
(c) विज्ञान शिक्षक
(d) संगीत शिक्षक
7. लेखक ने किस विषय में विशेष रूप से प्रगति की?
(a) खेल
(b) गणित और कविता ✅
(c) विज्ञान
(d) इतिहास
8. लेखक की माँ का व्यक्तित्व कैसे है?
(a) कठोर और सख्त
(b) डरपोक और असहाय
(c) समझदार और सहायक ✅
(d) उदासीन
9. कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
(a) केवल धन अर्जित करना चाहिए
(b) शिक्षा और संघर्ष महत्वपूर्ण हैं ✅
(c) खेलकूद ज़रूरी है
(d) माता-पिता का विरोध करना चाहिए
10. लेखक की पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा क्या थी?
(a) स्कूल की दूरी
(b) पिता की मना करना ✅
(c) बीमारी
(d) शिक्षा का अभाव
प्रश्न 1: जूझ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए स्पष्ट करे कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
उत्तर: पाठ का शीर्षक किसी भी रचना के मुख्य केन्द्रीय भाव को व्यक्त करता है। जूझ का अर्थ है- संघर्ष । इसमें कथावाचक आनंद की पढ़ाई-लिखाई बीच में रोककर उसे खेती-बाड़ी के कार्य में लगा दिया गया था किंतु लेखक पढ़ना चाहता था इसलिए उसने अपने पिता के विरूद्ध पाठशाला जाने के लिए संघर्ष किया जिसे पाठ का शीर्षक पूर्णतः अभिव्यक्त करता है। आनंदा के पिता उसे विद्यालय नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन आनंदा पढ़ना चाहता था उसने अपने पिता जी के सभी शर्तों को भी मान लिया। वह सुबह 11.00 बजे तक खेतों में काम करता था। फिर वहीं से स्कूल जाता था, वहाँ से आने के बाद पशुओं को चराने के लिए ले जाता था। आनंदा ने हिम्मत नहीं हारी, वह पूरे आत्मविश्वास के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा और सफल हुआ । आनंद ने मास्टर सौंदलगेकर से प्रभावित होकर काव्य में रुचि लेना प्रारंभ किया। इससे उसमें पढ़ने की तीव्र लालसा, आत्मविश्वास, लगन एवं लक्ष्य के प्रति एकाग्रता तथा कविता के प्रति झुकाव आदि चारित्रिक विशेषताएँ देखने मिलती है।
प्रश्न 2: स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
उत्तर: आनंद जब अपने पिता के सभी शर्तों को मानकर पूरे आत्मविश्वास के साथ योजनाबद्ध तरीके से विद्यालय जाने लगा तब उस विद्यालय में सौंदलगेकर मास्टर से वह सर्वाधिक प्रभावित हुआ। मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर कविता के अच्छे रसिक व मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में सस्वर कविता-पाठ करते थे तथा लय, छंद, गति, रस, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे । एक बार मास्टर सौंदलगेकर जी ने घर में निकली मालती लता पर कविता लिखी और उसका वाचन किया, तो लेखक आनंद उससे बहुत प्रभावित हुए क्योंकि प्रत्यक्ष देखने पर उसका वर्णन एकदम सटीक था। उनसे प्रेरित होकर लेखक भी कुछ तुकबंदी करने लगा। उन्हें यह ज्ञान हुआ कि कवि भी उनकी तरह ही होते हैं। वे अपने आस-पास दिखने वाले दृश्य पर कविता बना सकते है! धीरे-धीरे उन्होंने तुकबंदी आरंभ की। वह अपने तुकबंदियों को मास्टर जी को दिखाता था, मास्टर जी उसके गलतियों को बताते थे जिससे वह अपनी गलतियां सुधारते गया व धीरे-धीरे सटीक तुकबंदी करने लगा। मास्टर सौंदलगेकर जी के प्रोत्साहन से लेखक में आत्मविश्वास पैदा हुआ।
प्रश्न 3: श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई ।
उत्तर: श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की विशेषताएं निम्नलिखित है जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई -
मास्टर सौंदलगेकर कुशल अध्यापक, मराठी भाषा के ज्ञाता व कवि थे ।
सौंदलगेकर सुरीले ढंग से स्वयं की व दूसरों की कविताएं गाते थे।
पुरानी- नई मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अंग्रेजी कविताएं भी कंठस्थ थी।
पहले वह एकाध गाकर सुनाते थे फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण करते थे।
वे अन्य कवियों से जुड़े संस्मरण सुनते, बीच-बीच में अपनी कविताएं भी पूरे हाव-भाव के साथ इतनी तन्मयता से सुनते थे कि लेखक भाव विभोर हो जाता था।
आनंद को कविता या तुकबंदी लिखने के प्रारंभिक समय में सौंदलगेकर ने उसका मार्गदर्शन किया, उन्हें अलंकार, छंद का ज्ञान कराया ।
मास्टर ने लेखक को अलग-अलग कविता संग्रह देकर काव्य विधा से परिचित कराया तथा उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। वह धीरे-धीरे कविताएं लिखने में कुशल होकर प्रतिष्ठित कवि बन गया।
प्रश्न 4: कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर:कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में निम्नलिखित बदलाव आया -
कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक की धारणा :-
लेखक आनंद के पिता उसके स्कूल जाने के विरूद्ध थे, लेकिन लेखक विद्यालय जाना चाहता था, पढ़ाई लिखाई करना चाहता था। लेखक के पिता ने उसकी पढ़ाई बीच में ही रूकवाकर उसे खेती-बाड़ी के काम में लगा दिया। लेखक खेतों में पानी डालते समय, पशुओं को चारा चराने ले जाने के दौरान और अन्य काम करते समय अकेलापन महसूस करता | उसे लगता था कि उसके साथ कोई बात करने वाला हो ।
कविता के प्रति लगाव के बाद लेखक की धारणा :-
कथानायक आनंद जब अपने पिता के सभी शर्तों को मानकर विद्यालय जाने लगा तो वह विद्यालय के मराठी के अध्यापक सौंदलगेकर जी से सर्वाधिक प्रभावित हुआ । सौंदलगेकर मराठी भाषा के ज्ञाता व कवि थे । वह सुरीले ढंग से स्वयं की व दूसरों की कविताएं गाते थे, लेखक उनसे प्रेरित होकर स्वयं भी तुकबंदी करने लगा। वह अपने तुकबंदियों को मास्टर जी को दिखाता था, मास्टर जी उसके गलतियों को बताते थे जिससे वह अपनी गलतियां सुधारते गया व धीरे-धीरे सटीक तुकबंदी करने लगा। मास्टर सौंदलगेकर जी के प्रोत्साहन से लेखक में आत्मविश्वास पैदा हुआ। लेखक खेतों में पानी डालते समय, पशुओं को चारा चराने ले जाने के दौरान और अन्य काम करते समय कविताओं में खोया रहता था। उसे अब अकेलापन अच्छा लगने लगा था।
प्रश्न 5: आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का ? तर्क सहित उत्तर दीजिए
उत्तर: लेखक का मानना था की खेती-बाड़ी में काम करके कुछ हाथ लगने वाला नहीं था। यदि वह पढ़ लिख लेगा तो कहीं वह नौकरी कर सकेगा या कोई व्यापार करके अपने जीवन को सफल बना पाएगा। दत्ता जी राव को जब यह बात पता चला कि लेखक के पिता उसे पढ़ने से मना करते हैं, तो दत्त की राव ने लेखक के पिता को बुलवाया और उसे खूब डाटा। दत्ता जी ने लेखक के पिता को कहा कि 'तू सारा दिन क्या करता है। बेटे और पत्नी से खेतों में काम कराता है और तू सारा दिन सांड की तरह घूमता रहता है। कल से बेटे को स्कूल भेज, अगर पैसे नहीं है तो मैं फीस दे दूंगा'। लेखक के पिताजी दत्ता जी के सामने लेखक को स्कूल भेजने के लिए हां कर देते हैं लेकिन फिर भी वह आनंद को स्कूल नहीं भेजना चाहते थे, जो अनुचित है। लेखक के पिता ने स्कूल जाने के लिए लेखक को मंजूरी दे दी किंतु उन्होंने कुछ शर्तें भी रखी जैसे-
सुबह से 11:00 तक वह खेत में काम करेगा वहीं से स्कूल जाएगा तथा स्कूल से आने के बाद पशुओं को चराने ले जाएगा।
मेरे ख्याल से पढ़ाई लिखाई के संबंध में लेखक तथा दत्ता जी राव का रवैया लेखक के पिताजी की सोच से ज्यादा ठीक था।
प्रश्न 6: जूझ कहानी के प्रमुख पात्र आनंदा के स्वभाव की चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर: आनंदा के स्वभाव की विशेषताएं निम्नलिखित है
आज्ञाकारी : आनंद एक आज्ञाकारी पुत्र था। वह पढ़ाई करना चाहता था। किंतु उनके पिताजी उन्हें स्कूल जाने से मना करते थे। उनके पिताजी ने उसे स्कूल भेजने के लिए कुछ शर्ते रखी। जैसे - सुबह से 11:00 तक वह खेत में काम करेगा वहीं से स्कूल जाएगा तथा स्कूल से आने के बाद पशुओं को चराने ले जाएगा। आनंदा इन सभी शर्तों को मानकर विद्यालय जाने लगा।
परिश्रमी : आनंद परिश्रमी था। वह सुबह खेतों में पौधों को पानी देता था। शाम को पशुओं को चराने के लिए ले जाता था।
संघर्षशील : आनंदा का जीवन संघर्षशील रहा। उसे विद्यालय जाने के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा।
लगनशील : आनंद को पढ़ाई-लिखाई में काफी रूचि थी। वह पूरे मन से पढ़ाई करता था।
भावुक : आनंदा अत्यधिक भावुक स्वभाव का व्यक्ति था। विद्यालय में अध्यापन के दौरान जब सौंदलगेकर तन्मयता के साथ कविता गाकर सुनाते थे, तब वह उनकी कविता सुनकर भाव-विभोर हो जाता था।
प्रश्न 7: जूझ कहानी के लेखक के जीवन संघर्ष के उन चार बिंदुओं पर प्रकाश डालिए जो हमारे लिए प्रेरणादायक है।
उत्तर: जूझ कहानी के लेखक आनंदा के जीवन संघर्ष के निम्नलिखित बिंदु हमारे लिए प्रेरणादायक है -
आज्ञाकारी : आनंद एक आज्ञाकारी पुत्र था। वह पढ़ाई करना चाहता था। किंतु उनके पिताजी उन्हें स्कूल जाने से मना करते थे। उनके पिताजी ने उसे स्कूल भेजने के लिए कुछ शर्ते रखी। जैसे - सुबह से 11:00 तक वह खेत में काम करेगा वहीं से स्कूल जाएगा तथा स्कूल से आने के बाद पशुओं को चराने ले जाएगा। आनंदा इन सभी शर्तों को मानकर विद्यालय जाने लगा।
परिश्रमी : आनंद परिश्रमी था। वह सुबह खेतों में पौधों को पानी देता था। शाम को पशुओं को चराने के लिए ले जाता था।
संघर्षशील : आनंदा का जीवन संघर्षशील रहा। उसे विद्यालय जाने के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा।
लगनशील : आनंद को पढ़ाई-लिखाई में काफी रूचि थी। वह पूरे मन से पढ़ाई करता था।