Q.1 डीएनए प्रतिलिपिकरण को संक्षिप्त में समझाइए।
डीएनए प्रतिलिपिकरण की अर्ध्दसंरक्षी विधि किसके द्वारा प्रस्तुत की गई? इसकी प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
Ans: प्रतिलिपिकरण : डीएनए से डीएनए बनने की प्रक्रिया डीएनए प्रतिलिपिकरण कहलाती है।
डीएनए प्रतिलिपिकरण की अर्ध्दसंरक्षी विधि वाटसन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत की गयी। किंतु इसका प्रायोगिक प्रमाण मेसेल्सन एवं स्टाॅल ने दिया।
डीएनए प्रतिलिपिकरण की प्रक्रिया निम्न अनुसार होती है -
डीएनए के हेलिक्स का अलग होना :
हेलीकेस एंजाइम की उपस्थिति में डीएनए के दोनों स्ट्रेंड्स के मध्य उपस्थित हाइड्रोजन बॉन्ड टूट जाता है, जिससे डीएनए के दोनों स्ट्रेंड्स अलग हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में Mg^+2 कोफैक्टर का काम करता है।
SSB डीएनए के दोनों स्ट्रेंड्स के नाइट्रोजिनस बेस के मध्य पुनः हाइड्रोजन बॉन्ड बनने को रोकता है।
टोपोआइसोमरेस डीएनए रिप्लिकेशन के दौरान उत्पन्न तनाव को काम करता है।
नये DNA स्ट्रेंड्स का बनना
RNA प्राइमर 5' 3'-OH दिशा में नए न्यूक्लियोटाइड के निर्माण हेतु स्थान प्रदान करता है।
डीएनए पॉलीमरेस 5' 3' दिशा में नए डीएनए का निर्माण करता है।
डीएनए के एक टेम्पलेट के ऊपर DNA का रिप्लिकेशन निरंतर होता है, जिसे लीडिंग स्ट्रेंड (leading strand) कहते हैं तथा दूसरे डीएनए टेंप्लेट के ऊपर DNA का रिप्लिकेशन टुकड़ों में होता है, जिसे लैंगिग स्ट्रेंड (lagging strand) कहते हैं। लैंगिग स्ट्रैंड के इन डीएनए के टुकड़ों को ओकाजाकी खंड (okazaky fragments) कहते हैं।
ओकाजकी खंड, डीएनए लाइगेस एंजाइम की उपस्थिति में जुड़ जाते हैं।
इस प्रकार एक DNA से दो DNA का निर्माण हो जाता है, जिसमें parent DNA का आधा भाग संरक्षित होता है। इसलिए कहा जाता है कि डीएनए प्रतिलिपिकरण की अर्ध्दसंरक्षी विधि द्वारा होता है।
Q.2 मेसेल्सन एवं स्टाॅल द्वारा प्रमाणित डीएनए प्रतिलिपिकरण की अर्ध्दसंरक्षी विधि को समझाइए।
प्रायोगिक रूप से डीएनए प्रतिलिपिकरण की अर्ध्दसंरक्षी विधि को किसने सिद्ध किया? समझाइए।
Ans: प्रायोगिक रूप से डीएनए प्रतिलिपिकरण की अर्ध्दसंरक्षी विधि को मेसेल्सन एवं स्टाॅल ने सिद्ध किया।
इसके लिए उन्होंने निम्नलिखित चीजों का उपयोग किया -
ई कोली : यह अपना सेल साइकिल 20 मिनट में ही पूरा कर लेता है।
डीएनए को प्रदर्शित करने के लिए : सामान्य नाइट्रोजन 7N^14 तथा रेडियोएक्टिव नाइट्रोजन 7N^15 (भारी नाइट्रोजन) का उपयोग किया। इसका मुख्य स्रोत NH4Cl है।
अपकेंद्रण के लिए CsCl का उपयोग किया।
प्रक्रिया :
1 प्रथम प्रक्रिया : संवर्धन प्लेट में लेकर उसमें रेडियोएक्टिव नाइट्रोजन 7N^15 डाला तथा इसका CsCl अपकेंद्रण किया गया, जिससे एक हैवी बैंड प्राप्त हुआ। अतः DNA N15 प्रकार का था।
2 द्वितीय प्रक्रिया : इसमें प्रथम प्रक्रिया का ई कोलाई लिया गया तथा इसमें सामान्य नाइट्रोजन 7N^14 मिलकर अपकेंद्रन कराया गया जिससे मीडियम बैंड प्राप्त हुआ। अतः इसमें दोनों प्रकार के डीएनए स्टैंड (N14 and N15) प्राप्त हुए।
3 तृतीय प्रक्रिया : इसमें द्वितीय प्रक्रिया का ई कोलाई लिया गया तथा इसमें सामान्य नाइट्रोजन 7N^14 मिलाकर अपकेंद्रन कराया गया, तो मीडियम एवं लाइट बैंड प्राप्त हुआ। अतः प्रत्येक डीएनए में पुराने डीएनए का आधा भाग उपस्थित था।
इस प्रकार जब डीएनए प्रतिलिपिकरण होता है तो नए डीएनए में पुराने डीएनए का आधा भाग संरक्षित होता है, इसलिए इसे अर्ध्दसंरक्षी विधि कहते हैं।
Q.3 ग्रिफिथ का रूपांतरण सिद्धांत क्या है? लिखिए।
Ans: ग्रिफिथ ने स्ट्रैप्टोकोक्कस न्युमोनी का अध्ययन किया तथा उन्होंने पाया कि -
इसमें दो स्ट्रेन R and S strains पाए जाते हैं। R स्ट्रेन हानिकारक नहीं होता, किंतु S स्ट्रेन हानिकारक होता है क्योंकि यह हानिकारक पॉलीसैकेराइड का बना होता है। उन्होंने इसका प्रयोग चूहे के साथ किया।
ग्रिफिथ का प्रयोग -
जब ग्रिफिथ ने R स्ट्रैंन को चूहे में इंजेक्ट किया, तब उन्होंने देखा कि चूहा जिंदा था।
जब ग्रिफिथ ने S स्ट्रैंन को चूहे में इंजेक्ट किया, तब उन्होंने देखा कि चूहा मर गया था।
जब ग्रिफिथ ने S strain heat killed को चूहे में इंजेक्ट किया, तब उन्होंने देखा कि चूहा जिंदा था।
जब ग्रिफिथ ने S strain heat killed + R strain को चूहे में इंजेक्ट किया, तब उन्होंने देखा कि चूहा मर गया था।
अतः ग्रिफिथ ने बताया कि S strain को heat करने पर भी उसका जेनेटिक मैटेरियल जीवित रहता है, जो S strain से R strain में प्रवेश कर जाता है तथा R strain को S strain में परिवर्तित कर देता है, इसे ही रूपांतरण (transformation) कहते हैं।
Q.4 "डीएनए ही अनुवांशिक पदार्थ है" यह किसने सिद्ध किया?
हार्शे एवं चेस परीक्षण क्या है? समझाइए।
Ans: हार्शे एवं चेस परीक्षण से यह सिद्ध हुआ कि "डीएनए ही अनुवांशिक पदार्थ है।"
हार्शे एवं चेस परीक्षण -
हार्शे एवं चेस ने अपने परीक्षण हेतु निम्न वस्तुओं का प्रयोग किया -
a) जीवाणुभोजी (Becteriophage) : यह एक प्रकार का विषाणु है, जो जीवाणु में अपना अनुवांशिक पदार्थ डालकर अपनी संख्या में वृद्धि करता है। इसका भार तथा घनत्व कम होता है।
b) ई कोली (E-Coli) : यह जीवाणु है। इसका भार तथा घनत्व अधिक होता है।
हार्शे एवं चेस ने अपने परीक्षण में जीवाणु भोजी में अनुवांशिक पदार्थ डीएनए है या प्रोटीन, इसका पता लगाने हेतु रेडियोएक्टिव का प्रयोग किया।
c) प्रोटीन में सल्फर पाया जाता है। इसलिए प्रोटीन का पता लगाने के लिए सल्फर 16S^32 तथा रेडियोएक्टिव सल्फर 16S^35 का प्रयोग किया।
d) डीएनए में फास्फोरस होता है। इसलिए डीएनए का पता लगाने के लिए फास्फोरस 15P^30 तथा रेडियोएक्टिव फास्फोरस 15P^32 का प्रयोग किया।
Q.5 डीएनए के डबल हेलिक्स मॉडल का सचित्र वर्णन कीजिए।
वाटसन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत डीएनए के देवी कुंडलित संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
Ans:
वाटसन एवं क्रिक के द्वारा डीएनए के डबल हेलिक्स मॉडल को सन् 1953 में प्रस्तुत किया गया तथा इसके लिए उन्हें सन् 1965 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डीएनए के डबल हेलिक्स मॉडल का वर्णन निम्नानुसार है
डीएनए में पॉलीन्यूक्लियोटाइड की दो श्रृंखलाएं पाई जाती हैं, जो अशाखित होती है।
DNA के दोनों स्ट्रैंड के बीच का व्यास 20 एंगस्ट्रोम होता है।
DNA के एक कुंडलण की लंबाई 34 एंगस्ट्रोम होती है।
DNA में दो न्यूक्लियोटाइड के बीच की दूरी 3.4 एंगस्ट्रोम होती है।
DNA के एक स्ट्रैंड का एडेनीन दूसरे स्ट्रैंड के थाइमिंग के साथ डबल हाइड्रोजन बाॅंड द्वारा जुड़ा होता है तथा एक स्टैंड का ग्वानीन दूसरे स्टैंड के साइटोसिन के साथ ट्रिपल हाइड्रोजन बाॅंड द्वारा जुड़ा होता है।
डीएनए के एक स्ट्रैंड का 5' सिरा दूसरे स्ट्रैंड के 3' सिरे के पास होता है।
यदि डीएनए के एक स्ट्रैंड में नाइट्रोजन क्षार का क्रम A,G,C,T हो तो दूसरे स्ट्रैंड में इसका क्रम T,C,G,A होगा।
Q.6 अनुलिपिकरण किसे कहते हैं? प्रोकैरियोटिक में अनुलिपिकरण को समझाइए।
Ans: अनुलिपिकरण : DNA से mRNA बनने की प्रक्रिया अनुलिपिकरण (transcription) कहलाती है।
इसके लिए DNA dependent RNA polymerase एंजाइम की आवश्यकता होती है।
प्रोकैरियोटिक जीव में अनुलिपिकरण निम्नानुसार होता है -
1 प्रारंभन (Initiation) : जब RNA polymerase, सिग्मा फैक्टर(Sigma factor) के साथ मिलकर डीएनए के उन्नायक भाग से जुड़ता है, तब अनुलेखन की प्रक्रिया शुरू होती है। सिग्मा फैक्टर के मुक्त होने पर RNA polymerase डीएनए के अंदर जाकर हाइड्रोजन बॉन्ड को तोड़ देता है और बबल बनाता है।
2 प्रसार (Elongation) : ATP, GTP, CTP एवं UTP की उपस्थिति में RNA polymerase डीएनए के टेम्पलेट के संपूरक न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है। जब RNA polymerase समापक में पहुंचता है, तब 5' से 3' दिशा में mRNA के न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है।
3 समापन (Termination) : जब RNA polymerase समापक पर पहुंचता है, तब RNA polymerase, रो फैक्टर की सहायता से डीएनए एवं mRNA से अलग हो जाता है तथा इस प्रकार mRNA का निर्माण होता है।
Q.7 अनुलिपिकरण किसे कहते हैं? यूकैरियोटिक में अनुलिपिकरण को समझाइए।
Ans: अनुलिपिकरण : DNA से mRNA बनने की प्रक्रिया अनुलिपिकरण कहलाती है।
इसके लिए DNA dependent RNA polymerase एंजाइम की आवश्यकता होती है।
यूकैरियोटिक जीव में अनुलिपिकरण निम्नानुसार होता है -
1 प्रारंभन (Initiation) : जब RNA polymerase, सिग्मा फैक्टर(Sigma factor) के साथ मिलकर डीएनए के उन्नायक भाग से जुड़ता है, तब अनुलेखन की प्रक्रिया शुरू होती है। सिग्मा फैक्टर के मुक्त होने पर RNA polymerase डीएनए के अंदर जाकर हाइड्रोजन बॉन्ड को तोड़ देता है और बबल बनाता है।
2 प्रसार (Elongation) : ATP, GTP, CTP एवं UTP की उपस्थिति में RNA polymerase डीएनए के टेम्पलेट के संपूरक न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है। जब RNA polymerase समापक में पहुंचता है, तब 5' से 3' दिशा में hnRNA के न्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है।
3 समापन (Termination) : जब RNA polymerase समापक पर पहुंचता है, तब RNA polymerase, रो फैक्टर की सहायता से डीएनए एवं hnRNA से अलग हो जाता है। hnRNA में एक्साॅन एवं इन्ट्राॅन पाया जाता है। इन्ट्राॅन अनावश्यक होता है, इसलिए इसे हटाने की आवश्यकता होती है। hnRNA में 5' कैंपिंग (MGppp) एवं 3' टेलिंग (Polyadenylation) की जाती है। इन्ट्राॅन को हटाने की प्रक्रिया स्प्लिसिंग (Splicing) कहलाता है इसके परिणामस्वरूप hnRNA से mRNA का निर्माण होता है।
Q.8 अनुवादन किसे कहते हैं? अनुवादन की प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
Ans: अनुवादन (Translation) : RNA से प्रोटीन बनने की प्रक्रिया अनुवादन कहलाती है। यह प्रक्रिया राइबोसोम में संपन्न होती है।
अनुवादन से पूर्व अमीनो अम्ल एवं tRNA का सक्रिय होता है।
a) अमीनो अम्ल का सक्रियण (Activation of amino acid) :
अमीनो अम्ल ATP से ऊर्जा प्राप्त कर Amino Acetylase and tRNA synthase, Mg^+2 की उपस्थिति में Amino Acid-AMP-enzyme complex बनाता है।
b) tRNA का सक्रियण (Activation of tRNA :
Amino Acid-AMP-enzyme complex + tRNA की अभिक्रिया से tRNA-Amino Acid बनता है तथा AMP एवं enzyme मुक्त होता है।
अनुवादन की क्रियाविधि निम्नानुसार है -
1 प्रारंभन (Initiation) : जब AUG कोडोन राइबोसोम के P साइट से जुड़ता है, तब अनुवादन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। AUG कोडोन के लिए कोई A साइट नहीं पाया जाता। यह मेथियोनिन (methionine) को कोडित करता है। इसमें दो अमीनो एसिड के मध्य पेप्टाइड बॉन्ड बनता है।
2 प्रसार (Elongation) : जब अमीनो एसिड E साइट पर पहुंचता है, तब tRNA और अमीनो एसिड अलग हो जाते हैं तथा अमीनो एसिड अन्य अमीनो एसिड के साथ पेप्टाइड बॉन्ड द्वारा जुड़ा होता है। इस प्रकार पॉलिपेप्टाइड की एक लंबी श्रृंखला बन जाती है।
3 समापन (Termination) : जब स्टॉप कोडोन राइबोसोम के P साइट से जुड़ता है, तब अनुवादन की प्रक्रिया रुक जाती है क्योंकि स्टॉप कोडोन के लिए कोई भी tRNA नहीं पाया जाता तथा अंत में पॉलिपेप्टाइड चैन (श्रृंखला) अलग हो जाता है।
Q.9 अनुवांशिक कूट क्या है? इसके गुण लिखिए।
Ans: अनुवांशिक कूट : mRNA के तीन न्यूक्लियोटाइड के समूह को अनुवांशिक कूट कहते हैं। यह ट्रिप्लेट होता है। कुल 64 अनुवांशिक कोड होते हैं, जो 20 अमीनो एसिड को कोडित करते हैं। यही 20 अमीनो एसिड सक्रिय अवस्था में पाए जाते हैं।
अनुवांशिक कोर्ट के प्रकार -
यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है
1 सेंस कोडान (Sense codon) : ऐसे कोडान, जो प्रोटीन संश्लेषण के दौरान अमीनो एसिड को कोडित करते हैं, सेंस कोडान कहलाते हैं।
2 सिग्नल कोडान (Signal codon) : ऐसे कोडान जो प्रोटीन संश्लेषण के दौरान सिग्नल देने का कार्य करते हैं, सिग्नल कोडान कहलाते हैं।
सिग्नल कोड़ों दो प्रकार के होते हैं -
a) स्टार्टिंग कोडोन : AUG
b) स्टॉप कोडोन : UAA, UAG, UGA ।
अनुवांशिक कूट के गुण निम्नलिखित है -
ट्रिप्लेट (Triplet) : mRNA में चार न्यूक्लियोटाइड (A,G,C,U) पाए जाते हैं। अनुवांशिक कूट ट्रिप्लेट (4^ होता है। अर्थात् कुल 64 अनुवांशिक कूट होते हैं।
स्टार्टिंग कोडोन (Starting codon) : AUG यह मेथयोनीन को कोडित करता है।
स्टॉप कोडाॅन (Stop codon) : UAA, UAG, UGA। यह ट्रांसलेशन की प्रक्रिया को रोक देता है।
असंदिग्ध : अनुवांशिक कोडाॅन असंदिग्ध होता है अर्थात् एक कोडाॅन केवल एक अमीनो एसिड को कोडित कर सकता है।
अ-अतिव्यापन : अनुवांशिक कोडाॅन में अतिव्यापन नहीं होता।
कौमा रहित : अनुवांशिक कोडाॅन कौमा रहित होता है।
सार्वभौमिक : अनुवांशिक कोडाॅन सार्वभौमिक होता है अर्थात् एक कोडाॅन सभी जीवो में एक प्रकार के अमीनो एसिड को कोडित करता है।
Ex UUU मनुष्य, चूहा, बैक्टीरिया सभी में फिनाइल एलेनीन को कोडित करता है।
अपहासित : अनुवांशिक कोडाॅन अपहासित होता है अर्थात् एक प्रकार के अमीनो एसिड एक से अधिक प्रकार के अनुवांशिक कोडाॅन द्वारा कोडित किए जाते हैं।
Ex. UUU, UUC दोनों कोडाॅन phenyl alanine को कोडित करता है।
Q.10 लैक ओपराॅन मॉडल को विस्तार से समझाइए।
Ans: जब एवं मोनादिनी प्रोकैरियोटिक रिज्यूम में ला ऑपरों मॉडल प्रस्तुत किया इसके अनुसार ऑपरों डीएनए का विखंड है जो अकाल नियमन इकाई की तरह कार्य करता है।
Operon = Promoter + Regulator + Opretor + Structural gene
यह दो स्थितियों में प्रस्तुत किया गया जो निम्नलिखित है-
लैक्टोज (प्रेरक )की अनुपस्थिति में :
Regulator gene एक संदमक प्रोटीन बनाता है जो operetor gene से जुड़ जाता है, जिसके कारण संरचनात्मक जीन (structural gene) में अनुलेखन की प्रक्रिया रुक जाती है।
लैक्टोज (प्रेरक) की उपस्थिति में :
लैक्टोज की उपस्थिति में Regulator gene द्वारा निर्मित संदमक प्रोटीन, लैक्टोज से जुड़ जाता है, जिसके फलस्वरुप आरएनए पॉलीमरेस (RNA polymerase) promoter gene से जुड़ता है। जिसके कारण संरचनात्मक जीन (cistron Z,Y,A) में अनुलेखन द्वारा क्रमशः Beta galactocidase, permiase, trans-acetylase नामक एंजाइम बनते हैं।
लैक्टोज संदमक प्रोटीन + Beta galactocidase के विघटन से ग्लूकोज, गैलक्टोज, ऊर्जा एवं संदमक प्रोटीन मुक्त होते है। यह संदमक प्रोटीन ऑपरेटर जीन से जुड़ जाता है, जिससे संरचनात्मक जीन में होने वाली ट्रांसक्रिप्शन की प्रक्रिया रुक जाती है।
Q.11 डीएनए फिंगरप्रिंटिंग क्या है? इसके क्या उपयोग हैं?
Ans: डीएनए फिंगरप्रिंटिंग : वह तकनीक जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के डीएनए की विशिष्टता (पुनरावृत्त DNA अनुक्रम) का पता लगाया जाता है, उसे डीएनए फिंगरप्रिंटिंग कहते हैं।
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एक महान वैज्ञानिक एलेक जैफ्री के द्वारा प्रस्तुत की गयी।
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की प्रक्रिया निम्न अनुसार होती है :
डीएनए का विलगन : इसके अंतर्गत डीएनए का सैंपल लिया जाता है। डीएनए सैंपल रक्त, बाल, थूक आदि से लिया जा सकता है।
डीएनए का पाचन : इसमें प्राप्त डीएनए को प्रतिबंधन एंजाइम की मदद से कांटा जाता है।
डीएनए का पृथक्करण : इसमें कटे हुए डीएनए को जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा पृथक् किया जाता है।
डीएनए का स्थानांतरण : जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस से डीएनए को नाइट्रोसैल्यूलोज मेम्ब्रेन में डाला जाता है, इसे सादर्न ब्लोटिंग कहते हैं।
संकरण : इसमें पृथक् डीएनए (VNTR) में प्रोब डालते हैं, जो VNTR से जाकर जुड़ जाता है। इसे संकरण कहते हैं।
एक्स-रे विवर्तन : जब इसमें एक्स-रे किरण डालते हैं। तो प्रोब वाला VNTR दिखाई देता है।
उपयोग :
अपराधियों के पहचान में।
कानूनी समस्याओं में।
खोए हुए संतान के माता-पिता की पहचान करने में।
एक व्यक्ति के डीएनए का दूसरे व्यक्ति के डीएनए के साथ अनुवांशिक संबंध का पता लगाने में।
Q.12 मानव जीनोम परियोजना (HGP) क्या है? समझाइए।
Ans: मानव जीवन परियोजना की शुरुआत विभिन्न व्यक्तियों तथा जीवों के डीएनए में विभिन्नताओं का पता लगाने हेतु किया गया था।
मानव जीनोम परियोजना :
मानव जीवन परियोजना की शुरुआत सन् 1990 में अमेरिकी ऊर्जा विभाग तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन द्वारा हुई थी। इसका उद्देश्य था कि 13 वर्ष के बाद 2003 तक यह परियोजना खत्म हो जाएगी।
इसके अंतर्गत लोगों के डीएनए में पाई जाने वाली विभिन्नताओं का पता लगाया गया। मानव जीवन परियोजना के अंतर्गत डीएनए को परिवर्तित तथा कॉपी भी की जा सकती थी। इससे Ethical Legal Social issues (ELSi) हो सकते थे।
अगुणित कोशिका में 3.3×10^9 base pair होते हैं तथा एक base pair के जीन का पता लगाने के लिए 3 डॉलर का खर्चा था। इस प्रकार इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 9 मिलियन डॉलर का खर्चा था।
डीएनए के आंकड़ों को लिखने के लिए लगभग 3300 काॅपियों की आवश्यकता थी। डीएनए के बड़े आंकड़ों को लिख पाना बहुत कठिन था, इसलिए सूचना विज्ञान की आवश्यकता पड़ी।
इसका उद्देश्य था 20,000 से 25,000 जीन का पता लगाना था।
कृषि, चिकित्सा, ऊर्जा, पर्यावरण सुधार में इसका उपयोग हुआ।
इसके अंतर्गत दो विधियां अपनाई गई जो निम्नलिखित है -
ESTs (Expressed Sequence Tags) : डीएनए के व्यक्तेत अनुक्रम का पता लगाने के लिए इसका उपयोग किया गया।
सीक्वेंस एनोटेशन (Sequence Annotation) : डीएनए के व्यक्तेत एवं अव्यक्तेत अनुक्रम दोनों का पता लगाने के लिए इस विधि का प्रयोग किया गया।
मानव जीनोम परियोजना से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त हुई-
मनुष्य के अगुणित कोशिका में 3.3×10^9 base pair होते हैं।
मनुष्य में कुल 30,000 जीन होते हैं, जिसमें से डिस्ट्रॉफिन जीन में 2.4 करोड़ base pair पाया जाता है।
सामान्यतः 99.9% डीएनए सभी लोगों में समान था, किंतु केवल 0.1% डीएनए था।
केवल 2% DNA ही प्रोटीन बनाता है।
डीएनए के न्यूक्लियोटाइड पुनरावृत्ति अनुक्रम में होते हैं और डीएनए के कुछ न्यूक्लियोटाइड भिन्न होते हैं, जिसे SNPs कहते हैं।
Y गुणसूत्र सबसे छोटा तथा 1st गुणसूत्र सबसे बड़ा होता है।
Q.13 जीन अभिव्यक्ति क्या है? समझाइए।
जीन अभिव्यक्ति : अनुवांशिकता के दौरान डीएनए में संचित सूचनाओं का एक से दूसरे पीढ़ी में स्थानांतरित होना तथा उन लक्षणों का पुनः प्रकट होना जीन अभिव्यक्ति कहलाता है।
जीन अभिव्यक्ति की दो विधियां निम्नलिखित है -
ट्रांसफार्मेशन : जब एक जीवाणु का अनुवांशिक पदार्थ दूसरे जीवाणु में प्रवेश करता है तथा उसके लक्षणों को परिवर्तित कर देता है तो इसे ट्रांसफार्मेशन कहते हैं। इसके पश्चात यही लक्षण संततियों में स्थानांतरित होते हैं।
ट्रांसडक्शन : जब किसी जीव अथवा अनुवांशिक पदार्थ को जीवाणु भोजी के माध्यम से जीवाणु में प्रवेश कराया जाता है तब इस विधि को ट्रांसडक्शन कहते हैं। रूपांतरित जीवाणु की संततियों में यह लक्षण स्थानांतरित होता है।
Q.14 डीएनए एवं आरएनए में अंतर लिखिए।
Q.15 प्यूरीन एवं पिरिमिडीन में अंतर लिखिए।
Q.16 राइबोस एवं डी-ऑक्सीराइबोस में अंतर लिखिए।
Q.17 न्यूक्लियोसाइड एवं न्यूक्लियोटाइड में अंतर लिखिए।