शिरीष के फूल
हजारीप्रसाद द्विवेदी
हजारीप्रसाद द्विवेदी
हजारी प्रसाद द्विवेदी का निबंध *“शिरीष के फूल ”* प्रकृति-वर्णन के साथ-साथ गहन जीवन-दर्शन प्रस्तुत करता है। लेखक शिरीष के छोटे, हल्के और कोमल पुष्पों को देखकर जीवन की सच्चाई समझाते हैं। ये पुष्प क्षणभंगुर हैं, जल्दी मुरझा जाते हैं, परंतु जब तक रहते हैं, वातावरण को अपनी मधुर सुगंध और सौंदर्य से भर देते हैं। इस प्रकार ये विनम्रता, करुणा और त्याग के प्रतीक हैं। लेखक के अनुसार, मानव जीवन की सार्थकता भी इसकी लंबाई में नहीं, बल्कि इसमें भरे गुणों और मानवीय मूल्यों में है।
इसके विपरीत, लेखक ने शिरीष के फलों का उल्लेख किया है। ये फल पेड़ से बहुत मजबूती से चिपके रहते हैं और तब तक नहीं गिरते जब तक कोई नया फल आकर उन्हें धक्का न दे। यह स्वभाव उन मनुष्यों की मानसिकता का प्रतीक है जो अपने पद, प्रतिष्ठा और अधिकार से चिपके रहते हैं और त्याग करना नहीं जानते। इससे लेखक हमें सीख देते हैं कि मनुष्य को फल जैसा नहीं, बल्कि फूल जैसा होना चाहिए – जो निस्वार्थ भाव से अपना जीवन दूसरों के लिए अर्पित करता है।
लेखक ने अपने विचार को स्पष्ट करने के लिए महात्मा गांधी के जीवन का उदाहरण दिया है। गांधीजी का जीवन शिरीष के पुष्पों जैसा सरल, कोमल और त्यागमय था, जिसने समूचे राष्ट्र को सुगंधित कर दिया।
इस प्रकार, "शिरीष के फूल" निबंध केवल पुष्प-वर्णन नहीं है, बल्कि यह जीवन-दर्शन का गहरा संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन क्षणभंगुर है, परंतु हमें करुणा, विनम्रता और त्याग से उसे महान बनाना चाहिए।
1. “शिरीष के फूल” निबंध के लेखक कौन हैं?
(a) महादेवी वर्मा
(b) हजारी प्रसाद द्विवेदी ✅
(c) प्रेमचंद
(d) रामधारी सिंह दिनकर
2. शिरीष के फूल किसके प्रतीक हैं?
(a) कठोरता और अहंकार
(b) करुणा, विनम्रता और त्याग ✅
(c) लोभ और आसक्ति
(d) शक्ति और कठोरता
3. शिरीष के फूलों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
(a) वे दीर्घायु होते हैं
(b) क्षणभंगुर होते हुए भी वातावरण को सुगंधित करते हैं ✅
(c) वे भारी और कठोर होते हैं
(d) वे कभी नहीं झरते
4. लेखक ने शिरीष के फूलों से मनुष्य को क्या शिक्षा दी है?
(a) पद से चिपके रहना
(b) जीवन को त्याग और करुणा से सुगंधित करना ✅
(c) शक्ति का प्रदर्शन करना
(d) अपने सौंदर्य पर घमंड करना
5. शिरीष के फलों का स्वभाव कैसा बताया गया है?
(a) वे तुरंत पेड़ से झर जाते हैं
(b) वे पेड़ से मजबूती से चिपके रहते हैं ✅
(c) वे फूलों की तरह सुगंधित होते हैं
(d) वे हमेशा धरती पर रहते हैं
6. शिरीष के फल तब तक नहीं गिरते जब तक—
(a) हवा उन्हें गिरा न दे
(b) नये फल आकर उन्हें धक्का न दें ✅
(c) सूरज उन्हें सुखा न दे
(d) पक्षी उन्हें खा न जाए
7. शिरीष के फलों का स्वभाव किन लोगों से तुलना किया गया है?
(a) जो जीवन में त्याग करते हैं
(b) जो पद और प्रतिष्ठा से चिपके रहते हैं ✅
(c) जो सादा जीवन जीते हैं
(d) जो निस्वार्थ सेवा करते हैं
8. शिरीष के फूलों की तुलना लेखक ने किन महापुरुष के जीवन से की है?
(a) महात्मा गांधी ✅
(b) कबीर और तुलसीदास
(c) राम और कृष्ण
(d) रवींद्रनाथ टैगोर और सुभाषचंद्र बोस
9. गांधीजी का जीवन शिरीष के पुष्पों जैसा क्यों बताया गया है?
(a) क्योंकि वे क्षणभंगुर थे
(b) क्योंकि वे सरल, कोमल और त्यागमय थे ✅
(c) क्योंकि वे कठोर और शक्तिशाली थे
(d) क्योंकि वे पद से चिपके रहे
10. “शिरीष के फूल” निबंध का मुख्य संदेश क्या है?
(a) जीवन लंबा होना चाहिए
(b) जीवन छोटा हो तो भी उसे करुणा और विनम्रता से महान बनाना चाहिए ✅
(c) पद और प्रतिष्ठा से चिपके रहना चाहिए
(d) कठोरता ही शक्ति है
Q.1 शिरीष के फूल हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के किस संग्रह से उद्धित है?
Ans: कल्पलता
Q.2 लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (सन्यासी) की तरह क्यों माना है?
Or
शिरीष की तुलना किससे और क्यों की गई है?
Ans: कालजयी अवधूत का अर्थ है काल को जीतने वाला सन्यासी। जिस प्रकार सन्यासी जीवन के सुख-दुख, उतार-चढ़ाव, कष्ट कठिनाइयां, हर परिस्थितियों में समान भाव एवं व्यवहार में रहकर जीवन का आनंद लेता है। ठीक उसी प्रकार शिरीष का फूल ग्रीष्म ऋतु की अत्यधिक गर्मी में जब उमस से लोगों के प्राण सूखते हैं और लू से हृदय उबलने लगता है तब भी अत्यधिक धूप में इस वृक्ष के सभी अंग रस से भरे होते हैं, फूलते फलते रहते हैं इसलिए शिरीष को कालजयी अवधूत कहा गया है।
Q.3 कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए ?
Ans: कोमल और कठोर भाव गांधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता है। ऐसे लोग आदर्श चरित्र के होते हैं जो विपरीत गुणों को एक साथ अपने अंदर आत्मसात कर लेते हैं। ऐसे ही विपरीत विशेषताओं से युक्त लोग महान पुरुषों की श्रेणी में आते हैं। गांधी जी एक ओर देश के हरिजन, बच्चों, दीन-दुखियों के प्रति सह्रदयी होकर कोमलता का भाव रखते थे वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों के अन्याय का डटकर विरोध करने के लिए कठोर हो जाते थे।
Q.4 शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गर्मी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प की संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?
Ans: शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है क्योंकि ज्येष्ठ माह की प्रचंड गर्मी में जब लू कारण अन्य पेड़ पौधे, वृक्ष, पशु पक्षी सभी पानी की कमी से सूखते और मरते जाते हैं ऐसे समय में शिरीष स्वयं को सरस, हरा भरा रखकर फल फूल से अच्छादित रहता है। उसके निकट आने से शीतलता का अनुभव होता है अर्थात् ग्रीष्म की गर्मी भी उसके निकट आकर ठंडी (शीतल) हो जाती है इसलिए इसे शीतपुष्प कहा है।
Q.5 हाय, वह अवधूत आज कहां है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?
Ans: अवधूत वास्तव में वे संन्यासी है जिनका आत्मबल मजबूत होता है। मन और आत्मा को वश में रखकर कठिन साधना करते हैं ऐसे अवधूत अब नहीं मिलते हैं। वर्तमान समय में लोग देहबल से वशीभूत हो गए हैं। ऐसे लोग अपने शारीरिक सुख के लिए साधन, संपदा, मोह-माया जुटाते रहते हैं। स्वार्थ से वशीभूत लोगों के अंदर आत्मबल की कमी के कारण मानवता की भावना भी समाप्त होती जा रही है। शिरीष और महात्मा गांधी जैसे लोगों की कमी के कारण आज प्रेरणा स्रोत अनासक्त योगी जैसे लोग नहीं मिलते हैं।
Q.6 हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है। शिरीष के फूल पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
Ans: हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी जरूरी हो जाती है। यह कथन सत्य है। बाहर से वज्र की तरह कठोर लोग अंदर से मोम की तरह कोमल भी होते हैं। उसी प्रकार शिरीष के पुष्पों को इतना कोमल बताया गया है कि वह पक्षी के पैरों का भार भी सहन नहीं कर सकते हैं, किंतु फल उतने ही मजबूती से बंधे होते हैं कि जब तक उसे नया फल धकियाकर गिर न दे तब तक वह वही बना रहता है, अपना स्थान नहीं छोड़ता। इस प्रकार शिरीष का वृक्ष बाहर की प्रचंड गर्मी को सहकर अंदर से हरा भरा, कोमल, सरस बना रहता है। अतः आंतरिक सरसता के लिए बाहरी आवरण की कठोरता भी जरूरी होती है।
Q.7 द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन स्थितियों में अचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट कीजिए।
Ans: द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन स्थितियों में अचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। जिस प्रकार शिरीष का वृक्ष अत्यधिक गर्म, अग्नि, धूप, लू के बावजूद अंदर से सरस बना रहता है, फलों एवं फूलों से आच्छादित हरा-भरा रहता है उसी प्रकार जीवन में आने वाले सुख-दुख, कष्ट, लूटपाट, खून खच्चर, विकट परिस्थितियों में अपना हौसला नहीं होना चाहिए और शांत व स्थिर होकर जीवन जीना चाहिए।
Q.8 आशय स्पष्ट कीजिए ऐसे दुमदारों से लंडूरे भले।
Ans: लेखक द्विवेदी के अनुसार दुमदार पक्षी अर्थात् सजीला पक्षी जो कुछ समय के लिए अपनी सुंदरता से मोहित होकर मनोरम नृत्य करता है और फिर दुम गंवाकर कुरुप जीवन जीता है। तो उसकी बजाय पूंछ कटा हुआ पक्षी ही श्रेष्ठ है। वह पंखहीन हुआ तो क्या हुआ, कम से कम उसे पूछ गंवाकर कुरूप होने की दुर्गति तो नहीं झेलनी पड़ेगी।
Q.9 लेखक ने देश के पुराने राजनेताओं पर क्या टिप्पणी की है?
Ans: लेखक द्विवेदी जी शिरीष के फल के माध्यम से देश के पुराने राजनेताओं पर टिप्पणी की है। उनका कहना है की शिरीष के फल इतनी मजबूती से बंधे होते हैं कि जब तक दूसरा नया फल धकिया कर उसे गिरा नहीं देता तब तक वह अपनी जगह नहीं छोड़ते हैं। उनका कहना है की राजनीति के अखाड़े में पुराने राजनेताओं को समय रहते ही संन्यास ले लेना चाहिए तभी नवयुवक अपनी प्रतिभा और क्षमता दिखा पाएंगे।
Q.10 शिरीष वृक्ष के आकार-प्रकार का वर्णन करते हुए उसके उपयोग पर प्रकाश डालिए।
Ans: शिरीष वृक्ष बड़े आकार का होता है।
यह छायादार वृक्ष होता है।
इसके तने बहुत मजबूत नहीं होते।
इनकी डालियां भी कमजोर होती है।
कमजोर डालीं होने के कारण इन पर झूले नहीं बनाए जाते। शिरीष के पुष्प बहुत कोमल और सुंदर होते हैं।
इसके फल बहुत मजबूत होते हैं। जब तक नए फूल पत्ते जाकर फल को धकिया नहीं देते, तब तक वे अपना स्थान नहीं छोड़ते हैं।
शिरीष के वृक्ष मंगलदायी और सजावटी माने जाते हैं। पुराने समय में बड़े-बड़े रईस अपने घर की चार दीवारों के पास इन वृक्षों को लगाया करते थे।
Q.11 हाय, वह अवधूत आज कहां है? लेखक ने यहां किसे स्मरण किया है और क्यों?
Ans: लेखक ने 'हाय, वह अवधूत आज कहां है?' के माध्यम से भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को स्मरण किया है क्योंकि महात्मा गांधी शिरीष के वृक्ष की तरह वातावरण से रस खींचकर रसवान बने रहे थे। जिस प्रकार शिरीष का वृक्ष अत्यधिक गर्मी, लू, धूप में भी सरस बना रहता है उसी प्रकार महात्मा गांधी बाहरी खून खच्चर, दुखों के बावजूद रसवान बने रहे और एक अनासक्त योगी की तरह सबसे रस बांटते रहे। आज देश को ऐसे अनशक्त योगियों की अत्यंत आवश्यकता है।
Q.12 अवधूत और शिरीष सरस रचनाएं करते हैं। कैसे?
Ans: अवधूत कठिनतम परिस्थितियों में जीवन व्यतीत करते हुए भी जीवन को सरस बनाए रखते हैं तथा सरस रचनाएं करते हैं। कबीर ऐसे ही अवधूत थे। उन्होंने कठोर जीवन जिया। फिर भी उनकी वाणी अमर और सरस है। इसी प्रकार शिरीष भी अत्यंत गर्मी, धूप, लू में भी वातावरण से रस खींचकर सरस बना रहता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यह सुंदर और कोमल फूल प्रदान करता है, किंतु इसके फल अत्यधिक मजबूत होते हैं।
Q13. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शिरीष के पुष्पों को जीवन-दर्शन से कैसे जोड़ा है?
उत्तर : शिरीष के पुष्प छोटे, हल्के और क्षणभंगुर होते हैं। ये बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं, परंतु जब तक जीवित रहते हैं, वातावरण को अपनी सुगंध और कोमलता से भर देते हैं। लेखक ने इन्हें जीवन-दर्शन से जोड़ते हुए कहा कि मानव जीवन भी शिरीष के पुष्पों जैसा है। यह लंबा हो या छोटा, महत्वपूर्ण यह है कि जीवन में कितनी करुणा, विनम्रता और प्रेम भरा है।
द्विवेदीजी का मत है कि जीवन की सार्थकता उसकी आयु में नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता और उपयोगिता में है। जिस प्रकार शिरीष के फूल अपनी क्षणभंगुरता के बावजूद दूसरों को आनंद और शांति देते हैं, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी त्याग, करुणा और सेवा से सुगंधित होना चाहिए।
लेखक यह भी बताते हैं कि निस्वार्थ सेवा और मानवीयता ही जीवन का वास्तविक सौंदर्य है। मनुष्य को फूल की तरह सरल और विनम्र होना चाहिए।
इस प्रकार, लेखक ने शिरीष के पुष्पों के माध्यम से यह संदेश दिया कि जीवन की क्षणभंगुरता से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे सार्थक और महान बनाने का प्रयास करना चाहिए।
Q14. शिरीष के पुष्प किन गुणों का प्रतीक हैं?
उत्तर : शिरीष के पुष्प अपनी कोमलता, सुगंध और क्षणभंगुरता के लिए प्रसिद्ध हैं। लेखक ने इन्हें करुणा, विनम्रता और त्याग का प्रतीक माना है। ये फूल बहुत नाजुक होते हैं और थोड़े समय में झर जाते हैं, परंतु झरने से पहले वे वातावरण को मधुर सुगंध से भर देते हैं।
लेखक का कहना है कि मनुष्य का जीवन भी ऐसा होना चाहिए। जीवन लंबा हो या छोटा, यह मायने नहीं रखता। यदि उसमें करुणा, नम्रता और निस्वार्थ सेवा का भाव है, तो वह जीवन मूल्यवान है। शिरीष का पुष्प यह शिक्षा देता है कि हमें अपने सौंदर्य या गुणों पर घमंड नहीं करना चाहिए।
ये फूल हमें बताते हैं कि सच्चा सौंदर्य दूसरों को सुख और शांति देने में है। जो जीवन दूसरों के लिए उपयोगी होता है, वही सार्थक होता है।
इस प्रकार, शिरीष के पुष्प हमें विनम्रता, निःस्वार्थ सेवा और त्याग का संदेश देकर जीवन को महान बनाने की प्रेरणा देते हैं।
Q15. शिरीष के बीजों/फलों का स्वभाव और उसका दार्शनिक अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : शिरीष के बीजों या फलों का स्वभाव भी लेखक ने बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। ये फल पेड़ से बहुत मजबूती से जुड़े रहते हैं और तब तक अपनी जगह नहीं छोड़ते जब तक कोई नया फल आकर उन्हें धक्का न दे।
लेखक ने इस स्वभाव को मानव-जीवन की उस मानसिकता से जोड़ा है, जिसमें लोग अपने पद, प्रतिष्ठा और अधिकार से चिपके रहते हैं। वे तब तक अपनी स्थिति छोड़ना नहीं चाहते जब तक कोई और उन्हें विस्थापित न कर दे। यह प्रवृत्ति मनुष्य के अहंकार और आसक्ति को दर्शाती है।
इसके विपरीत, शिरीष के फूल बिना किसी आग्रह के अपनी नश्वरता स्वीकार कर लेते हैं और सहज भाव से धरती पर झरकर वातावरण को सुगंधित कर देते हैं। यह विनम्रता और त्याग का प्रतीक है।
इस प्रकार, शिरीष के बीज और फूलों के स्वभाव का अंतर हमें सिखाता है कि मनुष्य को आसक्ति और अहंकार छोड़कर फूलों की तरह विनम्र और निस्वार्थ होना चाहिए। यही जीवन का वास्तविक आदर्श है।
Q16. शिरीष के पुष्पों और फलों के स्वभाव में क्या अंतर है?
उत्तर : शिरीष के पुष्प और फल दोनों का स्वभाव एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। फूल हल्के, कोमल और क्षणभंगुर होते हैं। वे बिना आग्रह के झर जाते हैं और झरने से पहले वातावरण को मधुर सुगंध से भर देते हैं। वे विनम्रता, करुणा और त्याग के प्रतीक हैं।
इसके विपरीत, शिरीष के फल पेड़ से मजबूती से चिपके रहते हैं। वे तब तक अपना स्थान नहीं छोड़ते जब तक नया फल आकर उन्हें धक्का न दे। यह प्रवृत्ति मानव जीवन में आसक्ति, स्वार्थ और अहंकार का प्रतीक है।
लेखक का संदेश है कि मनुष्य को फूल की तरह होना चाहिए, जो क्षणभंगुर होते हुए भी दूसरों के लिए सुख और माधुर्य छोड़ जाते हैं। फल जैसा स्वभाव अपनाना, अर्थात पद और अधिकार से चिपके रहना, समाज और व्यक्ति दोनों के लिए हानिकारक है।
इस प्रकार, शिरीष के पुष्प और फल जीवन में त्याग और आसक्ति के बीच का अंतर स्पष्ट करते हैं।
Q17. शिरीष के पुष्प मानव जीवन की क्षणभंगुरता का क्या संदेश देते हैं?
उत्तर : शिरीष के पुष्प छोटे और कोमल होते हैं। वे जल्दी मुरझा जाते हैं और धरती पर गिर जाते हैं। इस प्रकार ये पुष्प जीवन की क्षणभंगुरता का प्रतीक हैं। लेखक का कहना है कि मानव जीवन भी शिरीष के फूल की तरह है—क्षणिक और नश्वर। लेकिन इस क्षणभंगुरता का अर्थ यह नहीं कि जीवन व्यर्थ है।
लेखक बताते हैं कि फूल अपने छोटे जीवनकाल में वातावरण को सुगंध और सौंदर्य से भर देता है। उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी चाहे छोटा हो या लंबा, उसकी सार्थकता इस बात में है कि उसने दूसरों के लिए कितना योगदान दिया।
शिरीष का फूल हमें सिखाता है कि मृत्यु अनिवार्य है, परंतु जीवन जीने का उद्देश्य यह होना चाहिए कि हम समाज और मानवता के लिए उपयोगी बनें। फूल की तरह विनम्रता, करुणा और निस्वार्थ सेवा से जीवन को सार्थक करना ही असली सफलता है।
इस प्रकार, शिरीष के पुष्प जीवन की नश्वरता का बोध कराते हुए हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने छोटे जीवन को महान और उपयोगी बनाना चाहिए।
Q18. लेखक ने शिरीष के पुष्पों से कौन-सा जीवन-दर्शन प्रस्तुत किया है?
उत्तर : हजारी प्रसाद द्विवेदी ने “शिरीष के पुष्प” के माध्यम से गहन जीवन-दर्शन प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि शिरीष के पुष्प बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं, लेकिन वे जब तक रहते हैं वातावरण को सुगंधित करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि जीवन की सार्थकता उसकी लंबाई में नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता और उपयोगिता में है।
लेखक का मत है कि मनुष्य को अपने जीवन में विनम्रता, करुणा और त्याग जैसे गुणों को अपनाना चाहिए। जीवन का असली मूल्य दूसरों को सुख और शांति देने में है। जैसे शिरीष के पुष्प बिना किसी आग्रह के धरती पर गिरकर भी वातावरण को सुगंधित कर देते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी अपनी नश्वरता स्वीकार करते हुए समाज और मानवता के लिए कार्य करना चाहिए।
यह जीवन-दर्शन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। छोटी-सी आयु में भी बड़े काम किए जा सकते हैं। जीवन का मोल दूसरों के प्रति करुणा और सेवा-भाव में है।
Q19. शिरीष के फूल और फल से लेखक ने मानव जीवन के किन दो पहलुओं को स्पष्ट किया है?
उत्तर : लेखक ने शिरीष के फूल और फल के स्वभाव के माध्यम से मानव जीवन के दो अलग-अलग पहलुओं को स्पष्ट किया है। फूल का स्वभाव विनम्र, निस्वार्थ और त्यागमय है। वह छोटा होते हुए भी वातावरण को अपनी सुगंध से भर देता है और सहज भाव से झर जाता है। यह मनुष्य के जीवन में त्याग, करुणा और सेवा-भाव का प्रतीक है।
इसके विपरीत, शिरीष के फल पेड़ से मजबूती से चिपके रहते हैं। वे तब तक अपना स्थान नहीं छोड़ते जब तक कोई नया फल उन्हें धक्का न दे। यह प्रवृत्ति मनुष्य के स्वार्थ, लोभ और पद-लालसा का प्रतीक है। मनुष्य भी प्रायः अपने पद और अधिकार से चिपका रहता है और उन्हें छोड़ना नहीं चाहता।
इस प्रकार, फूल और फल का स्वभाव हमें यह शिक्षा देता है कि मनुष्य को फल जैसा स्वार्थी नहीं, बल्कि फूल जैसा विनम्र और त्यागी होना चाहिए। यही जीवन का आदर्श और सच्चा मूल्य है।
Q20. लेखक ने शिरीष के पुष्पों को महापुरुषों से क्यों जोड़ा है?
उत्तर : लेखक ने शिरीष के पुष्पों को महापुरुषों से इसलिए जोड़ा है क्योंकि उनका जीवन भी पुष्पों की तरह सरल, विनम्र और त्यागमय होता है। महात्मा गांधी और पं. नेहरू जैसे महापुरुषों ने अपने जीवन से समाज और राष्ट्र को नई दिशा दी।
गांधीजी का जीवन तप, करुणा और सेवा का प्रतीक था। वे अपने छोटे-से शरीर और साधारण जीवन से संपूर्ण विश्व को प्रभावित कर गए। उन्होंने अपने निस्वार्थ भाव से देश को स्वतंत्रता दिलाई और जीवनभर सादगी का पालन किया।
नेहरूजी ने भी लोकतांत्रिक मूल्यों और आधुनिक विचारों के माध्यम से राष्ट्र को प्रगति की ओर अग्रसर किया।
इन दोनों महापुरुषों का जीवन पुष्पों की तरह था—वे स्वयं नश्वर रहे, लेकिन उनका योगदान अमर हो गया। उन्होंने त्याग, सेवा और करुणा से समाज को सुगंधित किया।
इसलिए लेखक ने कहा कि महापुरुषों का जीवन शिरीष के पुष्पों जैसा होता है, जो क्षणभंगुर होकर भी समाज और मानवता को अमर कर जाता है।
Q21. ‘शिरीष के पुष्प’ हमें किस प्रकार का जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं?
उत्तर : ‘शिरीष के पुष्प’ हमें जीवन जीने की एक अनूठी प्रेरणा देते हैं। लेखक बताते हैं कि फूल बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं, लेकिन जब तक रहते हैं वातावरण को अपनी सुगंध और सुंदरता से भर देते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि जीवन चाहे छोटा हो या बड़ा, उसकी महत्ता इस बात में है कि वह दूसरों के लिए कितना उपयोगी है।
यह रचना हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने जीवन को त्याग, करुणा और सेवा से सार्थक बनाना चाहिए। हमें अपने पद, प्रतिष्ठा या अधिकार से चिपके नहीं रहना चाहिए, बल्कि फूल की तरह विनम्र और निस्वार्थ बनकर समाज और मानवता के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।
लेखक का संदेश है कि वास्तविक महानता दूसरों को सुख, शांति और प्रेरणा देने में है। जीवन की सार्थकता निस्वार्थ भाव और करुणा में है।
इस प्रकार, “शिरीष के पुष्प” हमें विनम्र, सेवा-भावी और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।