उषा
शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह
प्रश्न 1: कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गांव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है ?
या
शमशेर की कविता गांव की सुबह का जीवंत चित्रण है पुष्टि कीजिए
उत्तर: उषा कविता में शमशेर बहादुर सिंह ने गांव की सुबह का सुंदर चित्रण करने के लिए गतिशील बिंबो (उपमानों) का प्रयोग किया है ।
भोर के समय आकाश नीले शंख जैसा पवित्र लगता है। शंख गांव में पुजा सामग्री के रूप में उपयोगी है।
आकाश अंधेरे के कारण मटमैला दिखाई देता है जैसे राख से लीपा हुआ चौका हो, जो नमी के कारण गीला लगता है। चूल्हा केवल गांव में ही देखने को मिलते हैं।
फिर आकाश लाल केसर से धुले हुए सिल जैसा प्रतीत होता है। सिल गांव में ही मसाले पीसने के काम आते हैं। शहरों में इसकी जगह मिक्सी ने ले लिया है।
कवि ने इसकी दूसरी उपमा काले स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलने से दी है स्लेट का प्रयोग गांव के बच्चों द्वारा किया जाता है, शहरों में बच्चे कॉपी-पेन से ही पढ़ाई करते हैं।
आकाश के नीलेपन में जब सूर्य की किरण पड़ती है तो ऐसा लगता है मानों नीले जल में गोर शरीर झिलमिला रही हो। गांव में ही लोग नहाने के लिए तालाब जाते हैं, शहरों में लोग बाथरूम में स्नान करते हैं।
सूर्योदय होने से उषा का यह जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दृश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए है। इनमें गतिशीलता है।
प्रश्न 2: कवि को सुबह का आकाश मटमैला क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर: कवि ने सुबह के आकाश के लिए राख से लीपे हुए चौके का उपमान दिया है। गांव में सुबह खाना बन जाने के पश्चात चूल्हे की राख से लिपाई कर दी जाती है। जिस प्रकार गीला चौका मटमैला व साफ होता है उसी प्रकार नमी के कारण आकाश गीला, मटमैला किंतु साफ होता है।
प्रश्न 2: कवि ने किस जादू के टूटने का वर्णन किया है?
उत्तर: कवि ने उषा के जादू के टूटने का वर्णन किया है। कवि कहता है कि उषा के समय आकाश का रंग पल-पल बदलते रहता है। भोर काल में 'आकाश नीले शंख जैसा दिखाई देता है। कुछ समय पश्चात लाल केसर से धुले सिल के समान दिखाई देता है। कवि ने इसकी दूसरी उपमा काले स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलने से दी है। जब सूर्य की पहली किरण नीले आकाश में पड़ती है तो ऐसा लगता है मानों नीले जल में कोई गोरा शरीर झिलमिला रही हो। सूर्योदय होने से उषा का यह सुंदर दृश्य (जादू) समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 3: 'उषा' कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।
उत्तर: सूर्योदय से ठीक पहले का समय उषाकाल कहलाता है। भोर काल में 'आकाश नीले शंख जैसा दिखाई देता है। कुछ समय पश्चात आकाश राख से लीपे हुए चौके के समान गीला एवं मटमैला प्रतीत होता है। गांव में सुबह खाना बन जाने के पश्चात चूल्हे की राख से लिपाई कर दी जाती है। जिस प्रकार गीला चौका मटमैला व साफ होता है उसी प्रकार नमी के कारण आकाश गीला, मटमैला किंतु साफ होता है।
प्रश्न 4: उषा' कविता में 'भोर का नभ' की तुलना किससे की गई है और क्यों?
उत्तर: उषा' कविता में भोर के नभ की तुलना राख से लीपे हुए चौके से की गयी है (जो गीला है) क्योंकि इस समय आकाश में नमी व धुंधलापन होता है जिसके कारण आकाश का रंग गीले चूल्हे जैसा मटमैला दिखता है। जिस प्रकार गीला चौका सुखकर साफ हो जाता है उसी प्रकार आकाश कुछ समय बाद साफ-स्वच्छ हो जाता है।
प्रश्न 5: सिल और स्लेट के माध्यम से कवि किस प्रकार अपने मंतव्य को प्रकाशित करता है?
उत्तर: कवि काले सिल और काले स्लेट के माध्यम से रात्रि की समाप्ति के साथ जाते हुए अंधकार को प्रदर्शित करता है। कवि कहता है कि उषा काल में आकाश का रंग पल-पल बदलते रहता है। जैसे सूर्योदय के ठीक पूर्व उषा काल के समय आकाश ऐसा लगता है मानों किसी ने काले सिल को लाल केसर से धो दिया हो या किसी नन्हे बच्चें ने काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया हो। इस प्रकार कवि सिल और स्लेट के माध्यम से अंधकार की कालिमा और प्रातः काल की लालिमा का सुंदर दृश्य सामने रखता है।