नमक का दारोगा
मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद
प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नमक का दारोगा” ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत करती है। इसमें यह संदेश निहित है कि सच्चाई का मार्ग कठिन अवश्य होता है, लेकिन अंततः सच्चे और ईमानदार व्यक्ति की जीत होती है।
कहानी का नायक "वंशीधर" है, जो बचपन से ही धार्मिक वातावरण और संस्कारों में पला-बढ़ा था। उसके पिता चाहते थे कि वह किसी प्रकार की नौकरी करके धन अर्जित करे, किंतु वंशीधर का चरित्र सच्चाई और ईमानदारी पर आधारित था। जब उसे नमक विभाग में दारोगा की नौकरी मिली, तो उसने दृढ़ निश्चय किया कि वह अपने पद का दुरुपयोग नहीं करेगा और न्यायपूर्वक कार्य करेगा।
दारोगा बनने के बाद उसकी पहली बड़ी परीक्षा तब हुई जब उसने एक प्रतिष्ठित जमींदार, पंडित अलोपीदीन, को नमक की तस्करी करते हुए पकड़ा। अलोपीदीन ने उसे भारी रिश्वत देने की कोशिश की, लेकिन वंशीधर ने एक ईमानदार अधिकारी की तरह रिश्वत लेने से इंकार कर दिया और नियमों का पालन करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
शुरुआत में समाज और अधिकारीगण वंशीधर की इस सख्ती से नाराज़ हुए, परंतु धीरे-धीरे सबने उसकी निष्ठा और ईमानदारी को समझा। अंततः उसकी सत्यनिष्ठा और कर्तव्यपरायणता की सराहना हुई।
इस प्रकार कहानी यह सिखाती है कि सच्चाई के मार्ग पर चलना कठिन होता है, परंतु यही मार्ग मनुष्य को सच्चा सम्मान दिलाता है।
1. “नमक का दारोगा” के लेखक कौन हैं?
a) जयशंकर प्रसाद
b) मुंशी प्रेमचंद ✅
c) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
d) हरिवंश राय बच्चन
2. वंशीधर का चरित्र कैसा था?
a) लोभी
b) चतुर
c) ईमानदार ✅
d) स्वार्थी
3. वंशीधर के पिता अपने पुत्र से क्या चाहते थे?
a) वह बड़ा अधिकारी बने
b) वह अधिक धन कमाए ✅
c) वह किसान बने
d) वह गाँव में रहे
4. वंशीधर को कौन-सी नौकरी मिली थी?
a) तहसीलदार
b) नमक का दारोगा ✅
c) पटवारी
d) कलेक्टर
5. वंशीधर ने सबसे पहले किसे पकड़ा?
a) डाकू
b) साधु
c) पंडित अलोपीदीन ✅
d) दुकानदार
6. अलोपीदीन किसका तस्कर था?
a) चीनी
b) गेहूँ
c) नमक ✅
d) कपड़ा
7. वंशीधर ने रिश्वत क्यों नहीं ली?
a) वह डरपोक था
b) वह गरीब था
c) वह ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ था ✅
d) उसे पैसे की ज़रूरत नहीं थी
8. वंशीधर ने अलोपीदीन को कहाँ पहुँचाया?
a) जेल ✅
b) तहसील
c) पंचायत
d) दरबार
9. कहानी का प्रमुख संदेश क्या है?
a) धन सबसे बड़ा बल है
b) सत्य और ईमानदारी से ही सच्चा सम्मान मिलता है ✅
c) रिश्वत से सब काम हो जाते हैं
d) बड़ा आदमी हमेशा जीतता है
10. अंत में समाज का दृष्टिकोण वंशीधर के बारे में क्या हो गया?
a) वह मूर्ख था
b) वह स्वार्थी था
c) वह आदर्श अधिकारी था ✅
d) वह डरपोक था
1. वंशीधर को “नमक का दारोगा” बनने पर कैसी चुनौती मिली?
Ans: वंशीधर को अपनी ईमानदारी सिद्ध करनी थी। पहली ही रात उसे पंडित अलोपीदीन जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति को पकड़ना पड़ा, जिसने उसे रिश्वत देने की कोशिश की। यह उसकी सबसे कठिन परीक्षा थी, जिसमें उसने सत्य और कर्तव्य को धन से ऊपर रखा।
2. वंशीधर रिश्वत क्यों नहीं लेते थे?
Ans: वंशीधर धार्मिक और संस्कारी परिवार में पले-बढ़े थे। उनमें ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता की गहरी भावना थी। उन्होंने संकल्प लिया था कि सरकारी सेवा में रहते हुए वे कभी रिश्वत नहीं लेंगे और नियमों का पालन करेंगे।
3. अलोपीदीन किस प्रकार का व्यक्ति था?
Ans: अलोपीदीन एक धनी और प्रभावशाली व्यक्ति था, जो तस्करी करके धन कमाता था। वह अधिकारियों को रिश्वत देकर बच निकलता था। लेकिन वंशीधर की ईमानदारी ने उसकी चालाकी को असफल कर दिया।
4. वंशीधर और उनके पिता के विचारों में अंतर बताइए।
Ans: वंशीधर के पिता धन-संपत्ति कमाने को सर्वोपरि मानते थे। वे चाहते थे कि बेटा रिश्वत लेकर सुखी रहे। परंतु वंशीधर सच्चाई और कर्तव्य को धन से ऊपर मानते थे। यही दोनों पीढ़ियों का मतभेद था।
5. कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?
Ans: कहानी का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि जीवन में ईमानदारी और सत्य के मार्ग पर चलना कठिन है, परंतु अंततः वही व्यक्ति समाज में सम्मान और आदर्श प्राप्त करता है।
6. वंशीधर ने समाज को क्या संदेश दिया?
Ans: वंशीधर ने यह संदेश दिया कि कर्तव्य और ईमानदारी से बड़ा कोई धर्म नहीं है। यदि अधिकारी रिश्वत न लें तो समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और शोषण कम हो सकते हैं।
7. वंशीधर को पहली बार किस परिस्थिति में रिश्वत की पेशकश की गई?
Ans: जब वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को नमक की तस्करी करते पकड़ा, तब अलोपीदीन ने उसे भारी रकम रिश्वत में दी। लेकिन वंशीधर ने इसे ठुकरा दिया।
8. “नमक का दारोगा” शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
Ans: शीर्षक सार्थक है क्योंकि पूरी कहानी वंशीधर के दारोगा पद और उनके सत्यनिष्ठ कार्यों पर आधारित है। नमक की तस्करी और उस पर की गई कार्रवाई कहानी का केंद्रबिंदु है।
9. कहानी का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
Ans: यह कहानी समाज में ईमानदारी का आदर्श प्रस्तुत करती है। यह दिखाती है कि भ्रष्टाचार से बचकर भी अधिकारी आदर्श बन सकते हैं और यही सच्चा सम्मान है।
10. प्रेमचंद की कहानियों की एक विशेषता इस कहानी में कौन-सी दिखाई देती है?
Ans: प्रेमचंद यथार्थवादी लेखक थे। उनकी कहानियाँ समाज की समस्याओं को दर्शाती हैं। इस कहानी में भी उन्होंने भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और ईमानदारी जैसे यथार्थ विषयों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है।
1. वंशीधर के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
Ans: वंशीधर एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और सत्यनिष्ठ युवक थे। बचपन से ही धार्मिक और संस्कारी वातावरण में पले होने के कारण उनमें दृढ़ नैतिकता थी। नौकरी पाकर उन्होंने संकल्प लिया कि रिश्वत नहीं लेंगे और न्यायपूर्वक कार्य करेंगे। उनकी परीक्षा तब हुई जब पंडित अलोपीदीन ने उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की। बड़े धन का प्रलोभन होते हुए भी वंशीधर अडिग रहे और नियमों का पालन करते हुए उसे जेल पहुँचाया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि सच्चा अधिकारी वही है जो कर्तव्य को धन से ऊपर रखे। उनका चरित्र समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।
2. कहानी में वंशीधर और उनके पिता के विचारों का अंतर समझाइए।
Ans: वंशीधर के पिता सांसारिक दृष्टिकोण से धन-संपत्ति को सबसे महत्वपूर्ण मानते थे। उनका मानना था कि नौकरी का असली लाभ रिश्वत लेकर धन कमाने में है। इसके विपरीत वंशीधर आदर्शवादी और सत्यनिष्ठ थे। वे धन को तुच्छ मानते थे और कर्तव्यपालन को सर्वोपरि। दोनों पीढ़ियों के दृष्टिकोण का यह अंतर कहानी का मुख्य आधार बनता है और यह बताता है कि समाज में दो तरह की सोच मौजूद है – एक भौतिकवादी और दूसरी नैतिकतावादी। प्रेमचंद ने इस टकराव को बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत किया है।
3. कहानी “नमक का दारोगा” समाज में किस समस्या को उजागर करती है?
Ans: यह कहानी समाज में फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की समस्या को उजागर करती है। उस समय नमक पर कर लगाया जाता था और लोग तस्करी करके नियमों को तोड़ते थे। अधिकारी भी रिश्वत लेकर उन्हें छोड़ देते थे। वंशीधर का चरित्र इन परिस्थितियों के विपरीत खड़ा होता है। उन्होंने सिद्ध किया कि यदि अधिकारी ईमानदार हों तो समाज में अन्याय और भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है। यह कहानी केवल ब्रिटिश शासन की भ्रष्ट व्यवस्था पर व्यंग्य नहीं करती, बल्कि आज भी हमारे लिए उतनी ही प्रासंगिक है।
4. अलोपीदीन का चरित्र चित्रण कीजिए।
Ans: अलोपीदीन कहानी का धनी और प्रभावशाली पात्र है। वह नमक की तस्करी करता था और अधिकारियों को रिश्वत देकर बच निकलता था। उसका मानना था कि धन से सब काम संभव हैं। जब वंशीधर ने उसे पकड़ा, तो उसने बड़ी राशि रिश्वत में देनी चाही, किंतु असफल रहा। अलोपीदीन के चरित्र से पता चलता है कि समाज में ऐसे लोग धन के बल पर कानून और नैतिकता को दबाने का प्रयास करते हैं। वह भ्रष्टाचार का प्रतीक है। लेकिन कहानी यह संदेश देती है कि सच्चाई और ईमानदारी के सामने ऐसा धन बल टिक नहीं सकता।
5. कहानी का शीर्षक “नमक का दारोगा” कैसे सार्थक है?
Ans: शीर्षक “नमक का दारोगा” अत्यंत सार्थक है क्योंकि पूरी कहानी वंशीधर के दारोगा पद और उनके कार्यों पर केंद्रित है। नमक की तस्करी उस समय बड़ी समस्या थी और उस पर रोक लगाने की जिम्मेदारी वंशीधर को मिली। कहानी की सारी घटनाएँ – वंशीधर का ईमानदारी से अलोपीदीन को पकड़ना, रिश्वत का इंकार करना और अंततः सम्मान पाना – सब उनके दारोगा पद से जुड़ी हैं। यह शीर्षक न केवल कहानी की घटनाओं को दर्शाता है, बल्कि पाठक का ध्यान उस ईमानदार अधिकारी की ओर खींचता है जो आदर्श प्रस्तुत करता है।
6. कहानी में सत्य और असत्य का संघर्ष कैसे दिखाई देता है?
Ans: कहानी में सत्य का प्रतिनिधित्व वंशीधर करते हैं, जबकि असत्य और भ्रष्टाचार का प्रतीक अलोपीदीन है। जब वंशीधर अलोपीदीन को पकड़ते हैं, तो उसे बचाने के लिए रिश्वत की पेशकश की जाती है। यहाँ सत्य और असत्य का संघर्ष स्पष्ट होता है। असत्य धन और शक्ति के बल पर जीतना चाहता है, लेकिन सत्य की दृढ़ता और ईमानदारी अंततः सफल होती है। यह संघर्ष समाज की वास्तविकता को उजागर करता है और यह संदेश देता है कि सत्य की जीत अवश्य होती है, चाहे रास्ता कितना ही कठिन क्यों न हो।
7. “नमक का दारोगा” कहानी का नैतिक संदेश क्या है?
Ans: कहानी का नैतिक संदेश यह है कि ईमानदारी और सत्य के मार्ग पर चलना कठिन अवश्य है, परंतु यही मार्ग वास्तविक सम्मान और आदर्श तक पहुँचाता है। वंशीधर जैसे अधिकारी समाज में भ्रष्टाचार और अन्याय को खत्म कर सकते हैं। रिश्वत और प्रलोभन क्षणिक लाभ दे सकते हैं, परंतु सच्चाई और कर्तव्य का पालन व्यक्ति को स्थायी सम्मान दिलाता है। यह कहानी हर समय के लिए प्रासंगिक है क्योंकि आज भी समाज में ऐसे अधिकारियों की आवश्यकता है जो सच्चाई और ईमानदारी पर अडिग रहें।
8. कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने क्या संदेश दिया है?
Ans: प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया है कि धन ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य नहीं है। सच्चा धन ईमानदारी, सत्य और कर्तव्यनिष्ठा है। उन्होंने यह दिखाया कि भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी समाज को कमजोर करती है। यदि अधिकारी वंशीधर की तरह आदर्शवादी हों, तो समाज और राष्ट्र दोनों उन्नति कर सकते हैं। कहानी केवल ब्रिटिशकालीन भ्रष्ट व्यवस्था पर व्यंग्य नहीं है, बल्कि हर काल के लिए प्रेरणा है।
9. कहानी का समाजशास्त्रीय महत्व स्पष्ट कीजिए।
Ans: “नमक का दारोगा” समाजशास्त्रीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें उस समय के समाज में फैले भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और नैतिक पतन को उजागर किया गया है। ब्रिटिश शासन में नमक पर कर और तस्करी की घटनाएँ आम थीं। अधिकारी रिश्वत लेकर अपराधियों को बचाते थे। वंशीधर का चरित्र ऐसे समाज में आदर्श बनकर सामने आता है। वह दिखाता है कि ईमानदारी से ही समाज में न्याय और व्यवस्था स्थापित हो सकती है। यह कहानी आज भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध चेतावनी और प्रेरणा दोनों है।
10. क्या आज के समय में “नमक का दारोगा” प्रासंगिक है? स्पष्ट कीजिए।
Ans: जी हाँ, यह कहानी आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। वर्तमान समाज में भी भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और नैतिक पतन बड़ी समस्याएँ हैं। वंशीधर जैसे अधिकारी आज भी आदर्श बन सकते हैं। कहानी यह सिखाती है कि यदि अधिकारी ईमानदारी से कार्य करें, तो अन्याय समाप्त हो सकता है। यह केवल ब्रिटिश शासनकाल की समस्या नहीं थी, बल्कि आज के समाज में भी यह उतनी ही लागू होती है। इसलिए कहानी का संदेश – “सत्य की जीत होती है और ईमानदारी ही सच्चा सम्मान दिलाती है” – आज भी उतना ही प्रेरणादायक है।