उत्सर्जन : व्यर्थ पदार्थों के निष्कासन की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाती है। जैसे यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड , पित्त लवण इत्यादि।
उत्सर्जन के द्वारा नाइट्रोजन अपशिष्ट जल के साथ निकल जाते हैं जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल, अमोनिया।
उत्सर्जन के आधार पर जीवों के प्रकार
यूरियोटेलिक (Ureotelic) : ऐसे जीव जो मुख्य उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया का उत्सर्जन करते हैं यूरियोटेलिक कहलाते हैं।
उदाहरण : मनुष्य, एंफीबियन, मरीन फिश।
यूरिकोटेलिक (Uricotelic) : ऐसे जीव जो मुख्य उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं यूरिकोटेलिक कहलाते हैं।
पक्षी, रेप्टाइल्स, इंसेंक्ट, मोलस्क
अमीनोटेलिक (Aminotelic) : ऐसे जीव जो मुख्य उत्सर्जी पदार्थ के रूप में अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं अमीनोटेलिक कहलाते हैं।
उदाहरण : जलीय कीट, बोनी फिश, टैडपोल।
Note: जो उत्सर्जी पदार्थ जितना अधिक विषैला होता है उसके निष्कासन के लिए उतनी ही अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
उत्सर्जी पदार्थ के विषाक्तता क्रम - अमोनिया > यूरिया > यूरिक अम्ल
मनुष्य के यकृत में अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित किया जाता है। इसे यूरिया चक्र कहते हैं।
मानव उत्सर्जन तंत्र (Human Excretory System)
मनुष्य मुख्य उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया का उत्सर्जन करता है, अतः यूरियोटेलिक होता है।
खाद्य पदार्थों (मुख्यतः प्रोटीन) के विघटन से अमोनिया का निर्माण होता है जिसके निष्कासन के लिए अत्यधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। किंतु मानव शरीर में इतने मात्रा में जल की पूर्ति करना संभव नहीं होता। अतः यकृत में यूरिया चक्र (ऑर्निथिन चक्र) द्वारा अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित किया जाता है, जिसके निष्कासन के लिए लगभग एक से डेढ़ लीटर जल की आवश्यकता होती है।
मानव उत्सर्जन तंत्र में शामिल अंग
1) किडनी (Kidney) : मानव में एक जोड़ी किडनी पाया जाता है। यहीं पर यूरिन का निर्माण होता है। नेफ्रॉन इसकी क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई होती है।
ये गहरे लाल रंग का होते है।
सेम के बीज के समान दिखाई देते है।
कशेरूक दंड के दोनों ओर उपस्थित होता है (12th वक्षीय कशेरूक से 3rd उदर कशेरूक तक)।
किडनी देहभित्ति की पृष्ठीय भाग से (पीछे से) जुड़ते हैं।
दायां किडनी बायें किडनी की तुलना में थोड़ा नीचे होता है क्योंकि इसके ऊपर विशाल यकृत होता है।
इसका भार लगभग 120 से 170 ग्राम होता है। सामान्यतः महिलाओं में 135 ग्राम एवं पुरुषों में 150 ग्राम होता है।
किडनी के जिस भाग से रक्त वाहिनियां, रीनल धमनी एवं रीनल शिरा प्रवेश करता है, उसे हाइलम कहते हैं।
किडनी की लंबाई = 10-12cm
किडनी की चौड़ाई = 5-7cm
किडनी की मोटाई = 2-3cm
2) यूरेटर (Ureter) : मानव में एक जोड़ी यूरेटर पाया जाता है।
3) यूरिनरी ब्लैडर (Urinary bladder) : मानव में एक यूरिनरी ब्लैडर पाया जाता है जहां यूरिन का संचय होता है।
4) यूरेथ्रा (Urethra) : मानव में एक यूरेथ्रा पाया जाता है। इसके माध्यम से यूरिन को मानव शरीर से बाहर कर दिया जाता है।
किडनी या वृक्क की आंतरिक संरचना
किडनी दो भागों से मिलकर बना होता है -
a) काॅर्टेक्स (Cortex) : किडनी का परिधीय भाग काॅर्टेक्स कहलाता है। इस भाग में दानेदार संरचनाओं पाई जाती है जो मोबाइल सपोर्ट क्यों उपस्थिति के कारण होता है।
b) मेडूला (Medulla) : किडनी का केंद्रीय भाग मेडूला कहलाता है। इस भाग में मेडूलरी पिरामिड पाए जाते हैं। इनकी संख्या 8 से 12 होती है। मेडूलरी पिरामिड का शीर्ष भाग रिनल पैपिला कहलाता है। मेडूलरी पिरामिड के शीर्ष भाग से नलिकाएं निकलती है जिसे रिनल पेल्विस कहते हैं। ये सभी नलिकाएं मिलकर मेजर कैलिक्स बनाते हैं एवं आगे यह यूरेटर में खुलता हैं। मेडूलरी पिरामिड के बीच-बीच में काॅर्टेक्स का भाग वृद्धि कर जाता है, इसे बरतनी के स्तंभ कहते हैं।
नेफ्रॉन : किडनी की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई
नेफ्रॉन की संरचना
A) मैलपिघियन बॉडी (Malpighian body)
1) बोमेन कैप्सूल (Bowman's capsule) : यह नेफ्रॉन का अग्र भाग होता है जो कप के समान दिखाई देता है। इसमें अभिवाही धमनिका से रक्त आता है एवं अपवाही धमनिका के माध्यम से रक्त वापस चला जाता है।
2) ग्लोमेरुलस (glomerulus) : अभिवाही धमनिका बोमेन कैप्सूल के प्यालेनुमा संरचना में केशिकाओं का जाल बना लेता है, जिसे ग्लोमेरुलस कहते हैं। यह रक्त का छनन करता है एवं निस्यंद बनाता है।
B) वृक्कीय (रीनल) नलिकाएं (Renal tubules)
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) : यह बोमेन कैप्सूल के आगे की नलिकीय संरचना होती है। इस भाग से सर्वाधिक स्त्रवण एवं अवशोषण होता है।
हेनले लूप (Henley loop) : U आकार का होता है। अवरोही भुजा से केवल जल का अवशोषण होता है एवं आरोही भुजा से लवण का अवशोषण होता है। इस भाग में किसी भी पदार्थ का स्त्रवण नहीं होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT) : यह नलिका संग्राहक नलिका के पास एवं बोमेन कैप्सूल से दूर होती है। इस नली से जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन एवं लवण का अवशोषण एल्डोस्टेरॉन के प्रभाव से होता है। इस भाग में यूरिया एवं लवण का स्त्रवण होता है।
संग्राहक नलिका (Collecting tube) : यह एक लंबी नली होती है जिसमें बहुत से नेफ्रॉन जुड़े होते हैं। इससे जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन के प्रभाव से होता है तथा कुछ लवण, यूरिया का स्त्रवण होता है। वास्तव में यही से यूरिन बनने का कार्य पूरा होता है।
यूरिन निर्माण की क्रियाविधि (Urine formation)
इसके तीन चरण होते हैं -
A) गुच्छीय निस्यंदन (Glomerular filtration): इसके दौरान ग्लोमेरुलस से रक्त छनकर बोमेन कैप्सूल में आता है व निस्यंद (filtrate) बनाता है। निस्यंदन में क्षेत्र के माध्यम से होता है। निस्यंद में सूक्ष्म कण होते हैं जैसे अमीनो अम्ल, शर्करा (ग्लूकोस), उत्सर्जी पदार्थ, लवण।
Glomerular hydrostatic pressure (GHP) : निस्यंद बनने को प्रेरित करता है। रक्त को बाहर निकलने एवं बोमेन कैप्सूल में प्रवेश हेतु प्रेरित करता है।
(GHP) = 60 से 75 mmHg
Blood colloidal osmotic pressure (BCOP) : यह निस्यंद बनने का विरोध करता है।
(BCOP) = 32 mmHg
Capsular hydrostatic pressure (CHP) : यह निस्यंद के बोमेन कैप्सूल में प्रवेश को रोकता है।
(CHP) =18 mmHg
Glomerular filtration pressure (GFP)
(GFP) = (GHP) - (BCOP + CHP)
(GFP) = 60 से 75 mmHg - (32 mmHg + 18 mmHg)
(GFP) = 60 से 75 mmHg - 50mmHg
(GFP) = 10 mmHg से 25mmHg
Glomerular filtration rate (GFR)
1 मिनट में बनने वाले निस्यंद की मात्रा को Glomerular filtration rate (GFR) कहते हैं।
GFR = 125 ml/minute
प्रतिदिन 180 लीटर रक्त (निस्यंद) किडनी में प्रवेश करता है।
B) नलिकीय पुनरावशोषण (Tubular reabsorption): इसके द्वारा लगभग 99% निस्यंद नेफ्रॉन से रक्त में वापस जाता है।
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) : इस भाग से सर्वाधिक अवशोषण होता है। इस भाग में जल, अमीनो अम्ल, शर्करा, NaCl का अवशोषण होता है। इसमें सक्रिय एवं निष्क्रिय अवशोषण होता है।
हेनले लूप (Henley loop) : अवरोही भुजा से केवल जल का अवशोषण (निष्क्रिय अवशोषण) होता है। हेनले लूप की आरोही भुजा से लवण का अवशोषण (सक्रिय एवं निष्क्रिय अवशोषण) होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT) : इस नली से जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन एवं लवण का अवशोषण एल्डोस्टेरॉन के प्रभाव से होता है।
संग्राहक नलिका (Collecting tube) : इससे जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन के प्रभाव से होता है।
C) नलिकीय स्त्रवण (Tubular secretion): इस दौरान बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ व आयनों को सक्रिय रूप से निस्यंद में डाला जाता है।
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) : इस भाग में सर्वाधिक स्त्रवण होता है। इस भाग में यूरिया, लवण, अमोनिया का स्त्रवण होता है।
हेनले लूप (Henley loop) : इस भाग में किसी भी पदार्थ का स्त्रवण नहीं होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT) : इस भाग में अमोनिया एवं लवण का स्त्रवण होता है।
संग्राहक नलिका (Collecting tube) : कुछ लवण का स्त्रवण होता है। वास्तव में यही से यूरिन बनने का कार्य पूरा होता है।
GFR का नियंत्रण
Juxta glomerular apparatus (JGA)
तीन संरचनाओं से मिलकर बना होता है -
मेक्यूला डेन्सा (Macula densa) : DCT कर भाग जो ग्लोमेरुलस के समीप स्थित होता है मेक्यूला डेन्सा कहलाता है।
जक्सटा ग्लोमेरूलर कोशिका (Juxta glomerular Cell): अभिवाही धमनिका में रेनिन का स्त्रवण करता है।
लैसिस कोशिका (Lachesis cell): ग्लोमेरुलस एवं मेक्यूला डेन्सा के मध्य पाया जाता है।
RAAS (Renin Angiotensin Aldosterone System): किडनी में जब ब्लड प्रेशर कम हो जाता है तब GFR कम हो जाता है, जिससे JG cell रेनिन का स्त्रवण करता है। यह यकृत से स्रावित Angiotensinogen प्रोटीन को Angiotensinogen-I में परिवर्तित कर देता है तथा Angiotensin Converting Enzyme (ACE) Angiotensinogen-I को Angiotensin-II में परिवर्तित कर देता है। यह मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस, हृदय एवं एड्रीनल काॅर्टेक्स पर कार्य करता है।
हाइपोथैलेमस : Angiotensin-II के कारण अधिक प्यास लगता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाते हैं।
हृदय : Angiotensin-II के कारण हृदय की वाहिनियों का संकुचन होता है जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।
एड्रीनल काॅर्टेक्स : इससे एल्डोस्टेरॉन हार्मोन का स्त्रवण होता है जो DCT से लवण का अवशोषण कराता है।
ब्लड प्रेशर बढ़ने से हृदय के आलिंद में अधिक तनाव होता है जिससे एरियल नाइट्रियूरेटिक फैक्टर (Arial Natriuretic Factor - ANF) रिलीज होता है, जो रेनिन का संदमन करता है। इस प्रकार GFR का नियंत्रण होता है।
MCQs
मेंढक का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ क्या होता है?
Ans: यूरिया।
किस उत्सर्जी पदार्थ के निष्काषन हेतु अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है?
Ans: अमोनिया।
अमोनिया का यूरिया में परिवर्तन कहां पर होता है?
Ans: यकृत (liver) में।
यूरिन का pH कितना होता है?
Ans: 6 (अम्लीय)
एक किडनी में नेफ्रॉन की संख्या कितनी होती है?
Ans: 1 मिलियन।
नेफ्रॉन के किस भाग में सर्वाधिक स्त्रवण एवं अवशोषण होता है?
Ans: समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) में।
RAAS का पूरा नाम लिखिए।
Ans: RAAS - Renin Angiotensin Aldosterone System
JGA का पूरा नाम लिखिए।
Ans: JGA - Juxta glomerular apparatus
DCT का पूरा नाम लिखिए।
Ans: DCT - दूरस्थ संवलित नलिका (DCT)
GFP का पूरा नाम लिखिए।
Ans: GFP - Glomerular Filtration Pressure
ADH का पूरा नाम लिखिए।
Ans: ADH - Anti Diuretic Hormone
GFP कितना होता है?
Ans: 10 से 25 mmHg
GFR कितना होता है?
Ans: 125/minute
यूरिन का रंग पीला क्यों होता है?
Ans: यूरोक्रोम के कारण।
नेफ्रॉन के किस भाग में जल संरक्षण पाया जाता है?
Ans: हेनले लूप की अवरोही भुजा में।
Short Type Questions
Q.1 नेफ्रॉन के कार्य लिखिए।
Ans:
शारीरिक समस्थैतिकी बनाए रखना।
जल एवं लवण में संतुलन बनाए रखना।
नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ को यूरिन के माध्यम से शरीर से बाहर करना।
अम्ल-क्षार में संतुलन बनाए रखना।
Q.2 परासरण नियमन (ऑसमोरेगुलेशन) किसे कहते हैं?
Ans: जीवों के शरीर में जल के आयतन एवं अभिगमन को निश्चित दशा में बनाए रखने की क्रिया परासरण नियमन (ऑसमोरेगुलेशन) कहलाती है।
Q.3 निस्यंद किसे कहते हैं?
Ans: अभिवाही धमनिका से होकर रक्त ग्लोमेरुलस से छनकर बोमेन कैप्सूल में आ जाता है तथा शेष रक्त अपवाही धमनिका द्वारा वापस चला जाता है। बोमेन कैप्सूल में उपस्थित छनित रक्त निस्यंद कहलाता है।
Q.4 GFR किसे कहते हैं?
Ans: 1 मिनट में बनने वाले निस्यंद की मात्रा को Glomerular filtration rate (GFR) कहते हैं।
GFR = 125 ml/minute
प्रतिदिन 180 लीटर रक्त (निस्यंद) किडनी में प्रवेश करता है।
Q.5 PCT के कार्य लिखिए।
Ans: समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) :
इस भाग से सर्वाधिक अवशोषण होता है। इस भाग में जल, अमीनो अम्ल, शर्करा, NaCl का अवशोषण होता है। इसमें सक्रिय एवं निष्क्रिय अवशोषण होता है।
इस भाग में सर्वाधिक स्त्रवण होता है। इस भाग में यूरिया, लवण, अमोनिया का स्त्रवण होता है।
Q.6 नेफ्रॉन के विभिन्न भागों के नाम लिखिए।
Ans: नेफ्रॉन के विभिन्न भाग -
A) मैलपिघियन बॉडी (Malpighian body)
1) बोमेन कैप्सूल (Bowman's capsule)
2) ग्लोमेरुलस (glomerulus)
B) वृक्कीय (रीनल) नलिकाएं (Renal tubules)
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT)
हेनले लूप (Henley loop)
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT)
संग्राहक नलिका (Collecting tube)
Q.7 किडनी क्या है? लिखिए।
Ans: मानव में एक जोड़ी किडनी पाया जाता है। यहीं पर यूरिन का निर्माण होता है। नेफ्रॉन इसकी क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई होती है।
ये गहरे लाल रंग का होते है।
सेम के बीज के समान दिखाई देते है।
कशेरूक दंड के दोनों ओर उपस्थित होता है (12th वक्षीय कशेरूक से 3rd उदर कशेरूक तक)।
किडनी देहभित्ति की पृष्ठीय भाग से (पीछे से) जुड़ते हैं।
दायां किडनी बायें किडनी की तुलना में थोड़ा नीचे होता है क्योंकि इसके ऊपर विशाल यकृत होता है।
Q.8 मानव उत्सर्जन तंत्र के विभिन्न अंगों के नाम लिखिए।
Ans: मनुष्य मुख्य उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया का उत्सर्जन करता है, अतः यूरियोटेलिक होता है।
मानव उत्सर्जन तंत्र में शामिल अंग -
1) किडनी (Kidney) : मानव में एक जोड़ी किडनी पाया जाता है। यहीं पर यूरिन का निर्माण होता है। नेफ्रॉन इसकी क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई होती है।
ये गहरे लाल रंग का होते है।
सेम के बीज के समान दिखाई देते है।
कशेरूक दंड के दोनों ओर उपस्थित होता है (12th वक्षीय कशेरूक से 3rd उदर कशेरूक तक)।
किडनी देहभित्ति की पृष्ठीय भाग से (पीछे से) जुड़ते हैं।
दायां किडनी बायें किडनी की तुलना में थोड़ा नीचे होता है क्योंकि इसके ऊपर विशाल यकृत होता है।
इसका भार लगभग 120 से 170 ग्राम होता है। सामान्यतः महिलाओं में 135 ग्राम एवं पुरुषों में 150 ग्राम होता है।
2) यूरेटर (Ureter) : मानव में एक जोड़ी यूरेटर पाया जाता है।
3) यूरिनरी ब्लैडर (Urinary bladder) : मानव में एक यूरिनरी ब्लैडर पाया जाता है जहां यूरिन का संचय होता है।
4) यूरेथ्रा (Urethra) : मानव में एक यूरेथ्रा पाया जाता है। इसके माध्यम से यूरिन को मानव शरीर से बाहर कर दिया जाता है।
Q.9 यूरिन क्या है? लिखिए।
Ans:
यूरिन एक उत्सर्जी पदार्थ है। मनुष्य में प्रतिदिन एक से डेढ़ लीटर यूरिन बनता है।
यह यूरोक्रोम के कारण पीले रंग का होता है।
इसका pH मान 6 होता है।
इसमें अधिक मात्रा में जल लगभग 94 से 96% होता है।
इसमें 2.6% यूरिया एवं 0.3% यूरिक अम्ल पाया जाता है।
2% अन्य पदार्थ जैसे अमोनिया, लवण, आयन आदि पाए जाते हैं।
Q.10 नेफ्रॉन का नामांकित चित्र बनाइए।
Ans: ऊपर देखिए।
Long Type Questions
Q.1 मानव उत्सर्जन तंत्र को सचित्र समझाइए।
Ans: मानव उत्सर्जन तंत्र (Human Excretory System)
मनुष्य मुख्य उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया का उत्सर्जन करता है, अतः यूरियोटेलिक होता है।
खाद्य पदार्थों (मुख्यतः प्रोटीन) के विघटन से अमोनिया का निर्माण होता है जिसके निष्कासन के लिए अत्यधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। किंतु मानव शरीर में इतने मात्रा में जल की पूर्ति करना संभव नहीं होता। अतः यकृत में यूरिया चक्र (ऑर्निथिन चक्र) द्वारा अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित किया जाता है, जिसके निष्कासन के लिए लगभग एक से डेढ़ लीटर जल की आवश्यकता होती है।
मानव उत्सर्जन तंत्र में शामिल अंग
1) किडनी (Kidney) : मानव में एक जोड़ी किडनी पाया जाता है। यहीं पर यूरिन का निर्माण होता है। नेफ्रॉन इसकी क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई होती है।
ये गहरे लाल रंग का होते है।
सेम के बीज के समान दिखाई देते है।
कशेरूक दंड के दोनों ओर उपस्थित होता है (12th वक्षीय कशेरूक से 3rd उदर कशेरूक तक)।
किडनी देहभित्ति की पृष्ठीय भाग से (पीछे से) जुड़ते हैं।
दायां किडनी बायें किडनी की तुलना में थोड़ा नीचे होता है क्योंकि इसके ऊपर विशाल यकृत होता है।
इसका भार लगभग 120 से 170 ग्राम होता है। सामान्यतः महिलाओं में 135 ग्राम एवं पुरुषों में 150 ग्राम होता है।
किडनी के जिस भाग से रक्त वाहिनियां, रीनल धमनी एवं रीनल शिरा प्रवेश करता है, उसे हाइलम कहते हैं।
किडनी की लंबाई = 10-12cm
किडनी की चौड़ाई = 5-7cm
किडनी की मोटाई = 2-3cm
2) यूरेटर (Ureter) : मानव में एक जोड़ी यूरेटर पाया जाता है।
3) यूरिनरी ब्लैडर (Urinary bladder) : मानव में एक यूरिनरी ब्लैडर पाया जाता है जहां यूरिन का संचय होता है।
4) यूरेथ्रा (Urethra) : मानव में एक यूरेथ्रा पाया जाता है। इसके माध्यम से यूरिन को मानव शरीर से बाहर कर दिया जाता है।
Q.2 नेफ्रॉन की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
Ans: नेफ्रॉन की संरचना
A) मैलपिघियन बॉडी (Malpighian body)
1) बोमेन कैप्सूल (Bowman's capsule) : यह नेफ्रॉन का अग्र भाग होता है जो कप के समान दिखाई देता है। इसमें अभिवाही धमनिका से रक्त आता है एवं अपवाही धमनिका के माध्यम से रक्त वापस चला जाता है।
2) ग्लोमेरुलस (glomerulus) : अभिवाही धमनिका बोमेन कैप्सूल के प्यालेनुमा संरचना में केशिकाओं का जाल बना लेता है, जिसे ग्लोमेरुलस कहते हैं। यह रक्त का छनन करता है एवं निस्यंद बनाता है।
B) वृक्कीय (रीनल) नलिकाएं (Renal tubules)
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) : यह बोमेन कैप्सूल के आगे की नलिकीय संरचना होती है। इस भाग से सर्वाधिक स्त्रवण एवं अवशोषण होता है।
हेनले लूप (Henley loop) : U आकार का होता है। अवरोही भुजा से केवल जल का अवशोषण होता है एवं आरोही भुजा से लवण का अवशोषण होता है। इस भाग में किसी भी पदार्थ का स्त्रवण नहीं होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT) : यह नलिका संग्राहक नलिका के पास एवं बोमेन कैप्सूल से दूर होती है। इस नली से जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन एवं लवण का अवशोषण एल्डोस्टेरॉन के प्रभाव से होता है। इस भाग में यूरिया एवं लवण का स्त्रवण होता है।
संग्राहक नलिका (Collecting tube) : यह एक लंबी नली होती है जिसमें बहुत से नेफ्रॉन जुड़े होते हैं। इससे जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन के प्रभाव से होता है तथा कुछ लवण, यूरिया का स्त्रवण होता है। वास्तव में यही से यूरिन बनने का कार्य पूरा होता है।
Q.3 यूरिन निर्माण की क्रियाविधि को समझाइए।
Ans: यूरिन निर्माण की क्रियाविधि (Urine formation)
इसके तीन चरण होते हैं -
A) गुच्छीय निस्यंदन (Glomerular filtration): इसके दौरान ग्लोमेरुलस से रक्त छनकर बोमेन कैप्सूल में आता है व निस्यंद (filtrate) बनाता है। निस्यंदन में क्षेत्र के माध्यम से होता है। निस्यंद में सूक्ष्म कण होते हैं जैसे अमीनो अम्ल, शर्करा (ग्लूकोस), उत्सर्जी पदार्थ, लवण।
Glomerular hydrostatic pressure (GHP) = 60 से 75 mmHg
Blood colloidal osmotic pressure (BCOP) = 32 mmHg
Capsular hydrostatic pressure (CHP) =18 mmHg
Glomerular filtration pressure (GFP)
(GFP) = (GHP) - (BCOP + CHP)
(GFP) = 10 mmHg से 25mmHg
Glomerular filtration rate (GFR)
1 मिनट में बनने वाले निस्यंद की मात्रा को Glomerular filtration rate (GFR) कहते हैं।
GFR = 125 ml/minute
B) नलिकीय पुनरावशोषण (Tubular reabsorption): इसके द्वारा लगभग 99% निस्यंद नेफ्रॉन से रक्त में वापस जाता है।
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) : इस भाग से सर्वाधिक अवशोषण होता है। इस भाग में जल, अमीनो अम्ल, शर्करा, NaCl का अवशोषण होता है। इसमें सक्रिय एवं निष्क्रिय अवशोषण होता है।
हेनले लूप (Henley loop) : अवरोही भुजा से केवल जल का अवशोषण (निष्क्रिय अवशोषण) होता है। हेनले लूप की आरोही भुजा से लवण का अवशोषण (सक्रिय एवं निष्क्रिय अवशोषण) होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT) : इस नली से जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन एवं लवण का अवशोषण एल्डोस्टेरॉन के प्रभाव से होता है।
संग्राहक नलिका (Collecting tube) : इससे जल का अवशोषण एंटी डायूरेटिक हार्मोन के प्रभाव से होता है।
C) नलिकीय स्त्रवण (Tubular secretion): इस दौरान बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ व आयनों को सक्रिय रूप से निस्यंद में डाला जाता है।
समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) : इस भाग में सर्वाधिक स्त्रवण होता है। इस भाग में यूरिया, लवण, अमोनिया का स्त्रवण होता है।
हेनले लूप (Henley loop) : इस भाग में किसी भी पदार्थ का स्त्रवण नहीं होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (DCT) : इस भाग में अमोनिया एवं लवण का स्त्रवण होता है।
संग्राहक नलिका (Collecting tube) : कुछ लवण का स्त्रवण होता है। वास्तव में यही से यूरिन बनने का कार्य पूरा होता है।
Q.4 GFR किसे कहते हैं? GFR का नियमन किस प्रकार किया जाता है? समझाइए।
Ans: Glomerular filtration rate (GFR): 1 मिनट में बनने वाले निस्यंद की मात्रा को Glomerular filtration rate (GFR) कहते हैं।
GFR = 125 ml/minute
GFR का नियंत्रण
Juxta glomerular apparatus (JGA)
तीन संरचनाओं से मिलकर बना होता है -
मेक्यूला डेन्सा (Macula densa) : DCT कर भाग जो ग्लोमेरुलस के समीप स्थित होता है मेक्यूला डेन्सा कहलाता है।
जक्सटा ग्लोमेरूलर कोशिका (Juxta glomerular Cell): अभिवाही धमनिका में रेनिन का स्त्रवण करता है।
लैसिस कोशिका (Lachesis cell): ग्लोमेरुलस एवं मेक्यूला डेन्सा के मध्य पाया जाता है।
RAAS (Renin Angiotensin Aldosterone System): किडनी में जब ब्लड प्रेशर कम हो जाता है तब GFR कम हो जाता है, जिससे JG cell रेनिन का स्त्रवण करता है। यह यकृत से स्रावित Angiotensinogen प्रोटीन को Angiotensinogen-I में परिवर्तित कर देता है तथा Angiotensin Converting Enzyme (ACE) Angiotensinogen-I को Angiotensin-II में परिवर्तित कर देता है। यह मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस, हृदय एवं एड्रीनल काॅर्टेक्स पर कार्य करता है।
हाइपोथैलेमस : Angiotensin-II के कारण अधिक प्यास लगता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाते हैं।
हृदय : Angiotensin-II के कारण हृदय की वाहिनियों का संकुचन होता है जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।
एड्रीनल काॅर्टेक्स : इससे एल्डोस्टेरॉन हार्मोन का स्त्रवण होता है जो DCT से लवण का अवशोषण कराता है।
ब्लड प्रेशर बढ़ने से हृदय के आलिंद में अधिक तनाव होता है जिससे एरियल नाइट्रियूरेटिक फैक्टर (Arial Natriuretic Factor - ANF) रिलीज होता है, जो रेनिन का संदमन करता है। इस प्रकार GFR का नियंत्रण होता है।
Q.5 ऑर्निथिन चक्र किसे कहते हैं? इसकी क्रियाविधि समझाइए।
Ans: ऑर्निथिन चक्र : यकृत में अमोनिया से यूरिया बनने की प्रक्रिया ऑर्निथिन चक्र या यूरिया चक्र कहलाती है।
ऑर्निथिन चक्र की क्रियाविधि :
अमोनिया, CO2, H2O एवं ATP Carbamyl Phosphatase enzyme की उपस्थिति में Carbamyl Phosphate बनाता है तथा 2ADP के अणु मुक्त होते हैं। कार्बामाइल फास्फेट (Carbamyl Phosphate) ऑर्निथिन (Ornithine) के साथ मिलकर सिट्रूलिन (Citrulline) बनाता है एवं फास्फेट मुक्त होता है। Citrulline एस्पार्टिक एसिड (aspartic acid) तथा ATP के साथ मिलकर Mg+² की उपस्थिति में ऑर्जिनोसाक्सिनिक एसिड (Arginosuccinic acid) बनाता है। यह Arginosuccinase एंजाइम की उपस्थिति में ऑर्जिनिन (Arginine) एवं फ्यूमैरिक एसिड (Fumaric acid) बनाता है। Arginine, जल के साथ मिलकर Arginase enzyme की उपस्थिति में Ornithine एवं (Urea) बनाता है। इस प्रकार यूरिया का निर्माण होता है। ऑर्निथिन (Ornithine) इस चक्र में पुनः उपयोग में लाया जाता है।
Q.6 उत्सर्जन तंत्र से संबंधित निम्नलिखित विकारों की व्याख्या कीजिए -
किडनी स्टोन, डायूरेसिस, ग्लूकोसूरिया, यूरेमिया, हिमैटोयूरिया, नेफ्रैटिस, डायबिटीज मेलिटस
Ans:
किडनी स्टोन (Kidney stone) : जब कैल्शियम के रवे किडनी में फंस जाते हैं तब इसके कारण किडनी स्टोन होता है।
डायूरेसिस (Diuresis) : यूरिन का अधिक मात्रा में बनना डायूरेसिस कहलाता है।
यूरेमिया (Uremia) : रक्त में यूरिया की मात्रा अधिक होना यूरेमिया कहलाषता है।
हिमैटोयूरिया (Hematouria) : यूरिन के साथ रक्त आना हिमैटोयूरिया कहलाता है।
नेफ्रैटिस (Nephritis) : नेफ्रॉन में सूजन हो जाता है तो इसे नेफ्रैटिस कहते हैं। यूरिन में झाग व खून आना इसके लक्षण है।
डायबिटीज मेलिटस (Deabetes Mellitus) : यूरिन में अधिक मात्रा में ग्लूकोज का पाया जाना डायबिटीज मेलिटस या ग्लूकोसूरिया कहलाता है।