कविता के बहाने, बात सीधी थी पर
कुंवर नारायण
कुंवर नारायण
प्रश्न 1: इस कविता के बहाने बताएँ कि सब घर एक कर देने के माने क्या है?
उत्तर: बच्चे मौज-मस्ती करते रहते हैं वे एक से दूसरी जगह बिना किसी चिंता के दौड़ने रहते हैं । वे खेल-खेल में अपनी सीमा, अपने पराये का भेदभाव भूल जाते है। उन्हें किसी के भी रोक-टोक की कोई चिंता नहीं होती है। उसी प्रकार कविता भी शब्दों का एक खेल है, इसकी सीमा भी निश्चित नहीं होती तथा उसे किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है। कलम को किसी बंधन में बाँधा नहीं जा सकता। अतः कवि को भी अपने पराये का भेदभाव त्यागकर लोकहित के लिए कविता लिखनी चाहिए।
प्रश्न 2: उड़ने और खिलने का कविता से क्या संबंध बनता है ?
उत्तर: पक्षी की उड़ान और कवि की कल्पना की उड़ान दोनों दूर तक जाती हैं। दोनों का लक्ष्य ऊंचाई मापना होता हैं। कविता में कवि की कल्पना की उड़ान होती है जिसकी सीमा अनन्त होती है, इसलिए कहा गया है जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि। जिस प्रकार फूल खिलकर लोगों को अपनी सुगंध और सौन्दर्य से आनंद प्रदान करता है, उसी प्रकार कविता भी सदैव खिली रहकर लोगों को भावों- विचारों का रसपान कराती है, पाठकों में सदैव नयी ऊर्जा का संचार करती है।
प्रश्न 3: कविता और बच्चे को समान्तर रखने के क्या कारण हो सकते है?
उत्तर: कविता और बच्चे को समान्तर रखने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
कविता और बच्चे दोनों अपने स्वभाव वश खेलते हैं।
दोनों में अपने-पराये का कोई भेदभाव नहीं होता है।
दोनों को ही किसी भी प्रकार की कोई चिंता नहीं होती।
कविता और बच्चों की सीमा निश्चित नहीं होती है।
जिस प्रकार एक शरारती बच्चा किसी के पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार यदि कविता में कोई बात उलझा दी जाए तो लाखों कोशिशों के बावजूद उसका अर्थ समझ में नहीं आता ।
प्रश्न 4: कविता के संदर्भ में बिना मुरझाए महकने के माने क्या होते हैं?
उत्तर: कविता की कोई सीमा नहीं होती, इसका कभी अंत नहीं होता। कविता जब भी पढ़ी जाती है वह पाठकों को सदैव आनंद ही प्रदान करती है। जिस प्रकार सदियों पहले लिखी गई सूर-तुलसी काव्य उतना ही - आनंद आज भी देता है जितना आनंद अपने समय में देता था । जबकि फूल बहुत जल्द ही मुरझा जाती है व अपना सौंदर्य, सुगंध तथा अपना अस्तित्व खो देती है।
प्रश्न 5: भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: भाषा को सहूलियत' से बरतने से यह अभिप्राय है कि सीधी, सरल एवं सटीक भाषा का प्रयोग करना चाहिए । बातों को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे बात का अर्थ ही समझ में न आए। भाव के अनुसार उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने वाले लोग ही बात के धनी माने जाते है।
प्रश्न 6: बात और भाषा परस्पर जुड़े होते है, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। कैसे ?
उत्तर: बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी कवि, लेखक आदि अपनी बात को और अधिक प्रभावशाली बनाने के चक्कर में ऐसे शब्दों का प्रयोग करते है जिससे उनके बातों का अर्थ ही समझ में नहीं आता। भाषा के चक्कर में वे अपनी मूल बात को प्रकट ही नहीं कर पाते। पाठक उनके शब्द-जाल में उलझ जाते है और सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है।
प्रश्न 7: बिना मुरझाए महकना 'कवि कुंवर नारायण जी ने किसके संदर्भ में कहा है? इसका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: बिना मुरझाए महकना ' कवि कुंवर नारायण जी ने कविता के संदर्भ में कहा हैं ।इसका अभिप्राय यह है कि कविता की कोई सीमा नहीं है, उसका कभी भी अंत नहीं होता कविता जब भी पढ़ी जाती है वह पाठकों को आनंद ही प्रदान करती है जैसे सदियों पहले लिखी गई सूर तुलसी काव्य आज भी लोगों को उतना ही आनंद प्रदान करता है जितना वह अपने समय में देता था जबकि फूल बहुत जल्द ही मुरझा जाती है और अपना सौंदर्य सुगंध एवं अस्तित्व खो देती है।
प्रश्न 8: कविता के बहाने 'काव्य में कविता की उड़ान तथा चिड़ियां की उड़ान में क्या अंतर है?
उत्तर: कविता के बहाने काव्य में कवि कुंवर नारायण जी ने यह कहा है कि चिड़ियों की उड़ान व कवि की कल्पना की उड़ान दूर तक जाती है। दोनों का लक्ष्य ऊँचाई मापना होता है। किंतु चिड़ियाँ निश्चिन ऊँचाई तक की पहुँच पाती है किंतु कवि की कल्पना (कविता) की सीमा निश्चित नहीं होती, उसका कभी अंत नहीं होता है इसलिए कहा गया है कि -' जहाँ न पहुंचे रवि वहाँ पहुँचे कवि ।