1) s ब्लॉक के तत्वों के लक्षण या गुण
ये कोमल होते हैं।
गलनांक एवं क्वथनांक कम होता है।
आयरन एंथैल्पी कम होती है।
इसके तत्व प्रबल विद्युत धनी होते हैं।
इसके तत्व अत्यंत क्रियाशील होते हैं।
इसके तत्व प्रबल अपचायक होते हैं अर्थात् इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति अधिक होती है।
ये तत्व रंगीन ज्वाला उत्पन्न करते हैं।
उदाहरण सोडियम पीले रंग का ज्वाला देता है।
रंगीन यौगिक बनाते है।
2) p ब्लॉक के तत्वों के लक्षण या गुण
धातु, अधातु होते हैं। अधिकतर अधातु होते हैं।
तत्वों की आयनन ऊर्जा अधिक होती है।
इसमें तत्व तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव, गैस में पाए जाते हैं।
इसके तत्व सहसंयोजी यौगिक का निर्माण करते हैं।
इसके तत्व अधिक ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।
3) d ब्लॉक के तत्वों के लक्षण या गुण
Zn, Cd, Hg को छोड़कर सभी संक्रमण तत्व होते हैं।
ये धातु होते हैं।
इनका गलनांक व क्वथनांक उच्च होता है।
इसके तत्व रंगीन यौगिक बनाते हैं।
इसके तत्व मिश्र धातु बनाते हैं।
इसके तत्व सामान्यतः अनुचुंबकीय गुण प्रदर्शित करते हैं।
इसके तत्व परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं।
प्रायः ठोस अवस्था में पाए जाते हैं। अपवाद पारा (Hg)।
4) f ब्लॉक के तत्वों के लक्षण या गुण
भारी धातु होते हैं।
गलनांक व क्वथनांक उच्च होता है।
इनके जलीय आयन रंगीन होते हैं।
परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं।
संकुल लवण बनाते हैं।
5f के तत्व रेडियोएक्टिव होते हैं।
मेण्डलीफ के आवर्त नियम के अनुसार "तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उसके परमाणु भार के आवर्ती फलन होते हैं।"
मेण्डलीफ के आवर्त सारणी के गुण या लक्षण
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मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के उपयोगिता या उपलब्धियां
तत्वों के अध्ययन में सहायक : मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में एक वर्ग के तत्वों के गुणों में समानता पाई जाती है। अतः किसी वर्ग के एक तत्व के सामान्य गुणों की जानकारी होने पर उस वर्ग के अन्य तत्वों के बारे में आसानी से जाना जा सकता है। इस प्रकार मेण्डलीफ की आवर्त सारणी तत्वों के अध्ययन में सहायक हुई।
नए तत्वों की खोज में सहायक : मेण्डलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए थे। उन्हें दोष के रूप में देखने के बजाय उन्होंने कुछ ऐसे तत्वों का अनुमान लगाया जो समय तक ज्ञात नहीं थे। जैसे स्कैंडियम, जर्मेनियम, गैलियम।
संदिग्ध परमाणु भार में सुधार : बेरेलियम के परमाणु भार में संयोजकता के आधार पर सुधार किया गया। इसे त्रिसंयोजक न मानकर द्विसंयोजक माना गया व इसे लिथियम व बोराॅन के मध्य रखा गया।
अक्रिय गैसें : उस समय अक्रिय गैसों की खोज नहीं हुई थी। अतः इसके लिए आवर्त सारणी में कोई स्थान नहीं छोड़ा गया था। जब इन गैसों की खोज हुई तो इन्हें शून्य समूह बनाकर वैज्ञानिक रेमसे द्वारा जोड़ा गया।
मेण्डलीफ के आवर्त सारणी के दोष
हाइड्रोजन का स्थान अनिश्चित : हाइड्रोजन के गुण वर्ग IA एवं VIIA से समानता रखता है। अतः इसका स्थान अनिश्चित है। इसे आवर्त सारणी में प्रथम आवर्त एवं प्रथम वर्ग में रखा गया है।
भारी तत्व को हल्के तत्वों से पहले रखा जाना : कोबाल्ट को निकल से पहले रखा गया है, जो कि सही नहीं है।
एक जैसे तत्वों को अलग-अलग स्थान में रखना : एक जैसे तत्वों को अलग-अलग स्थान में रखा गया है। जैसे सिल्वर एवं थैलियम, कॉपर एवं मर्करी आपस में समानता प्रदर्शित करते हैं किंतु इन्हें अलग-अलग समूह में रखा गया है।
आठवां समूह : इसमें 9 तत्व एक साथ किस आधार पर रखे गए हैं, इसका उत्तर मेण्डलीफ नहीं दे पाए।
एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर जाने पर परमाणु भार का निश्चित रूप से ना बढ़ाना : इसके कारण दो तत्वों के मध्य कितने तत्व खोजे जा सकते हैं, इसकी जानकारी प्राप्त कर पाना कठिन हो जाता है।
आवर्तिता का कारण : तत्वों के मध्य आवर्तिता के कारण को नहीं समझा सका।
विभिन्न गुण वाले तत्वों को एक ही वर्ग में रखा जाना।
आवर्ती गुण: वर्ग में ऊपर से नीचे जाने तथा आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर तत्वों के गुणों में परिवर्तन होता है, इसे तत्वों का आवर्ती गुण कहते हैं।
A) परमाणु त्रिज्या : परमाणु के नाभिक व संयोजी इलेक्ट्रॉन के मध्य की दूरी परमाणु त्रिज्या कहलाती है। यह परमाणु के आकार को प्रदर्शित करता है।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु त्रिज्या बढ़ता है क्योंकि कोशों की संख्या बढ़ती है जिससे परमाणु त्रिज्या बढ़ता है।
आवर्त : आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर परमाणु त्रिज्या घटता है क्योंकि कोशों की संख्या समान होती हैं, किंतु इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है जिससे नाभिक एवं इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण बढ़ता है, फलस्वरुप परमाणु त्रिज्या घटता है।
परमाणु त्रिज्या को प्रभावित करने वाले कारक
1 प्रभावी नाभिकीय आवेश : किसी परमाणु के नाभिक और संयोजी इलेक्ट्रॉन के बीच आकर्षण बढ़ने से (प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ने से) परमाणु त्रिज्या का मान घटता है। अतः
परमाणु त्रिज्या ∝ 1/प्रभावी नाभिकीय आवेश
2 परिरक्षण प्रभाव: किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या, प्रोटॉन की संख्या के बराबर होता है। किंतु बाहरी कक्षा के इलेक्ट्रॉन का नाभिक की ओर आकर्षण कम हो जाता है क्योंकि आंतरिक कक्षा (inner orbit) के इलेक्ट्रॉन बाह्यतम कक्षा (outer orbit) के इलेक्ट्रॉन को प्रतिकर्षित करते हैं जिससे परमाणु आकार बढ़ता है। अतः
परमाणु त्रिज्या ∝ परिरक्षण प्रभाव
3 विद्युत ऋणात्मकता : जिस परमाणु की प्रवृत्ति इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करके रखने की होती है उसकी परमाणु त्रिज्या उतनी ही कम होती है। अतः
परमाणु त्रिज्या ∝ 1/विद्युत ऋणात्मकता
B) आयनन ऊर्जा या विभव : किसी विलगित परमाणु के सबसे दुर्बलता से बंधे इलेक्ट्रॉन (संयोजी इलेक्ट्रॉन) को बाहर निकालने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे आयनन ऊर्जा या आयनन विभव कहते हैं।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर आयनन ऊर्जा का मान घटता है क्योंकि कोशों की संख्या बढ़ने से नाभिक और इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण कम हो जाता है फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
आवर्त : आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर आयनन ऊर्जा का मान बढ़ता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है जिससे नाभिक व इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है फलस्वरुप बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
आयनन ऊर्जा की निर्भरता या प्रभावित करने वाले कारक
1 परमाणु त्रिज्या : परमाणु त्रिज्या का मान बढ़ने से नाभिक से बाह्यतम इलेक्ट्रॉन का आकर्षण कम हो जाता है जिसके फलस्वरुप बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है अर्थात् आयनन ऊर्जा का मान घटता है।
आयनन ऊर्जा ∝ 1/परमाणु त्रिज्या
2 प्रभावी नाभिकीय आवेश : प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान अधिक होने से गैसीय परमाणु के बाह्यतम इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण बढ़ जाता है। अतः उसे बाहर निकालने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
आयनन ऊर्जा ∝ प्रभावी नाभिकीय आवेश
3 परिरक्षण प्रभाव : परिरक्षण प्रभाव अधिक होने से प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान कम हो जाता है फलस्वरुप गैसीय परमाणु के बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है अर्थात् आयनन ऊर्जा का मान कम होता है।
आयनन ऊर्जा ∝ 1/परिरक्षण प्रभाव
4 अर्ध पूरित एवं पूर्ण पूरित कक्षक : अर्ध पूरित एवं पूर्ण पूरित कक्षक अधिक स्थायी होते हैं। अतः इसके बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकलना मुश्किल होता है अर्थात् आयनन ऊर्जा का मान अत्यधिक होता है।
आयनन ऊर्जा ∝ अर्ध पूरित एवं पूर्ण पूरी कक्षक
5 धनायन : धनायनित गैसीय परमाणुओं की आयनन ऊर्जा अधिक होती है क्योंकि इनमें प्रोटॉन की संख्या, इलेक्ट्रॉन की तुलना में अधिक होते हैं अर्थात् बाह्यतम इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण बढ़ जाता है।
आयनन ऊर्जा ∝ धनायन
C) इलेक्ट्रॉन बंधुता : किसी विलगित परमाणु के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन जोड़ने से जो ऊर्जा मुक्त होती है, उसे इलेक्ट्रॉन बंधुता कहते हैं।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान घटता है क्योंकि कोशों की संख्या बढ़ने से नाभिक और इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण कम हो जाता है फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन बाह्यतम कोश में आसानी से प्रवेश कर जाता है, जिससे कम ऊर्जा मुक्त होती है।
आवर्त : आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान बढ़ता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है जिससे नाभिक व इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है फलस्वरुप बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन जोड़ने से अधिक ऊर्जा मुक्त होती है।
इलेक्ट्रॉन बंधुता को प्रभावित करने वाले कारक
1 परमाणु त्रिज्या : परमाणु त्रिज्या का मान बढ़ने से नाभिक से बाह्यतम इलेक्ट्रॉन का आकर्षण कम हो जाता है जिसके फलस्वरुप बाह्यतम कोर्स में इलेक्ट्रॉन के प्रवेश करने पर कम ऊर्जा मुक्त होती है अर्थात् इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान घटता है।
इलेक्ट्रॉन बंधुता ∝ 1/परमाणु त्रिज्या
2 प्रभावी नाभिकीय आवेश : प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान अधिक होने से गैसीय परमाणु के बाह्यतम इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण बढ़ जाता है। अतः बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन प्रवेश कराने से अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। अतः इलेक्ट्रॉन बंधुता अधिक होता है।
इलेक्ट्रॉन बंधुता ∝ प्रभावी नाभिकीय आवेश
3 परिरक्षण प्रभाव : परिरक्षण प्रभाव अधिक होने से प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान कम हो जाता है फलस्वरुप गैसीय परमाणु के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन प्रवेश कराने से कम ऊर्जा मुक्त होती है अर्थात् इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान कम होता है।
इलेक्ट्रॉन बंधुता ∝ 1/परिरक्षण प्रभाव
4 अर्ध पूरित एवं पूर्ण पूरित कक्षक : अर्ध पूरित एवं पूर्ण पूरित कक्षक अधिक स्थायी होते हैं। अतः इसके बाह्यतम कोश कास्ट पूर्ण होता है। अतः इलेक्ट्रॉन बंधुता शून्य होती है।
इलेक्ट्रॉन बंधुता = 0
D) विद्युत ऋणता : किसी अणु में उसके परमाणु द्वारा साझे के इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रकृति विद्युत ऋणता कहलाती है।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत ऋणता का मान घटता है क्योंकि कोशों की संख्या बढ़ने से नाभिक और इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण कम हो जाता हैं, फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति बढ़ती है। अतः इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रवृत्ति घटती है।
आवर्त : आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर विद्युत ऋणता का मान बढ़ता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है जिससे नाभिक व इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है, फलस्वरुप इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घटती है। अतः इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
विद्युत ऋणता को प्रभावित करने वाले कारक
1 परमाणु त्रिज्या : परमाणु त्रिज्या की वृद्धि से बाह्यतम में इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण कम हो जाता है। अतः विद्युत ऋणात्मकता घटती है।
विद्युत ऋणता ∝ 1/परमाणु त्रिज्या
2 प्रभावी नाभिकीय आवेश : प्रभावी नाभिकीय आवेश के बढ़ने से बाह्यतम इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण बढ़ता है, अतः विद्युत ऋणता भी बढ़ती है।
विद्युत ऋणता ∝ प्रभावी नाभिकीय आवेश
3 परिरक्षण प्रभाव : परिरक्षण प्रभाव बढ़ने से विद्युत ऋणता घटती है क्योंकि परिरक्षण प्रभाव के कारण इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण घटता है।
विद्युत ऋणता ∝ 1/परिरक्षण प्रभाव
E) संयोजकता : किसी तत्व के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की संख्या या अष्टक पूर्ण करने के लिए आवश्यक इलेक्ट्रॉन की संख्या उसकी संयोजकता कहलाती है।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर संयोजकता में क्रमिक परिवर्तन होता है।
आवर्त : आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर 1 से 4 तक संयोजकता बढ़ती है, फिर 4 से 0 तक संयोजकता घटती है।
F) धात्विक गुण : किसी तत्व द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति उसके धात्विक गुण को प्रदर्शित करता है।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु का आकार बढ़ने से एवं आयनन ऊर्जा का मान कम होने से इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति बढ़ती है, जिसके कारण धात्विक गुण भी बढ़ता है।
आवर्त : आवर्त में बाऍं से दाऍं जाने पर धात्विक गुण कम होता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, जिसके कारण नाभिक व संयोजी इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है। अतः इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घटती है तथा दाएं ओर उपधातु व अधातु रखें गए हैं।
G) प्रभावी नाभिकीय आवेश : किसी भी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या, प्रोटॉन की संख्या के बराबर होते हैं क्योंकि प्रोटॉन नाभिक में होता है इसलिए इलेक्ट्रॉन और नाभिक के बीच आकर्षण होता है। एक परमाणु का बाह्यतम इलेक्ट्रॉन नाभिक से जितने आकर्षण का अनुभव करता है उसे उसका प्रभावी नाभिकीय आवेश कहते हैं।
Zeff = Z-S
जहां
Zeff = effective nuclear charge
Z = atomic number
S = non valence electrons
Ex. सोडियम की संयोजी इलेक्ट्रॉन के लिए Zeff का मान
Na = 2,8,1
Zeff = Z-S
Zeff = 11-10
Zeff = 1
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर संयोजी इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षक घटता है फलस्वरूप प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान घटता है।
आवर्त : आवर्त में बांए से दाएं जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन की संख्या बढ़ती है किंतु नाभिक के चारों ओर उपस्थित कक्षाओं () की संख्या समान रहती है। अतः इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण बढ़ जाता है। अतः प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है।
उदाहरण: Zeff का बढ़ता क्रम = Li < Be < B < C < N < O < F < Ne
Zeff को प्रभावित करने वाले कारक
1 परमाणु त्रिज्या : परमाणु त्रिज्या के बढ़ने से Zeff का मान घटता है।
Zeff ∝ 1/परमाणु त्रिज्या
2 परिरक्षण प्रभाव : परिरक्षण प्रभाव बढ़ने से Zeff का मान घटता है।
Zeff ∝ 1/परिरक्षण प्रभाव
H) परिरक्षण प्रभाव : किसी परमाणु के आंतरिक कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन बाह्यतम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन का नाभिक की ओर आकर्षण को कम करते है, इसे परिरक्षण प्रभाव कहते हैं। इसके कारण बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉन का नाभिक की ओर आकर्षण कम हो जाता है।
वर्ग : वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परिरक्षण प्रभाव बढ़ता है क्योंकि कक्षाओं की संख्या बढ़ती है जिससे बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉनों का नाभिक से आकर्षण कम होता है।
आवर्त: आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर परिरक्षण प्रभाव पड़ता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, किंतु कक्षाओं की संख्या समान रहती है जिससे बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण बढ़ता है।
परिरक्षण प्रभाव को प्रभावित करने वाले कारक
1 परमाणु त्रिज्या : परमाणु त्रिज्या बढ़ने से बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉन का नाभिक से आकर्षण घटता है जिसके कारण परिरक्षण प्रभाव बढ़ता है।
परिरक्षण प्रभाव ∝ परमाणु त्रिज्या
2 प्रभावी नाभिकीय आवेश : प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ने से परिरक्षण प्रभाव का मान घटता है।
परिरक्षण प्रभाव ∝ 1/प्रभावी नाभिकीय आवेश