Q.1 जूवेनाइल हार्मोन क्या है?
Ans: कीट हार्मोन (इक्डीसोम)।
Q.2 नीम में पाया जाने वाले उसे पदार्थ का नाम बताइए जिससे कीटों को नष्ट करते हैं?
Ans: एजेडिरेक्टिन, सल्फर।
Q.3 BOD का पूरा नाम लिखिए।
Ans: Biochemical Oxygen Demand
Q.4 बूस्टर डोज किसे कहते हैं?
Ans: बूस्टर डोज : वैक्सीन के बाद दी जाने वाली मात्राओं को बूस्टर डोज कहते हैं।
उदाहरण बच्चों को DPT के तीन तक लगाए जाते हैं अर्थात् दूसरा व तीसरा टीका बूस्टर डोज होता है।
Q.5 जैव उर्वरक क्या है? इसके प्रयोग का वर्णन करें।
Ans: जैव उर्वरक : ऐसे सुक्ष्मजीव जो मृदा के उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं, जैव उर्वरक कहलाते हैं।
उदाहरण : एनाबीना, नॉस्टॉक आदि।
जैव उर्वरक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -
A) सहजीवी जैव उर्वरक : इसके अंतर्गत निम्नलिखित उर्वरक शामिल है -
राइजोबियम सहजीविता : दलहनी पौधों की जड़ों की ग्रंथिकाओं में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है, जो वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को नाइट्राइट में परिवर्तित कर देता है , जिसे नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं। पौधे भूमि से नाइट्राइट के रूप में नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं।
एजोला-एनाबीना सजीविता
एनाबीना एक साइनोबैक्टीरिया है, जो एजोला की पत्तियों पर उपस्थित होती है। यह वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को नाइट्राइट में परिवर्तित कर देती है, जिसका प्रयोग एजोला के द्वारा अपनी वृद्धि के लिए किया जाता है। बदले में एजोला एनाबीना को रहने हेतु स्थान प्रदान करता है।
माइकोराइज़ा : यह उच्च पौधों के जड़ तथा कवक के बीच सहजीविता प्रदर्शित करता है। माइक्रोराइजा के कवक नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। ग्लोमस वातावरण से फास्फोरस का अवशोषण करता है।
B) असहजीवी जैव उर्वरक : इसमें स्वतंत्र जीवाणु और साइनो जीवाणु आते हैं -
स्वतंत्र जीवाणु : एजोबैक्टर जैसे जीवाणु मृदा पर स्वतंत्र रूप से पाए जाते हैं, जो वायुमंडल के नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौंगिक में परिवर्तित कर देते हैं, जिससे भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ती है।
सायनोबैक्टीरिया : एनाबीना, नॉस्टाॅक जैसे साइनोबैक्टीरिया जल या मृदा में स्वतंत्र रूप से पाए जाते हैं, जो वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को उसके यौगिक में परिवर्तित कर देता है, जिससे मृदा की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है। यदि धान, गेहूं आदि के साथ इसे उगाया जाता है, तो फसल की पैदावार अधिक होती है।
Q.6 जैव पीड़कनाशी क्या है ? इसके प्रकार व लाभ लिखिए।
Ans: जैव पीड़कनाशी : ऐसे जीव जो हानिकारक जीवों को नष्ट कर देते हैं, उसे जैव पीड़कनाशी कहते हैं।
जैव पीड़कनाशी मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है।
1 जैव शाकनाशी : वे पीड़कनाशी जो खरपतवारों को नष्ट करते हैं, जैव शाकनाशी कहलाते हैं।
उदाहरण: कैक्टस को रोकने के लिए काक्टोब्लास्टिस कैक्टोरम नामक कीट का उपयोग किया जाता है।
2 जैव कीटनाशी : वे पीड़कनाशी जो कीटों को नष्ट करते हैं, जैव कीटनाशी कहलाते हैं।
उदाहरण: एफिडो को नष्ट करने के लिए प्रेयिंग मेंटिस का उपयोग करते हैं।
जैव पीड़कनाशी के उपयोग से निम्नलिखित लाभ होते हैं -
जैव पीड़कनाशी का उपयोग खरपतवारों को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
उदाहरण कैक्टस को रोकने के लिए काक्टोब्लास्टिस कैक्टोरम नामक कीट का उपयोग किया जाता है।
जैव पीड़कनाशी के द्वारा कीटों को नष्ट किया जाता है।
एफिडो को नष्ट करने के लिए प्रेयिंग मेंटिस का उपयोग करते हैं।
इसका उपयोग कीटों में लिंग (नर या मादा) को बंध्य करने के लिए किया जाता है जिससे कीटों की संख्या नियंत्रित हो सकें।
जैव पीड़कनाशी के उपयोग से कीटों में प्रजनन की क्रिया को रोका जा सकता है।
जैव पीड़कनाशी प्राकृतिक कीटनाशी होता है, जो स्तनधारी के लिए हानिकारक नहीं होते हैं।
Q.7 घरेलू अपशिष्ट का निपटान किस प्रकार किया जाता है? सीवेज क्या है? समझाइए।
Ans: घरेलू अपशिष्ट के निपटारन हेतु प्रयुक्त की जाने वाली उपचार प्रक्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
सीवेज : घरों से निकलने वाला वह जल जिसमें मल-मूत्र, रसोई के अपशिष्ट, कूड़ा-कचरा तथा अनेक प्रकार के कार्बनिक पदार्थ और अकार्बनिक पदार्थ उपस्थित होता है, सीवेज कहलाता है। सीवेज को नदी-नालों में मिलाने से पहले निम्नलिखित प्रकार से उसे उपचार द्वारा साफ किया जाता है -
A) प्राथमिक उपचार : इसे भौतिक उपचार भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में सीवेज को सर्वप्रथम छाना जाता है, जिससे उसमें उपस्थित बड़े कचरे जैसे - पॉलिथीन, कागज आदि अलग हो जाते हैं। इसके पश्चात् जल को ग्रिफ्ट चेंबर में डाला जाता है, जिसमें मिट्टी, कंकड़ नीचे बैठ जाते हैं। फिर जल को अवसादन टैंक में डाला जाता है। इसमें जो पदार्थ नीचे बैठ जाता है, उसे प्राथमिक आपंक कहते हैं तथा ऊपर के हल्के पदार्थ को प्राथमिक बहिःस्राव कहते हैं।
B) द्वितीयक उपचार : इसे बायोलॉजिकल उपचार भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में प्राथमिक बहिःस्राव को अवसादन टैंक से वायवीय टैंक में डाला जाता है। इस वायवीय टैंक में वायवीय जीवाणु होते हैं, जो जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। इसमें जल को एक चक्र द्वारा हिलाया जाता है, जल में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा जितनी अधिक होती है उसका बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand/ BOD) उतना ही अधिक होता है। कार्बनिक पदार्थ को जब वायवीय जीवाणु द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण कर लिया जाता है, तब BOD कम हो जाता है जिससे जल ऑक्सीकृत हो जाता है। इस जल को अवसादन टैंक में डाला जाता है। वायवीय जीवाणु थोड़े भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं, जिसे द्वितीयक आपंक कहते हैं। इसे पुनः वायवीय टैंक में डाल दिया जाता है तथा हल्के पदार्थ ऊपर होते हैं जिसे द्वितीयक बहिःस्राव कहते हैं। इसे नदी में डाल दिया जाता है। इन वायवीय जीवाणुओं को अवायवीय टैंक में डाल देते हैं जिससे मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, सल्फाइड गैस मुक्त होते हैं, इससे बायोगैस का निर्माण किया जाता है।
Q.8 वर्मी कंपोस्ट क्या है? इसके उपयोग के फायदे लिखिए।
Ans: वर्मी कंपोस्ट : वर्मी कंपोस्ट पोषण पदार्थ से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है, इसका निर्माण केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।
वर्मी कंपोस्ट के फायदे निम्नलिखित है -
इसके प्रयोग से मिट्टी प्रदूषण नहीं होती।
इसके निर्माण से किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण नहीं होता।
वर्मी कंपोस्ट में मक्खी तथा मच्छर नहीं बढ़ते हैं।
मिट्टी की वह शक्ति बढ़ती है।
वर्मी कंपोस्ट के हानियां निम्नलिखित है -
निर्माण में 1 से 2 महीने लग जाते हैं।
इससे गंदी बदबू आती है।